एक कहावत है कि एक झूठ को यदि अनेकों बार बोला जाए तो वह सच लगने लगता है। कांग्रेस सदैव ही इस कहावत का पालन करती है। हाल ही में भारत और चीन के मध्य संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई है। चीन ने गलवान घाटी में हमारे सैनिकों पर धोखे से हमला किया जिससे हमारे 20 बहादुर सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। ऐसा नहीं है कि मात्र हमारे सैनिकों को ही नुकसान हुआ है। चीन को भी एक बड़ी सैन्य हानि हुई है। इस संघर्ष में उसके सैनिक मारे गए हैं और इतना निश्चित है कि उसके मरे सैनिकों की संख्या कहीं अधिक है। किन्तु जैसा चीन सदैव करता आया है, आंकड़ों को गुप्त रखना, आज भी वही कार्य कर रहा है।
अब चीन को कुछ क्षणों के लिए किनारे करते हैं और बात करते हैं भारत की राजनीति में अपना एक अलग स्थान रखने वाली कांग्रेस की। कांग्रेस भारत के अंदर एक दीमक के समान है जो लगातार भारत को भीतर से निर्बल करने का कार्य कर रही है। वर्तमान भारत-चीन संघर्ष की विषम परिस्थितियों में भी कांग्रेस अवसर ढूंढ रही है जिससे भारत की राजनैतिक स्थितियों को अस्थिर किया जा सके।
इस लेख में हम कांग्रेस के इसी व्यवहार के विषय में चर्चा करेंगे। इतिहास में बहुत पीछे न जाते हुए हम 2014 के बाद से ही कांग्रेस के व्यवहारिक परिवर्तन का पोस्टमार्टम करेंगे। 2014 के बाद से कांग्रेस सत्ता से दूर हो जाती है और यह ध्यान देने योग्य विषय है कि सत्ता से दूर रहने वाली कांग्रेस, सत्ता में रहने वाली कांग्रेस से अधिक घातक हो जाती है।
पहले बात करते हैं आतंकी हमलों और उसके बाद हुई जवाबी कार्यवाही के समय कांग्रेस की प्रतिक्रिया की।
जनवरी 2016 में पठानकोट वायु सेना स्टेशन पर पाकिस्तान समर्थित इस्लामिक आतंकियों द्वारा हमला होता है। इस हमले का उद्देश्य था भारत के रणनीतिक क्षेत्र में हमला करके विमानों को नुकसान पहुँचाना।
इसके पश्चात 18 सितम्बर को एक बार फिर से भारतीय सेना के ब्रिगेड हेडक्वार्टर उरी में आतंकी हमला होता है जिसमें हमारे 17 वीर मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इसके पश्चात दो और जवान अस्पताल में दम तोड़ देते हैं।
अब तीसरा एक और हमला होता है पुलवामा में। 14 फरवरी 2019 को हुए इस हमले में 40 सीआरपीएफ के जवान वीरगति को प्राप्त होते हैं। इस हमले में जैश का एक आत्मघाती हमलावर आरडीएक्स से भरे वाहन से सीआरपीएफ के जवानों को ले जा रही एक बस को टक्कर मार देता है।
इसके अलावा कई आतंकी हमले हुए किन्तु ये आतंकी हमले वीभत्स थे और इन हमलों के बाद कांग्रेस की प्रतिक्रिया ध्यान देने योग्य है।
सबसे पहला सवाल जो कांग्रेस इन हमलों के बाद करती है वह खुफिया तंत्र की असफलता का होता है। 2014 के पहले कांग्रेस स्वयं सरकार में 10 वर्षों के लिए रह चुकी है। ऐसे में उसे इतना ज्ञान है कि खुफिया तंत्र की सफलता हो अथवा असफलता, उसकी किसी भी तरह की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। लेकिन फिर भी कांग्रेस खुफिया तंत्र पर सवाल करती है और उसी पर सरकार को घेरने का प्रयास करती है। कांग्रेस जानती है कि सरकार इस विषय में कोई उत्तर नहीं देगी लेकिन फिर भी उसके द्वारा खुफिया तंत्र की विफलता का प्रश्न बार बार उठाया जाता है। कांग्रेस ऐसा इसलिए करती है जिससे सरकार द्वारा उत्तर प्राप्त न हो पाने की स्थिति में सरकार की विफलता का प्रचार प्रसार किया जा सके। लोगों में यह धारणा विकसित की जा सके कि सरकार का खुफिया तंत्र विफल हो चुका है।
