Tuesday, November 5, 2024
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दुर्बलता मृत्यु है

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अमित कुमार
अमित कुमार
अमित कुमार, सहायक प्राध्यापक (भूगोल), एम.एन.एस. राजकीय महाविद्यालय, भिवानी।
  • भारतीय समाज, संस्कृति और राजनीति के अध्ययन में विशेष रुचि

स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था, “दुर्बलता मृत्यु है।” डार्विन महोदय के भी विचार कुछ ऐसे ही थे। “बड़ी मछली छोटी मछली को खाती है” अर्थात् श्रेष्ठतम की उत्तरजीविता। आम भाषा में कहें तो- जिसकी लाठी उसकी भैंस। और तो और देवता भी दुर्बल को ही मारते हैं। बलि बकरी के बच्चे की ही दी जाती है। कभी सुना है हाथी, घोड़े या शेर की बलि?

हवा को ही देख लो, आग को तो और भड़का देती है पर बेचारे दीपक को बुझा देती है। “सबै सहायक सबल के, कोऊ न निबल सहाय, पवन जगावत आग को दीपहिं देत बुझाय।”

देवी-देवताओं को देख लो, हाथ में अस्त्र-शस्त्र धारण किए हैं तभी दुनिया हाथ जोड़ती है। हनुमान जी के पास गदा और शिव के हाथ में त्रिशूल न होता तो कितने लोग वन्दन करते यह सोचने का विषय है।

कहने का तात्पर्य यह कि- हमारे राष्ट्र और हमें अब शक्तिशाली बनना ही होगा। शक्तिसंपन्न हुए बिना भला अशोक और गाँधीजी का अहिंसा और विश्वशांति का सन्देश “श्रेष्ठतम की उत्तरजीविता” जैसे जंगल के कानून में विश्वास करने वाले संसार को कैसे हम समझा पाएंगे? एक सभ्य समाज में तो जीओ और जीने दो के सिद्धांत की आवश्यकता है। आत्मवत् सर्वभूतेषू, “सब प्राणियों में एक ही आत्मा है” और वसुधैव कुटुम्बकं, “समस्त विश्व ही अपना परिवार है”, यह श्रेष्ठ ज्ञान लेकर विश्वकल्याण का मार्ग तभी प्रशस्त होगा जब साथ में शक्ति और सामर्थ्य भी होगा। “क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो, उसको क्या जो दंतहीन विषरहित विनीत सरल हो?” स्मरण है जब टैगोर को भाषण देने का निमंत्रण देकर उनको सुनने के लिए जापान में निमंत्रणकर्ताओं के सिवा कोई मौजूद न था? विद्यार्थियों का विचार था-“परतंत्र, पराभूत समाज का तत्त्वज्ञान सुनने की हमें इच्छा नहीं।” आज भी बहुत लोग हैं जो सोचते हैं कि बिना सामर्थ्य के शांति का झुनझुना बज जायेगा।

आखिर परस्पर विरोधी भिन्न-भिन्न विचारों को समाहित करने वाली महान संस्कृति का संवाहक राष्ट्र शक्तिशाली क्यों न हो? समय आह्वान कर रहा है कि हम शक्ति की उपासना करें।

विकृत मानसिकता और एक ही डंडे से सारी दुनिया को हाँकने की इच्छा रखने वाले लोग यदि शक्तिशाली हुए तो विनाश निश्चित है। इससे आतंकवाद ही बढ़ेगा। इक्कीसवीं शताब्दी के विश्व को दिशा हम ही दे सकते हैं। शक्ति दायित्वबोध लेकर आती है। आखिर, परमाणु फोड़कर भी ‘नो फर्स्ट यूज़’ कहने का साहस सिर्फ भारत ही दिखा सकता है। आओ! अपने देश तथा स्वयं को सामर्थ्यवान बनाकर मानवता का उद्धार करें। याद रहे-“हृदय में हो प्रेम लेकिन शक्ति भी कर में प्रबल हो!”

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अमित कुमार, सहायक प्राध्यापक (भूगोल), एम.एन.एस. राजकीय महाविद्यालय, भिवानी।
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