जैसे जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे वैसे विपक्षीयों का पुरे देश में नागिन डांस चरम पर देखा जा रहा हैं. इस डांस की खासियत है कि ग़ैर-भाजपाई प्रदेशो में विपक्षी यहाँ वहां रेंगते रेंगते हिन्दुओं के हक़ की बात करने वालो को ढूंढ़-ढूंढ कर अपने जहर से घायल कर रहें हैं!
यहाँ सोचने वाली बात है कि छोटे से छोटे मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी को निशाना बनाने वाले ये विपक्षी चमचे जिन्होंने ‘बुद्धिजीवी’ शब्द का सत्यानाश करने का जिम्मा खुद के कन्धो पर उठा रखा है वे खुद इन घटनाओ से तिरछी आँख करते हुए एकदम से चुप्प हो गए हैं!
इस चुप्पी के दो कारण हो सकते हैं! एक, शायद इस तरह के नागिन डांस की ख़बरें जब टीवी पर आती होंगी तब उनके केबल कनेक्शन की कनेक्टिविटी कमजोर हो जाती होगी! शायद आवाज बंद हो जाती होगी! या शायद तस्वीर भी चिपक जाती होगी! वैसा ही कुछ जैसा रविश बाबू के फैन अक्सर उनके प्राइम टाइम के लिए शिकायत करते रहते हैं! भला ऐसे में नागिन डांस की खबर देखें तो कैसे! दूसरा, शायद विपक्षियों के पास मिस्टर इंडिया से भी हाई-टेक चश्मे हों, जिससे कि वे जब भी ख़बरें पढ़ते होंगे या देखते होंगे, इस तरह के नागिन डांसो की खबर अपने आप अदृश्य हो जाती होंगी!
इन दो कारणों के अलावा कोई तीसरा कारण हो ही नहीं सकता और आप सोचेंगे भी नहीं क्योकि विपक्षी पार्टियाँ सेकुलर पार्टियां है और उनके चाटु मीडिया कर्मी भी खाटी सेकुलर हैं. वे सभी धर्मो के हितो का खयाल रखते हैं! यदि हिन्दुओं और हिन्दू-वादी कार्यकर्ताओं पर दमन की ऐसी कोई भी बात होती तो वे जरूर बोलते! वे मोदी की तरह बोरिंग तो है नहीं कि चुप रहें और उनकी कमान भी तो एक युवा नेता के हाथ में है जिसको बोलना बहुत पसंद है भले ही उसका कोई आधार न हो!
खैर, कुछ भी हो आशा करता हूँ, ये आर्टिकल कैसे भी उन तक पहुँच जाए और बीते कुछ समय से पश्चिम बंगाल से आ रही हिंसा और मार-पिट की खबरों पर वे अपनी चुप्पी तोड़ें!
रामनवमी के बाद जब एक तरफ हिन्दुओ पर दमन की ख़बरें जोर पकड़ रही थी और ममता दीदी पीड़ितों जलो पर नमक छिड़कते हुए दिल्ली में तीसरा मोर्चा बनाने में व्यक्त थी तब हिंदी पट्टी की खबरियांवेबसाइटों की बात करूं तो न किसी लॉलीपॉप वेबसाइट ने इस पर कुछ लिखा नाही संज्ञान में लेना तक जरुरी समझा! शायद हिन्दुओ पर अत्याचार की ख़बरें छापने में उन्हें मारक मज़ा नहीं मिलता होगा और उन्होंने तो मम्मी की कसम भी खाई हुई हैं! इसलिए वे ऐसा कतई नहीं करेंगे!
लॉलीपॉप के अलावा कुछ वेबसाइटों के तो मानो वायर में ही शार्ट-सर्किट हो गया था इसलिए वे इस खबर को एक दूसरा एंगल देते हुए बाबुल सुप्रियो की गिरफ़्तारी की खबरों को लगातार चला रहे थे!
वहीं कुछ वेबसाइटों ने तो इस तरह की अति संवेदन-शील खबर को ही लॉन्ड्री में डाल दिया और वापस लाना भी जरुरी नहीं समझा!
इसके अलावा कुछ वेबसाइटों पर तो मैं बंगाल की खबरों को स्क्रॉल करते करते थक गया लेकिन ताज्जुब है भाजपाई राज्यों से पल-पल की ग्राउंड रिपोर्टिंग करने वाले, समीक्षा करने वाले इनके राइटर ममता दीदी और बंगाल पर खुल के कुछ लिख नहीं पा रहें!
शायद इसका आरोप भी वे मोदी पर लगा देवें!
ये सब तो ठीक था क्योकि राम के त्यौहार में इन वाम की मीडिया से कोई उम्मीद ही नहीं की जा सकती लेकिन हर बार वे जिस लोकतंत्र की दुहाई देतें है उसी का ममता राज में सरेआम गाला घोंटा जा रहा है किन्तु इनको कानो अभी भी कोई जूं तक नहीं रेंग रही!
5 अप्रैल को पश्चिम बंगाल से खबर आई कि वीरभूम और मुर्शिदाबाद में पंचायती चुनाव के नॉमिनेशन के दौरान ममता के गुंडे सरेआम बम, तलवार और देशी कट्टे लेकर सड़को पर हिंसा कर रहे हैं.
6 अप्रैल को बीते दिन से भी भयानक तस्वीर सामने आई जहाँ दीदी के गुंडे हेलमेट पहन कर योजनाबद्ध तरीके से भाजपा नेताओ की गाड़ियां तोड़ रहें थे, गाड़ियों से कार्यकर्ताओं को निकाल कर फुटबॉल की तरह पिट रहे थे और वहां सामने पुलिस की गाड़ी भी खड़ी थी लेकिन तानाशाही किसे कहते हैं यहाँ देख लीजिए! गाड़ी में से एक भी पुलिस वाले ने नीचे उतर कर भाजपा के कार्यकर्ताओं को बचने की जरुरत नहीं समझी बल्कि थोड़ी देर तक तमाशा देखने के बाद जीप ने कहीं और तमाशा देखने के लिए रफ़्तार पकड़ लीं. इस घटना से साफ साबित होता है कि पश्चिम बंगाल में जो कुछ हो रहा है, सब दीदी के इशारो पर हो रहा है और इसमें पुलिस को भी एक्शन नहीं लेने की हिदायत दी गई है!
नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते आए दिन गुजरात पुलिस को कोसने वाली ये गोदी मीडिया आज क्यों नहीं बोल रही, क्यों चुप रह कर बोरिंग बनी हुई है, सब समझ आ रहा है!