इन हमलों के बाद कांग्रेस की एक दूसरी प्रवृत्ति देखने को मिलती है। कांग्रेस का पहला हमला सीधे सरकार पर होता है। जो आतंकी संगठन सीधे सीधे इस हमले की जिम्मेदारी लेते हैं उनके विषय में कांग्रेस किसी भी प्रकार के कठोर शब्द कहने से बचती है। कांग्रेस के द्वारा की गई पाकिस्तान की आलोचना में भी औपचारिकता ही दिखती है। कांग्रेस जिस प्रकार से सरकार पर हमला करती है, उस गंभीरता से पाकिस्तान अथवा आतंकी संगठनों के विषय में कांग्रेस का कोई भी बयान नहीं आता है।
कांग्रेस और इन हमलों से जुड़ा हुआ तीसरा मुद्दा घातक है। यह मुद्दा है, आतंकी हमलों के राजनीतिकरण का। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कांग्रेस का जनाधार लगातार सिकुड़ता जा रहा है। इस सिकुड़ते जनाधार को रोकने और बचे हुए जनाधार को रोमांचित करने के लिए कांग्रेस आतंकी हमलों को भाजपा के निजी लाभ के रूप में प्रसारित करती है। इन हमलों के बाद सदैव ही कांग्रेस का कोई क्षेत्रीय अथवा अक्रिय नेता यह सवाल करता है कि क्या यह हमला किसी चुनावी लाभ से सम्बंधित तो नहीं है। अप्रत्यक्ष रूप से उनके कहने का तात्पर्य होता है कि चुनावी लाभ लेने के लिए भाजपा ऐसे हमलों की साजिश कर सकती है। पुलवामा हमले के एक वर्ष पूरे होने पर राहुल गाँधी ने ट्वीट करके तीन प्रश्न किए थे जिनमें पहला ही प्रश्न यही था कि इस हमले से किसे लाभ हुआ ? सैनिकों के बलिदान को किसी लाभ से जोड़ने का कार्य मात्र कांग्रेस ही कर सकती है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि ऐसे प्रश्न अज्ञानता में नहीं अपितु जानबूझकर पूछे जाते हैं। इन प्रश्नों का उद्देश्य होता है आम जन में एक अविश्वास का भाव पैदा करना। हालाँकि राष्ट्र हित में विचार करने वाले आम लोगों में कांग्रेस के इस षड़यंत्र का कोई प्रभाव नहीं होता है किन्तु कांग्रेस के अंध समर्थक इस झूठ को कई दिनों तक आम जनों में अपनी अपनी क्षमता के अनुसार गाते रहते हैं।
अब होती है भारत की जवाबी कार्यवाही।
उरी में हुए आतंकी हमले के बाद उच्च स्तरीय बैठकें होती हैं और वहां पीओके में स्थित आतंकी अड्डों पर सर्जिकल स्ट्राइक की योजनाएं बनाई जाती हैं। उरी हमले के दस दिन बाद भारतीय सेना के सर्वश्रेष्ठ कमांडो एलओसी पार करके पीओके में घुसकर आतंकी ठिकानों को नष्ट करते हैं और लगभग 150 से 200 आतंकियों को दर्दनाक मौत देकर सकुशल वापस आते हैं।
दूसरी बार जब सीआरपीएफ के जवानों पर क्रूरतम आतंकी हमला होता है तब उसके बाद इस आतंकी हमले का बदला लेने के लिए जैश के ठिकानों को भारतीय वायुसेना निशाना बनाती है। 26 फरवरी आधी रात के बाद भोर के समय में भारतीय वायुसेना के विमान एलओसी पार करके बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों को लक्ष्य करके बमबारी करते हैं और उन आतंकी ठिकानों के नष्ट हो जाने के बाद सकुशल लौट आते हैं। इस हमले में मारे गए जैश के आतंकियों की संख्या 350 से 400 के बीच थी।
