झूठ और नफरत फैलाने वाले आकाओं को अचानक से प्यार और भाईचारा याद आने लगे तो देख कर बड़ा अजीब लगता है। आपको लगता है ये हृदय परिवर्तन कैसा, ये अचानक से बदल क्यों गए। क्या हमारे प्रति इनकी नफरत खत्म हो गयी? कल तक जो हमारे इतिहास, हमारी संस्कृति को पानी पी पी कर गाली दे रहे थे, जो कह रहे थे हमारी संख्या कम है, और तुम्हरी संख्या ज्यादा, फिर भी हम तुम पर भारी पड़ जाएंगे। कल तक जिनके मुँह से हमारे लोग बनाम तुम्हारे लोग ही निकलता था, आज उनको भाईचारे की बात करते हुए देख कर सोच में पड़ गया हूँ, की ये करुणा और मानवता कहाँ से आ गई। क्या सब ठीक हो गया? क्या अब हिन्दू मुस्लिम एक हो गए। इतना समझने की कोशिश कर ही रहा था कि पता चला की कोई कोरोना नामक छुआ-छूत वाली बीमारी का बहुत बोलबाला चल रहा है। अब बीमारी तो बीमारी है, धर्म पूछ कर तो आएगी नहीं।
लेकिन कुछ ने उसमे भी हिन्दू धर्म के खिलाफ अपनी नफरत को भुनाने का तरीका ढूंढ निकाला। आज इस्लामोफोबिया पर रोने वालों का पहले इतिहास जान लेना ज़रूरी है।
इसकी शुरुआत एक फर्जी संगठन, अखिल भारत हिन्दू महासभा द्वारा कराए गए गौमूत्र पार्टी से शुरू होती है, जिसमे संगठन के कार्यकर्ताओं द्वारा कोरोना को भगाने के लिए एक गौमूत्र पार्टी का आयोजन किया जाता है।
तरह तरह के आडम्बर का कैमरे के सामने प्रदर्शन किया जाता है। जिसे देख कर एक गंवार भी बता दे की इस फर्ज़ीवाड़े का आयोजन एक संस्कृति का मज़ाक बनाने की मंशा से ही किया जा सकता है। इस संगठन का जनता में प्रभुत्व कम होने की वजह से ये आए दिन पब्लिसिटी की उम्मीद में कुछ न कुछ प्रपंच रचते हुए नज़र आते हैं।
एक समझदार व्यक्ति इसे नज़रअंदाज़ कर दे, लेकिन जो भेड़िये के भांति इसी ताक में बैठे हों कि हिन्दू संस्कृति का मज़ाक बनाने का मौका कब हाथ लग जाए, वो आखिर कैसे शांत बैठे जाएंगे। ऐसा बस होने की देरी थी और फिर क्या था नफरत का नंगा नाच देश के सामने किया जाता हैं। एक जमात है, वो वाला जमात नहीं जो आप समझ रहे हैं, उस पर बाद में आएंगे, अभी बात लिबरल वामपंथी जमात की करते हैं। वो जमात जिसने सबसे पहले इस बीमारी में धर्म को जगह दिया, उसे बदनाम किया, उसकी धज्जियां उड़ाई, फूहड़ हंसी हसी गई, कॉमेडी के नाम पर नंगापन पेश किया गया।
इस लिबरल जमात के नामचीन ट्विटर योद्धा, अनुराग कश्यप, अनुभव सिन्हा, स्वरा भास्कर, ज़ीशान अयूब, प्रशान्त कनोजिया के साथ, प्रोपगैंडा न्यूज़ पोर्टल, दी वायर, उसकी लेखिका आरफा खानुम शेरवानी, और हिन्दू विरोधी पत्रकार राणा अयूब जैसों ने इस मौके का इस्तेमाल हिन्दू धर्म और इसकी संस्कृति का मज़ाक बनाने के लिए पूरी चतुराई से किया।
लेकिन ये समझने की ज़रूरत है, समय हमेशा एक जैसा नही रहता। झूठ और प्रपंच के बदौलत फैलाया हुआ नफरत, सच के सामने नंगा हो जाता है। कोरोना का कहर भारत पर भारी पड़ने ही वाला था, लेकिन मोदी सरकार द्वारा इससे निपटने के लिए की गयी तैयारी और समय पर लॉकडाउन के निर्णय ने संक्रमण को ज़्यादा फैलने से रोकने में सफलता हासिल कर ही ली थी, लेकिन तभी दिल्ली से आने वाली एक खबर ने पूरे देश में हड़कंप मचा दिया.
