प्रियंका वाड्रा जी, पत्रकारों के लिए ठोक के बजाना क्या है, कुछ भी नहीं। हम तो अक्सर ऐसे लफ़्ज़ों से, लफंगों से दो चार होते हैं। हमारा कोई क्या बिगाड़ सकता। आपकी दादी ने भरसक प्रयास किया हमारा गला घोंटने का, हमें कुचलने का। अब आप प्रयास कर रही हैं। बढ़िया है, आपको शुभकामनाएं। हमें आपकी कुंठाओं की परवाह नहीं हैं और न ही आपकी धमकियों से डरने वाले हैं। हां थोड़ी तकलीफ़ जरूर है। ऐसे तो हम लोग शब्दों की खेती करते हैं। चाहे तो कई शब्दों को एक शब्द में पिरो दें या एक शब्द से पूरा अखबार निकाल दें। लेकिन एक महिला की सहमति से, उसकी उपस्थिति में ठोक के बजाने का मतलब समझ में नहीं आया।
बहुत सोचने समझने के बाद भी हम लोग इस सहज से शब्द के मायने नहीं समझ पा रहे हैं। अर्थ के अनर्थ और अनर्थ का अर्थ निकल जा रहा है। इस लिए सोचा कि थोड़ी आपकी मदद लूं। वैसे भी आप और आपका पूरा परिवार मदद करने के नाम पे कई मुकाम हासिल किया है। तो आदरणीय थोड़ी हमारी भी मदद कर दीजिए, इस ठोक के बजाने का मायने समझा दीजिये। और हां वो जो आपके सहयोगी हैं जिन्होंने ये शब्द गढ़ा, ऐसे सहयोगियों की संख्या अपने टीम में बढ़ा लीजिये। जितने लोग होंगे उतने ही लोकतांत्रिक शब्द गढ़े जाएंगे।
और अब आगे से ऐसे शब्दों का, ऐसे लोगों के संबोधन को अपने परिवार में भी शामिल करिए। वहां से जो मैसेज निकलर आएगा उसे हम इस तरह के लोकतांत्रिक शब्दों का मतलब समझ लेंगे। एक और आग्रह है कि नाराज़ नहीं होइएगा, ऐसे लोकतांत्रिक शब्दों और व्यवस्थाओं की मर्यादा को बचाना आपकी खानदानी परम्परा है, इसका निर्वहन करिए, शुभकामनाएं।।