भारत की इन जवाबी कार्यवाहियों के पश्चात कांग्रेस की प्रतिक्रिया मिलीजुली और कूटनीतिक होती है। कांग्रेस इन कार्यवाहियों के आंकड़ों पर संदेह प्रकट करती है। जिस प्रकार पाकिस्तान और आतंकी संगठन अंतिम तक भारत की ओर से हुए हमलों को नकारते रहते हैं, कांग्रेस भी उसी प्रकार से सीधी भाषा का प्रयोग न करते हुए सेना के दावों पर आशंकाएं व्यक्त करती है। कांग्रेस सबूत मांगती है और सरकार पर सबूत जारी करने के लिए दबाव बनाती है। कांग्रेस सीधे सीधे सेना पर प्रश्न खड़ा नहीं कर सकती क्योंकि उसे सेना के प्रति लोगों के भीतर उपस्थित सम्मान और गर्व का अनुमान है किन्तु वास्तव में सरकार के बहाने कांग्रेस सेना पर भी प्रश्न खड़े करती है। यह एक तथ्यात्मक पहलू है कि वायुसेना हमला करने के बाद अपने विमान नीचे उतारकर आतंकियों की लाशों को गिनने नहीं जाएगी और आतंकियों की पुख्ता सूचना प्राप्त हुए बिना इतना बड़ा सैन्य ऑपरेशन भी नहीं करेगी किन्तु फिर भी कांग्रेस शंका का माहौल बनाती है। कांग्रेस की भी प्रवृत्ति ऐसी है कि वह सरकार के किसी भी स्त्रोत का विश्वास नहीं करेगी और न ही लोगों को करने देगी। अंतिम समय तक कांग्रेस सरकार और सेना के प्रति लोगों में अविश्वास का भाव जागृत करने के प्रयत्न में जुटी रहती है।
कांग्रेस और चीन :
भारत और चीन का सीमा विवाद बना ही रहता है। चीन अपनी विस्तारवादी नीति के कारण सदैव ही भारत के हितों को कुचलने का प्रयास करता रहता है। 2014 के बाद केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद भारत की चीन आधारित नीति में परिवर्तन हुआ है। भारत के द्वारा हुए इस बदलाव के कारण चीन बौखलाया हुआ है। चीन की यही बौखलाहट डोकलाम और अब गलवान घाटी में देखने को मिली।
जून-जुलाई 2017 में डोकलाम में भारत और चीन की सेना का विवाद हुआ। चीन डोकलाम में अवैध रूप से सड़क का निर्माण कर रहा था। अब चूँकि जिस स्थान पर चीन सड़क का निर्माण कर रहा था वह स्थान विवादित था और वहां चीन की उपस्थिति रणनीतिक रूप से भारत के हित में नहीं है। भारत ने चीन का विरोध किया जिससे भारत और चीन के मध्य सेनाओं का गतिरोध प्रारम्भ हो गया।
वर्तमान समय में भारत अपनी सीमा सुरक्षा के लिए गंभीर है और चीन एवं पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों से अपनी सीमाओं की सुरक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसी प्रतिबद्धता के चलते भारत द्वारा सीमाओं पर रणनीतिक सडकों एवं पुलों का निर्माण शीघ्रता से कर रहा है। भारत की इसी सजगता से चीन बुरी तरह से बौखलाया हुआ है। चीन की इसी बौखलाहट का परिणाम है गलवान घाटी का सैन्य संघर्ष। चीन ने हमारे सैनिकों पर धोखे से हमला कर दिया। हमारे सैनिकों पर किया गया कायराना हमला चीन की असंतुलित मानसिक स्थिति को बताता है। भारत में प्रारम्भ हुए चीन के आर्थिक बहिष्कार और वैश्विक मंचों पर कोरोना वायरस के कारण लगातार अलग थलग पड़ रहे चीन की स्थिति अब पहले जैसी नहीं रही है। चीन लगातार लज्जित हो रहा है। वर्तमान भाजपा सरकार ने चीन के प्रति आक्रामक रवैया अपनाया है। चीन को भारत की ओर से इस प्रकार के आक्रामक व्यवहार की आदत नहीं है क्योंकि पहले की सरकारें चीन के झुकती आई हैं।
