क्या हमारा शासन, प्रशासन और अफसरशाही इतने पंगु हो चुके हैं कि उनके पास अब कोई भी मार्ग नहीं बचा जो कोरोना वायरस के संकट के मध्य गया की परंपरा को अनवरत रख सके?
इस वर्ग ने जैसे ही पतंजलि और विशेषकर आयुर्वेद का नाम सुना, इसके गुर्दों का कीड़ा तिलमिला उठा। ठीक वैसे ही जैसे नाली में दवा डालने के पश्चात बदबूदार कीड़े तिलमिला उठते हैं।
2014 के बाद से कांग्रेस सत्ता से दूर हो जाती है और यह ध्यान देने योग्य विषय है कि सत्ता से दूर रहने वाली कांग्रेस, सत्ता में रहने वाली कांग्रेस से अधिक घातक हो जाती है।
कई राज्यों में हिन्दू 2%-5% होने के बाद भी बहुसंख्यक एवं मुस्लिम व ईसाई 90%-95% की संख्या में होने के बाद भी अल्पसंख्यक हैं। है न रोचक बात। तो ऐसे ही रोचक तथ्यों के बारे में जानने के लिए पढ़िए यह लेख।
अखंड भारत का केंद्र बिंदु रहे कश्मीर का पिछली कुछ शताब्दियों का इतिहास हिन्दुओं के रक्त से रंजित है। इस इतिहास के हर पन्ने में आपको दिखाई देंगे असंख्य हिन्दू मंदिरों के अवशेष, जलाए गए हिन्दू धर्मग्रंथों की भस्म, रोते-बिलखते हिन्दू और कश्मीर की गलियों में पड़े उनके मृत शरीर।
अब्दुल मियाँ की दुकान बढ़िया दूर से ही पहचान में आ जाती है। दसियों हरे झंडे दिखाई देते हैं। यही तो पहचान है जिसे गाँव के बुद्धिजीवी किलोमीटर से सूंघ लेते हैं।
भारत एक ऐसा धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र जहाँ हिन्दुओं के विषय तो कुछ भी कहा जा सकता है किन्तु मुसलमानों और ईसाईयों के विषय में कुछ कहना तो दूर सोचना भी अपराध है। संविधान द्वारा प्रदान की गई पूरी फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन मात्र हिन्दू धर्म और सनातन में पूज्य देवी-देवताओं पर अभद्र टिप्पणियां करने में उपयोग में लाई जाती है।
भारत के इन सेक्युलर, लिबरल और वामपंथियों को यह रास नहीं आया कि भगवा धारण करने वाला एक हिन्दू सन्यासी कैसे भारत के सबसे बड़े राज्य का प्रशासक हो सकता है। लेकिन यह हुआ।
मंदिर हमारी धार्मिक और आध्यात्मिक आस्था के केंद्र रहे हैं। सनातन धर्म की स्थापना में मंदिरों का योगदान सहस्त्राब्दियों से सर्वोच्च रहा है। ऐसे में हम कुछ दो चार पाखंडी वामपंथियों और विधर्मियों के हाथों अपने धार्मिक केंद्रों का नाश नहीं होने देंगे। हमें विरोध करना होगा।