कोरोना वायरस कोई प्राकृतिक उत्पाद नहीं है यह चीन और उसके समर्थित तमाम कुत्सित विचारधारा वाले लंपट चिंटू प्रकार के देशों के दिमाग की मवाद है, जो आज पूरी दुनिया मे फैल कर दुनिया के पूरे नक्शे पर नंगा नाच कर रही है, और सारी दुनिया सिवाय मूकदर्शक बनने के कुछ नहीं कर पा रही है. वायरस चीन ने बनाया अब खबर आ रही है जिस शहर से कोरोना वायरस निकला था आज वहीं पर इसकी वैक्सीन भी तैयार की जा रही है और दुनिया की तमाम संस्थाएं डबल्यूएचओ समेत मूकदर्शक बनने के अलावा कुछ कर पाती हुई नजर नहीं आ रही हैं जबकि अगर अंधा भी देखे तो कोरोना वायरस के लिए जिम्मेदार चीन ही दिखाई देता है, मगर ऐसे क्या मजबूरी है या दुर्भाग्य है कि आजतक चीन द्वारा किए गए हर अमानवीय कुकर्म को नजरअंदाज किया गया चाहे वो कमजोर राष्ट्रों पर किया गया जुल्म हो या अब ये कोरोना वायरस, इन मुद्दों पर दुनिया में मानवाधिकार के रक्षक राष्ट्रों ने आजतक मुखर होकर इसे वैश्विक मंच पर उठाया ही नहीं क्यों? क्या दुनिया आर्थिक मजबूरी के अलावा किसी वैचारिक गुलामी का शिकार भी है?
दुनिया के जो देश विज्ञान और आविष्कार को जितना पूजते थे आज वो ही इसके सबसे ज्यादा घेरे मे हैं, जिनके यहाँ सबसे साफ सुथरा होने की बात की जाती थी वो आज सबसे ज्यादा मुश्किलों के घेरे मे हैं, और इस कोरोना वायरस की प्रकृति के विपरीत अमेरिका, ब्रिटेन, स्पेन, इटली, फ्रांस और जर्मनी तो चीन से भौगोलिक रूप से इतना दूर होने के बाद भी इसकी पूरी तरह आगोश मे दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से समाते जा रहे हैं, और जबकि भारत चीन के करीब होकर और सुविधाओं के मामले मे कहीं ज्यादा पीछे होने के बाद भी कोरोना वायरस के व्यापक असर से काफी हद तक सुरक्षित है, मूलतः यह गहन चर्चा का विषय होना चाहिए की क्यों वो सुख सुविधा से लैस देश तबाह हो गए और हम आज भी कहीं न कहीं उस भयानक त्रासदी से सुरक्षित हैं.
विषता और विषाणुता पर यूनेस्को ने बहुत पहले ही कहा था कि युद्ध कहीं बाहर से नहीं आते हैं, युद्ध मानवी मन की अमानवी कोख में ही पैदा होते हैं, इसलिए दुनिया को यदि युद्धों से बचाना है तो मानव के मस्तिष्क मे ऐसे विचारों को जनने वाली कोख को ही उजाड़ करना होगा और उस कोख का परिमार्जन संशोधन और संवर्धन शिक्षा द्वारा ही संभव है, आज कोरोना यक्ष प्रश्न बनकर हमारे सामने खड़ा और एक गलत कदम, एक गलत उत्तर आपको काल के गाल मे भेज सकता है, ऐसे में तमाम मार्क्सवादियों और तथाकथित आधुनिक विचारकों के द्वारा बुर्जुवा कहे जा चुके सनातन और सनातनी विचारधारा की तरफ लौट के जाना ही होगा जो हमें आदर्श जीवन शैली सिखाती है जिसका परम धर्म है जियो और जीने दो, यज्ञ विज्ञान का विधान हमारे शस्त्रों मे उल्लेखित है, जो की यदि वर्तमान परिदृश्य मे देखें तो किसी भी दवा या उपाय से ज्यादा कारगर है.
वामपंथ ने जिसको पोंगपन कहा था उनकी पुंगी तो तभी बाजी थी जब यूनेस्को ने उन्हीं वेदों को दुनिया का प्राचीनतम साहित्य माना, जहां से प्रेरित संस्कृति, सभ्यता और जीवन चर्या का अनुपालन हम भारतवासी सदियों से करते आए हैं, हमेशा संकट काल मे चीन और उसके जैसे भस्मासुरी प्रवृत्ति के देश अपना लाभ और व्यापारिक हित देखते हैं जबकि भारत सदा से ही ऐसी परिस्थितियों मे एक समदर्शी पालक के रूप मे उभरता है, जो पूरे विश्व का मानवता की तरफ से नेतृत्व करता हुआ परिलक्षित होता है. और यही मूल अंतर सनातन और वामपंथ के विचारधारा मे. आज भले ही इस समय, काल व परिदृश्य मे कोरोना वायरस वैज्ञानिक विषय हो परंतु दीर्घकाल के लिए यह सुरी और आसुरी शक्तियों और दो विचारों के मध्य स्पष्ट अंतर को दृष्टिगोचर करता हुआ शिलालेख साबित होगा.