1980 बैच के हरियाणा कैडर के आई ए एस अधिकारी अशोक लवासा जो कांग्रेस सरकार में पर्यावरण और वित्त सचिव जैसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील पदों पर रह चुके हैं, आजकल चुनाव आयुक्त के पद पर हैं -कहने को तो चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और इस पद पर आने के बाद सभी को अपनी पिछली वफ़ादारी भूलकर ईमानदारी और निष्पक्षता से काम करना चाहिए लेकिन लवासा जी ऐसा नहीं कर पा रहे हैं. लवासा जी के अलावा भी चुनाव आयोग में दो और चुनाव आयुक्त हैं और उनमे से एक मुख्य चुनाव आयुक्त भी हैं. चुनाव आयोग के सभी निर्णय इन तीनों को बहुमत से लेने होते हैं.
लवासा जी सुर्ख़ियों में तब आये जब उन्होंने बहुमत के निर्णय से मोदी और अमित शाह को दी गयी “क्लीन चिट” पर सवाल उठाते हुए यह कहा कि 3 सदस्यीय चुनाव आयोग में वह ज्यादातर मामलों में “क्लीन चिट” दिए जाने के पक्ष में नहीं थे और उनकी इस “असहमति” को चुनाव आयोग के आदेश में शामिल किया जाए. आप सभी को यह मालूम होना चाहिए कि जब से चुनाव आयोग बना है, वहां सभी निर्णय बहुमत से होते हैं और ऐसी कोई परंपरा या नियम नहीं है कि असहमत होने वाले सदस्य की असहमति का उल्लेख भी चुनाव आयोग अपने आदेश में करे. लेकिन सब कुछ जानते हुए भी अशोक लवासा अपनी इस जिद पर अड़े रहे जिसे चुनाव आयोग ने सिरे से खारिज भी कर दिया है.
जिस तरह से कांग्रेस समेत समूचा विपक्ष आजकल EVM को लेकर हंगामा कर रहा है और उसके बारे में फेक न्यूज़ फैलाकर देश में दंगे भड़काने की कोशिस कर रहा है, लवासा की इस तथाकथित “असहमति” को भी उसी से जोड़कर देखा जाना चाहिए. 3 सदस्यीय आयोग में एक सदस्य की असहमति से कुछ बनने-बिगड़ने वाला नहीं है, सिर्फ देश की जनता में भ्रम और संशय पैदा करके चुनाव आयोग की साख को चोट पहुंचाने के लिए यह असहमति का नाटक किया जा रहा है. वही काम EVM पर सवाल उठाकर विपक्ष भी कर रहा है. उसे भी मालूम है कि EVM पर हंगामा करने से कुछ होने वाला नहीं है लेकिन वह बार-बार EVM पर सवाल उठाकर चुनाव आयोग की साख पर सवालिया निशान लगाना चाहता है.
क्योंकि मोदी और अमित शाह के खिलाफ आचार संहिता के उल्लंघन की सभी शिकायतें कांग्रेस नेताओं ने की थीं, उन पर लवासा जी की तथाकथित “असहमति” अपने आप में संदेह के घेरे में आ जाती है-यह सभी शिकायतें ऐसी थीं, जिनमे कोई दम नहीं था और चुनाव आयोग का समय बर्बाद करने की नीयत से की गयी थी. लेकिन इन बेबुनियाद शिकायतों में भी लवासा जी को कुछ ऐसा नज़र आ गया कि उन्होंने चुनाव आयोग के बाकी दो सदस्यों के फैसले से न सिर्फ अपनी “असहमति” जता दी, बल्कि इस बात की भी “अजीबोगरीब” जिद करने लगे कि उनकी “असहमति” को चुनाव आयोग अपने अंतिम आदेश में दर्ज़ करे.
कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी नेताओं की तरह शायद लवासा जी भी यह भूल रहे हैं कि आजकल सोशल मीडिया का दौर चल रहा है. संवैधानिक पद पर बैठा कोई व्यक्ति अगर कोई “अजीबोगरीब” हरकत करता है तो देश की 140 करोड़ जनता उस “अजीबोगरीब” हरकत के पीछे की वजह तलाश करना शुरू कर देती है.
आइये हम भी आपको इस “अजीबोगरीब असहमति” के कारणों की तरफ लिए चलते हैं. वर्तमान चुनाव आयुक्त लवासा जी की पत्नी नावेल सिंघल लवासा अंग्रेज़ी से पोस्ट ग्रेजुएट हैं और 2005 तक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में मैनेजर के पद पर कार्यरत थीं. अशोक लवासा जी कांग्रेस शासन के दौरान पर्यावरण और वित्त सचिव क्या बने, उनकी पत्नी की तो मानो लाटरी निकल आयी. वह एक-दो नहीं पूरी 12 कंपनियों में डायरेक्टर बना दी गयीं. इन कंपनियों की पूरी लिस्ट यहां दी जा रही है :
1. Welspun Solar Tech Private Limited,
2. Welspun Solar Punjab Private Limited,
3. Balrampur Chini Mills Limited,
4. Welspun Urja Gujarat Private Limited,
5. Omax Autos Limited,
6. Powerlinks Transmission Limited,
7. Welspun Energy Rajastan Private Limited,
8. Dugar Hydro Power Limited,
9.Dreisatz Mysolar 24 Pvt Limited,
10.Walwhan Wind RJ Ltd,
11. Mi Mysolar 24 Pvt Limited
12. Walwhan Urja Anjar Limited
सवाल यह है कि क्या लवासा जी यह बताएँगे कि इन कंपनियों की किसी फाइल या मामले को उन्होंने अपने पर्यावरण सचिव या वित्त सचिव रहते हुए निपटाया था कि नहीं ?
इस सारे मामले का निचोड़ यही है कि चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं में जब तक अवकाश प्राप्त नौकरशाह जबरन ठूंसे जाते रहेंगे, इन संस्थाओं की विश्वसनीयता हमेशा सवालों के घेरे में बनी रहेगी. सरकार को इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि इस तरह की संस्थाओं को अवकाश प्राप्त नौकरशाहों और जजों से काफी दूर रखा जाए और “स्वतंत्र निदेशकों” के सरकारी पैनल से विशेषज्ञों को इस तरह के आयोगों में जगह दी जाए.