Friday, March 29, 2024
HomeHindiकांक्लेव ऋतु में पत्रकारिता-उत्सव की धूम

कांक्लेव ऋतु में पत्रकारिता-उत्सव की धूम

Also Read

anonBrook
anonBrook
Manga प्रेमी| चित्रकलाकार| हिन्दू|स्वधर्मे निधनं श्रेयः| #AariyanRedPanda दक्षिणपंथी चहेटक (हिन्दी में कहें तो राइट विंग ट्रोल)| कृण्वन्तो विश्वं आर्यम्|

भारत में मात्र ६ ऋतु नहीं हैं! सातवीं भी है, और अभी वही चल रही है। इस ऋतु को कॉनक्लेव ऋतु कहा जाता है। इसमें मीडिया घराने हर २-३ दिन में कोई कॉनक्लेव करते हैं, जहाँ विविध पत्रकार उन्हीं नेताओं-मंत्रियों से वही सवाल पूछते हैं जो कि पिछले कॉनक्लेव में पूछा गया हो। और स्वाभाविक है जवाब अपरिवर्तित ही रहता है। न नेता बदलते हैं न सवाल न ही उनके जवाब। कुछ बदलता है तो सिर्फ मीडिया घराना, पत्रकार और ‘वेन्यू’।

हाँ, एक अति चमत्कारी बात जरूर होती है इस मौसम में कि हर घराना अव्वल बन जाता है। “ज़ी” हो या “आज तक” या फिर “टाइम्स नाउ” सब के सब अव्वल ही होते हैं।

और हों भी क्यों ना? कलियुग में इस क्रूर संसार का यही विधान है। दूसरे नंबर का कोई महत्व नहीं है। अब नील आर्मस्ट्रांग को ही ले लीजिए, उन्होंने चांद पर अपने पहले कदम को संपूर्ण मानवता के लिए एक बड़ी छलांग होने का अलंकार दे दिया, पर दूसरे कदम के लिए एक शब्द भी नहीं कहा।

खैर, मैं भी कॉनक्लेव ऋतु का वर्णन करते-करते किधर भटक गया…
तो जैसा कि मैं कह रहा था, एक एक कर के सभी अव्वल न्यूज चैनल अपना-अपना कॉनक्लेव करेंगे।

इस ऋतु की एक खासियत यह भी है कि यह सिर्फ दिल्ली-मुंबई जैसे बड़े शहरों में ही देखने मिलती है। किसी आंधी तूफान की भी मजाल नहीं कि वो किसी कॉनक्लेव की खुशबू उड़ा कर बगल के फरीदाबाद या पनवेल तक भी पहुंचा दे! वैसे हम लखनऊ वाले हैं, हम क्या शिकायत करें, हम खबरों में दिखाई दे ही जाते हैं यदा कदा। बेचारे तो पूर्वोत्तर वाले हैं। दरअसल मीडियाकर्मियों की दूर की नजर कमजोर होती है तो वो कलकत्ता के आगे देख नहीं पाते हैं, बंगाल भी उन्हें धुंधला धुंधला सा ही दिखाई देता है।

मगर बड़ी विडंबना है कि कुछ ही दिनों पहले कहीं से जो ऐनक लाए थे, वो दो ही दिन में खो गई। जाने क्या वजह रही, अचानक ऐनक लाने की और फिर गुमा देने की। पूरा जीवन तो बगैर ऐनक के निकाल ही चुके थे!

अरे! मैं तो फिर भटक गया।

कॉनक्लेव के इस मौसम का स्वागत करने की एक प्रथा है। जैसे होली खेली जाती है, वैसे ही इस मौसम में भी एक पवित्र रिवाज है। इसमें पत्रकार नेताओं से ऐसे प्रश्न करते हैं जिसमें नेता फंस जाए, जैसे गत वर्ष में गडकरी बाबू ‘अच्छे दिनों’ को लेकर फंसाए गए थे। इस पारंपरिक खेल का नियम है कि नेता को फंसाने वाले सवाल में कपट होना चाहिए। कोई कॉनक्लेव और पत्रकार तभी सफल माना जाता है जब उस आयोजन में पत्रकार नेता से कुछ ऐसा बुलवा ले जाए जो बिना संदर्भ के चला कर नेता की भद्द पिटा पाने के काबिल हो।

कॉनक्लेव को सफल करने का एक और तरीका है। और वह ये कि सटीक मेहमान बुलाओ। सटीक मेहमान कोई भी हो सकता है, मगर अक्सर दो प्रकार के मेहमान आमंत्रित किए जाते हैं- कुंज मौसा जैसा कोई चरित्र (राम तेरी गंगा मैली वाले) या फिर १ सांसद वाली पार्टी का राष्ट्रिय मुस्लिम नेता जो हैदराबाद के बाहर कहीं भी ना जीतें।

पाठकों के लिए स्पष्ट किए देता हूँ- कुंज मामा के स्लॉट में अक्सर अमर सिंह जी ही होते हैं, मगर कई बार डॉ. स्वामी भी बुला लिए जाते हैं। दूसरा स्लॉट तो सभी पहचान ही गए होंगे।

जो घराने अत्यधिक अव्वल होते हैं वो इन तीनों धुरिंदेरों को बुला लेते हैं और उनका कॉनक्लेव सफलता कि पराकाष्ठा पार पहुँच जाता है। उस कॉनक्लेव के क्लिप्स हफ़्तों तक सोशल मीडिया में शेयर किए जाते हैं। लोग इन्हें देख-देख अट्ठाहस करते हैं, मुसकुराते हैं और मज़े लेते हैं।

कॉनक्लेव ऋतु का आनन्द ही कुछ और है। यह पत्रकारिता के वर्तमान स्तर पर चार चांद लगा देता है। एक से दो माह चलने वाले इस निराले लघु-उत्सव का आनन्द उठाना न भूलें।

शुभ कॉनक्लेवोत्सव!

  Support Us  

OpIndia is not rich like the mainstream media. Even a small contribution by you will help us keep running. Consider making a voluntary payment.

Trending now

anonBrook
anonBrook
Manga प्रेमी| चित्रकलाकार| हिन्दू|स्वधर्मे निधनं श्रेयः| #AariyanRedPanda दक्षिणपंथी चहेटक (हिन्दी में कहें तो राइट विंग ट्रोल)| कृण्वन्तो विश्वं आर्यम्|
- Advertisement -

Latest News

Recently Popular