दिल्ली के निज़ामुद्दीन स्थित मरकज में इस्लामिक संगठन तब्लीगी जमात के एक कार्यक्रम में जुटे हज़ारों लोगों में कोरोना संदिग्ध का पाया जाना आने वाले मुश्किल दौर की आहट दे रहा था। क्यूंकि हज़ारों की संख्या में जुटी भीड़ जो अब देश के कई कोने में बिखर चुकी थी उसका पता लगाते लगाते वो हज़ार और कितने हज़ार तक ये बीमारी पहुंचा देंगे उसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल था। और हुआ भी यही, जिस कोरोना मरीजों की संख्या कम होने की उम्मीद जताई जा रही थी, बाद में उसी संख्या में भारी बिस्फोट देखने को मिलता है, जिसमे कूल मरीजों की संख्या में जमाती अपनी संख्या 40% के लगभग दर्ज कराते हैं।
असल समस्या पैदा वहां होती जब मरकज वाले सुरक्षाकर्मी और डॉक्टरों का साथ देने में कठिनाइयां पैदा करने लगते हैं। इसका प्रयास निरंतर किया जाता है की किस तरह, संक्रमण को और बढ़ाया जा सके।
इतनी सी खबर आते ही, लिबरल ट्विटर योद्धाओं द्वारा धर्म के चश्मे को हटा कर इस बीमारी को देखने का फरमान जारी किया जाता है, क्योंकि आतंकवाद की तरह बीमारी का भी कोई धर्म नहीं होता है। कल तक हिन्दू, हिंदुत्व, गौ मूत्र पर फूहड़ हंसी हँसने वाले आज एकजूट हो कर लड़ने की बात करने लगे थे।
ये वही लोग थे जिन्होंने “कोरोना का इलाज 5 वक़्त की नमाज़” बताने वाले टिकटॉक स्टार को देख अपनी आंखें मूंद रखी थी, लेकिन गौ मूत्र के बहाने पूरे हिन्दू धर्म का मज़ाक बनाया था। उनके ये अपील के बाद भी ये मामला तूल पकड़ता गया, क्योंकि जमातियों के जाहिल वाले लक्षण हर दिन न्यूज़ चैनल की सुर्खियां बन रहे थे।
कभी डॉक्टर पर थूक फेंकने की खबर, कभी डॉक्टरों पर हमले की खबर, तो कभी वार्ड में अश्लील हरकत करने की रिपोर्ट सामने आती रही। खाने के लिए अजीबो गरीब मांग, न मिलने पर खुले में शौच की धमकी। इस हद्द तक बेहूदगी पर भी एक राजनीतिक गुट शांति धरे बैठा रहा।
लिबरल ट्विटर योद्धाओ की बेशर्मी देखिए कि, सच को सच दिखाने पर वो मीडिया, आम लोग, यहां तक की मेडिकल कर्मचारियों को भी इस्लामोफोबिक बताने लगे। लेकिन बीमारी को धर्म के चश्मे से ना देखने वाले यही लोग उसी वक़्त मंदिर, पंडित, पूजा, आरती, आदि पर निरंतर प्रहार करते नज़र आये।
ये वही लोग हैं जो गुप्त सूत्र से भी हिन्दू व्यक्ति के खिलाफ मिली जानकारी को भगवा आतंकवाद बताने में नहीं कतराते थे, आज ये डॉक्टर की आपबीती सुन कर भी उन्हें झूठा और इस्लामोफोबिक करार दे रहे हैं।
असमंजस देखिए, मुस्लिम का विरोध कर नहीं सकते, लेकिन हिन्दू का विरोध करना ज़रूरी है। गुनेहगार जमाती हो तो बीमारी को धर्म का चश्मा लगा कर नहीं देखना, लेकिन हिन्दू हो तो भगवा आतंकवाद भी बताना है। और हां, अगर हिन्दू सवाल के घेरे में आ जाए, लेकिन विचार मोदी विरोधी हो तो सुतुर्मुर्ग के भांति अपनी मुंडी को मिट्टी में डाल लेनी की कला का भी प्रदर्शन करना है।
“देख तेरे संसार की हालात क्या हो गयी भगवान, कितना बदल गया इंसान”।