भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है।
है क्या?
संविधान तो ऐसा ही कहता है।
तो आइए पहले जान लेते हैं कि संविधान भारत की धर्मनिरपेक्षता के विषय में क्या कहता है।
संविधान के अनुच्छेद 25-28 में अंतःकरण और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता का वर्णन किया गया है।
संविधान के अनुसार भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है जो सभी धर्मों के प्रति निष्पक्ष भाव रखता है। धर्मनिरपेक्षता का आधार है कि राज्य (संविधान में किसी भी वैधानिक ईकाई को राज्य कहा जाता है) व्यक्ति और ईश्वर के बीच संबंधों में हस्तक्षेप नहीं करेगा। यह सम्बन्ध व्यक्ति के अंतःकरण का विषय है।
यह हिन्दू धर्म और अन्य मजहबों के लिए संयुक्त रूप से सत्य है।
(हालाँकि व्यवहारिक तौर पर ऐसा नहीं है)
बाकी मजहबों के लिए तो राज्य पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष हैं किन्तु हिन्दू धर्म को इस संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता का सबसे अधिक नुकसान झेलना पड़ा। तुष्टिकरण के सबसे बड़े शिकार हुए हिन्दू मंदिर और हिन्दू धार्मिक संस्थाएं।
इस लेख में हम, हिन्दू मंदिरों और उनकी सम्पत्तियों पर सरकारी नियंत्रण तथा उनके दुरूपयोग के विषय में जानेंगे।
हाल ही में आंध्रप्रदेश में वायएस जगन रेड्डी की सरकार द्वारा तिरुपति स्थित भगवान वेंकटेश्वर मंदिर की संपत्ति बेचने का आदेश दिया गया। भगवान बालाजी की सम्पदा सदैव ही आंध्र सरकार की कुदृष्टि में बनी रही। हालाँकि हिन्दुओं और उनके संगठनों के विरोध के कारण वर्तमान मुख्यमंत्री जगन रेड्डी को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा। इसके पहले जगन सरकार ने ही तिरुमला तिरुपति देवस्थानम बोर्ड में गैर हिन्दू की नियुक्ति का निर्णय दिया था जिसे भी विरोध के कारण वापस लेना पड़ा।
सबरीमाला के विषय में आप सभी जानते हैं जहां केरल की वामपंथी सरकार ने सबरीमाला की सहस्त्राब्दियों पुरानी परंपरा को नष्ट करने के लिए अपने सारे संसाधन झोंक दिए।
इसके अलावा हाल ही में सुब्रमण्यन स्वामी की याचिका पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को चार धाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम 2019 पारित किए जाने के विषय में दो सप्ताह में जवाब देने का आदेश दिया है। उत्तराखंड सरकार ने एक अधिनियम पारित किया जिसके द्वारा केदारनाथ और बद्रीनाथ समेत 51 मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण स्थापित हो जाएगा। इसी अधिनियम के विरोध में सुब्रमण्यन स्वामी ने याचिका दायर की है।
ये उदाहरण नगण्य हैं क्योंकि ऐसी कितनी ही घटनाएं हैं जब हिन्दू मंदिरों को सरकारों के नियंत्रण का दंश झेलना पड़ा। भारत भर के लगभग 9 लाख मंदिरों में से 4 लाख मंदिर राज्यों की सरकारों के नियंत्रण में हैं। अब इन 4 लाख मंदिरों में भी हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थ सम्मिलित हैं। जैसे तिरुपति बालाजी मंदिर, श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर, गुरुवयूर मंदिर, पूरी जगन्नाथ मंदिर, वैष्णो देवी, केदारनाथ और बद्रीनाथ। सूची बहुत लम्बी है जिसमे भारत का लगभग प्रत्येक प्रमुख हिन्दू मंदिर सम्मिलित है। ऐसा मुस्लिमों और ईसाईयों के साथ नहीं है। उनकी धार्मिक संस्थाओं पर सरकार का किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं है। भारत में मुस्लिम और ईसाई अपने मस्जिदों और चर्चों का प्रबंधन करने के लिए स्वतंत्र हैं। भारत में लगभग 15 ऐसे राज्य हैं जहाँ की सरकारें मात्र हिन्दू मंदिरों पर पूर्ण नियंत्रण रखती हैं।
समझने वाली बात ये है कि हिन्दू मंदिर सरकार के नियंत्रण में आए कैसे?