अब यहाँ भी हम कांग्रेस की नीच राजनीति देख सकते हैं। जब विश्व के कई अन्य देश, भारत की ही कई विपक्षी पार्टियां चीन के साथ प्रारम्भ हुए इस संघर्ष में भारत का समर्थन कर रही हैं, ऐसी स्थिति में कांग्रेस, सरकार से प्रश्न पूछने का ढोंग कर रही है। भारत के वामपंथी भी चीन की निंदा करने के स्थान पर सरकार को घेरने का प्रयास कर रहे हैं। हालाँकि वामपंथी अपने वैचारिक पिता चीन की विस्तारवादी नीतियों का कोई विरोध नहीं करेंगे किन्तु कांग्रेस भारत में रहकर चीन का एजेंडा चलाने का कार्य कर रही है।
कांग्रेस नेताओं के बयानों को देखें तो स्पष्ट रूप से यह समझ आता है कि इनकी मंशा है भारत सरकार को जनता के सामने कमजोर साबित करना। चीनी प्रोपोगंडा फैलाने वाले चीन के अधिकारियों और नेताओं के ट्वीट अथवा बयान देखें तो पता चलता है कि कांग्रेसी नेताओं के शब्द उन चीनियों से भिन्न हैं किन्तु भाव एक ही है। चीन के साथ संघर्ष शुरू होते ही गाँधी परिवार अधिक सक्रिय हुआ है। सोनिया और राहुल बार बार एक ही सवाल पूछ रहे हैं कि सरकार ने भारत की जमीन चीन को क्यों दे दी? प्रधानमन्त्री स्पष्ट कर चुके हैं कि भारत की भूमि का एक इंच भी चीन के कब्जे में नहीं है किन्तु कांग्रेस अपनी उसी पुरानी आदत (एक झूठ को हजार बार बोलना) के कारण लोगों के मन में शंका उत्पन्न करना चाहती है। कांग्रेस वर्तमान परिस्थितियों में सरकार को अस्थिर करना चाहती है। पाकिस्तान, चीन और कांग्रेस तीनों ही यही चाहते हैं कि भारत में केंद्र में भाजपा की सरकार न हो।
डोकलाम विवाद के समय भी कांग्रेस अपना एजेंडा चला रही थी। राहुल गाँधी स्वयं चीन के राजदूत से मिला था लेकिन कांग्रेस ने इस मीटिंग का कोई कारण नहीं बताया था। उसके बाद कांग्रेस का सरकार पर हमला तेज हो गया था।
वर्तमान में कांग्रेस, सरकार से गलवान घाटी की स्थिति जानना चाहती है। कांग्रेस भारत की कूटनीतिक और रणनीतिक तैयारियों के बारे में जानना चाहती है। कांग्रेस को यह ज्ञात है कि सरकार कभी भी अपनी रणनीति सार्वजनिक नहीं करेगी किन्तु कांग्रेस फिर भी वही प्रश्न दोहराती है जिससे जनता के सामने यह सन्देश जाए कि सरकार कुछ छुपा रही है।
सोनिया गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस की हालत खराब होती जा रही है। सत्ता के लालच में कांग्रेस अब भारत विरोधी हरकतों पर उतारू है। आपको याद होगा कि वो कांग्रेस ही थी जिसने राफेल का सर्वाधिक विरोध किया था। कांग्रेस राफेल की खरीदारी को रोकने के लिए उच्चतम न्यायालय तक पहुँच गई थी। उद्देश्य एक ही था, राफेल को भारत आने से रोकना। जबकि वायुसेना और सरकार बता चुके थे कि राफेल भारत के लिए कितना आवश्यक है। आज कांग्रेस पूरी तरह से असहिष्णु हो चुकी है। कांग्रेस सत्ता से दूर रहकर लगातार घातक होती जा रही है। हालाँकि चीन के मुद्दे पर कांग्रेस को कुछ भी कहने का नैतिक अधिकार नहीं है क्योंकि 1962 में कांग्रेस के महानतम प्रधानमंत्री नेहरू ने जो भी किया उसे भारतवासी कभी नहीं भूल सकते। सोनिया कांग्रेस एक राजनैतिक जहर है जो भारत विरोधी है और असहिष्णु है। इसका उद्देश्य मात्र सत्ता की प्राप्ति है न कि भारत का कल्याण।