Saturday, July 27, 2024
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शुक्र है, EVM की इज्जत बच गई…

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Chetan Prinja
Chetan Prinja
#SHIVBHAKT A PROUD HINDU & SABSE BADKAR SACHA HINDUSTANI

लंबे सियासी घटनाक्रम के बाद कर्नाटक में बीजेपी के मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दे दिया और इसके साथ ही नरेंद्र मोदी विरोधी गैंग ने शोर डालना शुरू कर दिया ये लोकतंत्र की जीत है, और उससे भी ज्यादा मोदी और अमित शाह की हार है। जीत का श्रेयः लेने और मुबारकबाद का सिलसिला शुरू हो गया।

कुछ लोग तो इतने जोश में थे और अपने अपको कांग्रेस पार्टी का सबसे बड़ा भक्त दिखाने की कोशिश में माननीय राज्यपाल के पद की गरिमा को भी भूल गए और राज्यपाल की तुलना कुत्ते से कर दी। एक भूतपुर्व मुख्यमंत्री तो इतने जोश में थे क़ि उन्होंने ने तो मोदी सरकार के इस्तीफे की मांग कर दी।

खैर इस तरह की मांग पहली बार नहीं हुई राजनीति में ऐसी मांग उठती रहती है, लेकिन सवाल यह है कि कितने नेताओं ने इस मांग को मान कर इस्तीफा दिया है मुझे याद नहीं। राजनीति सिर्फ सत्ता प्राप्ति का खेल है और इसमें जो भी नेता लोग करते है उनका अंतिम उद्देश्य सत्ता प्राप्ति ही होता है और कोई किसी के कहने पर अपनी इतने साल की मेहनत से प्राप्त की सत्ता की कुंजी छोड़ देगा इस पर मुझे संदेह है। अगर आपको याद हो तो इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी सिर्फ सत्ता खो जाने के डर से ही लगाई थी और इस का उद्देश्य सिर्फ अपनी कुर्सी बचाना था।

इस सब शोर में एक आवाज़ सुनाई नहीं दी वो ही मशहूर डायलॉग EVM से छेड़ छाड़ की गई है।

शायद इसलिए क़ि नतीजे आते आते कांग्रेस को महसूस होने लगा था कि शायद हमारी सरकार जोड़तोड़ से बन सकती है। तभी यह मशहूर लाइन इस बार के चुनाव दृश्य से नदारद दिखी।

खैर वापिस चुनावी घटनाक्रम की तरफ बढ़ते है इस बार कांग्रेस को सुप्रीम कोर्ट भी पूरी तरह से निष्पक्ष दिखाई दी। चलिए कल तक चीफ जस्टिस जो कांग्रेस के हिसाब से निष्पक्ष नहीं थे उन्हें कांग्रेस की तरफ से निष्पक्ता का प्रमाण पत्र मिल गया। लेकिन यह प्रमाणपत्र सिर्फ तभी तक वैध होगा जब तक सुप्रीम कोर्ट कांग्रेस के पक्ष में फैसले देती है और जब भी उसके खिलाफ कोई फैसला आया तो लोकतंत्र ख़तरे में है यह वाक्य आपको सुनने को मिल सकता है।

चलिए अब आते है राज्यपाल के फैसले की तरफ तो यकीनन यह फैसला में लोगों को शक की बदबू आ रही थी। लेकिन सवाल तो यह भी उठ रहे है कि इस फैसले के बीज तो कांग्रेस ने ही बोए थे जिसकी फसल आज उसे काटनी पड़ रही है। कांग्रेस ने कई बार विपक्ष की सरकार गिराने के लिए महामहिम राष्ट्रपति और माननीय राज्यपाल के पद का दुरूपयोग किया। और आज विपक्ष भी उसी नीति को आगे बढ़ा रहा है।

इस सब में एक बात आश्चर्य जनक थी नतीजे आने के समय से लेकर आज तक राहुल गांधी का मौनव्रत धारण करना। और सोनिया गांधी का इस मुश्किल समयः में पार्टी की कमान संभालना और राहुल गांधी की युवा ब्रिगेड को पीछे करके अनुभवी और पार्टी के पुराने नेताओं को आगे करना।यह भी अपने आप में काफी सवाल खड़े करता है।जैसे राहुल गांधी चाहे पार्टी अध्यक्ष पद पर हो लेकिन पार्टी अभी भी अहम् मुद्दों पर उनकी योग्यता पर संदेह करती है। अहम् मसले पर उन्हें पीछे करके सोनिया गांधी का दुसरे नेताओं को आगे करना इस डर को दर्शाता है क़ि शायद पार्टी समझती है कि राहुल की लीडरशिप में बीजेपी बाज़ी मार सकती थी।

सियासी हलकों में यह विचार भी है कि शायद यह बीजेपी की आगे की रणनीति हो सकती है आने वाले आम चुनावों के लिए। कि शायद आने वाले साल तक यह सरकार की लोकप्रियता कुछ कम हो जाएगी और तब बीजेपी विक्टिम कार्ड और लिंग्यात कार्ड खेलेगी। ताकि आने वाले आम चुनाव में उसे कैश किया जा सके। और उसके बाद में कांग्रेस जेडीएस के लिंग्यात विधायकों की मदद से अपनी सरकार भी बना लेगी। लेकिन यह अभी दूर की कौड़ी लगती है और यह इस बात पर निर्भर करता है कि यह सरकार की लोकप्रियता में कमी आएगी और यह सरकार कोई लोक लुभावन वादे नही करेगी।

लेकिन यह सरकार पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा कर पाएगी। इस बात पर संदेह है क्योंकि अमित शाह शायद मन में वह डायलॉग दोहरा रहे होंगे कि “कब तक छिपाओगे खंभे की आड़ में, कभी तो आयोगे भिन्डी बाजार में”। यह काफी मजाकिया हो सकता है लेकिन अभी तो विधायक कांग्रेस की कैद से आज़ाद हो जाएंगे और बीजेपी के संपर्क में आएंगे। लेकिन आने वाले वक्त में कर्नाटक की राजनीति में और भी हलचल देखने को मिल सकती है खास कर बाकी दो विधानसभा के चुनाव नतीजों के बाद। कल क्या होगा यह तो भविष्य की गर्भ में छिपा है और यह जानने के लिए हमें अभी और इंतज़ार करना होगा।

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