मुगलों और अंग्रेजों में हिन्दू मंदिरों की संपत्ति के दुरूपयोग की प्रवृत्ति रही। स्वतंत्रता के पश्चात इस प्रवृत्ति ने एक वैधानिक रूप लिया जब 1951 में हिन्दू धार्मिक एवं धर्मार्थ निधि अधिनियम (HRCE Act) अस्तित्व में आया। इसका उद्देश्य था हिन्दू धार्मिक संस्थाओं के प्रशासन और प्रबंधन को सरकारों की दया में छोड़ देना। इसके अस्तित्व में आने के बाद हिन्दुओं द्वारा लगातार इसका विरोध होता आया है किन्तु तब तक लाखों मंदिर सरकार के नियंत्रण में चले गए।
संविधान और HRCE Act :
कोई भी ऐसी योजना अथवा निर्णय जो ईश्वर के प्रति श्रृद्धा अथवा आस्था में दिए गए दान अथवा धर्मार्थ निधि पर नियंत्रण का प्रयास करे, संविधान के अनुच्छेद 25 तथा 26 के द्वारा प्रदत्त धर्म आचरण की स्वतंत्रता एवं संपत्ति के प्रशासन के अधिकार का उल्लंघन करता है।
दूसरा मुद्दा यह सामने आता है कि अंततः हिन्दू धार्मिक संस्थाओं की बहुमूल्य निधि तथा संपत्ति पर किसका स्वामित्व है?
संविधान धार्मिक संस्थाओं को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान करता है। ऐसे में मंदिरों की सम्पत्ति पर मात्र वहां के इष्टदेव का अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 26 और 31क के प्रयोग से मंदिर अपनी स्वायत्तता को सुरक्षित रख सकते हैं। उनकी संपत्ति न तो सार्वजनिक है और न ही सरकार के नियंत्रण में।
भारत का न तो कोई राज्य धर्म है और न ही भारतवर्ष के भीतर किसी विशिष्ट मजहब को कोई सहायता दी जाएगी। लेकिन इसका अर्थ बदल दिया गया। भारत में हिन्दू धर्म को लगातार नियंत्रित करने का प्रयास किया गया जबकि दूसरे पंथों या मजहबों को सम्पूर्ण स्वतंत्रता की गई। कई बार ऐसी घटनाएं हुईं जब हिन्दू मंदिरों की संपत्ति का उपयोग चर्चों अथवा मस्जिदों के रखरखाव के लिए किया गया। इसके उदाहरण लेख में आगे दिए जाएंगे।
मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण का प्रभाव :
हिन्दू मंदिरों पर सरकार के बढ़ते नियंत्रण का प्रभाव प्रतिकूल ही हुआ, जिसमें गैर हिन्दू अथवा हिन्दू विरोधियों की ही नियुक्ति प्रमुख है। अब राज्यों के नियंत्रण का प्रमुख दोष यही है कि इन नियुक्तियों में राजनेता, अफसर एवं अन्य राजनीति प्रेरित व्यक्ति सम्मिलित हैं।
हिन्दू मंदिरों में अव्यवस्था एवं भ्रष्टाचार के नाम पर सशक्त हुए राज्य नियंत्रण से इन दोनों में भयानक वृद्धि हुई। कई मंदिरों के नित्य कार्यों में भी अड़चने आने लगीं। पुजारियों और कर्मचारियों के वेतन से लेकर परम्पराओं और उत्सवों के आयोजन में खर्च होने वाली धनराशि लगातार कम होती गई।
हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा प्रकाशित एक लेख में बताया गया है कि कैसे कर्नाटक में एक समय सरकार द्वारा मंदिरों से प्राप्त किए गए 72 करोड़ रूपए के राजस्व में से 50 करोड़ रूपए मदरसों एवं 10 करोड़ रूपए चर्चों के लिए दे दिए गए थे।
मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ने के साथ ही अव्यवस्था भी बढ़ती गई। इनमें मंदिरों सम्पत्तियों को बेचना एवं मंदिरों की हुंडी में एकत्र धनराशि का दुरूपयोग भी सम्मिलित है। राज्य द्वारा हिन्दुओं पर अत्यधिक नियंत्रण का सबसे बड़ा उदाहरण हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल तिरुपति मंदिर है जहां मंदिर की संपत्ति को हड़पने के लिए ईसाईयों द्वारा लगातार षड़यंत्र किए जाते हैं।
आपको कैसा लगेगा जब आपके पूज्य मंदिरों से आपके इष्टदेव की मूर्ति चोरी हो जाए और कई वर्षों बाद विदेश में किसी संग्रहालय में रखी हुई मिले। सरकारी नियंत्रण बढ़ने से ऐसी घटनाएं भी बढ़ती गईं। इसके अतिरिक्त आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि अकेले तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में मंदिरों की हजारों हैक्टेयर भूमि पर सरकार का नियंत्रण है। हिन्दू मंदिरों की भूमि पर सरकारों का नियंत्रण लगातार बढ़ता जा रहा है।
भारत की एकतरफा धर्मनिरपेक्षता की यही विशेषता है कि यहां मस्जिदों, मदरसों अथवा चर्चों को कभी ये नहीं कहा जाएगा कि उनके द्वारा अपनी संपत्ति का हिसाब दिया जाए अथवा सरकार उनकी हजारों एकड़ जमीन पर अपना नियंत्रण स्थापित करे। इसके उलट मंदिरों से प्राप्त राजस्व का उपयोग सरकारों द्वारा अपनी तुष्टिकरण की राजनीति की पूर्ति में किया जाता रहा है, जिसके अंतर्गत मस्जिदों और चर्चों के खर्चों की भरपाई करना भी सम्मिलित है।
आज ऐसे नेताओं, वामपंथियों अथवा बुद्धिजीवियों की कमी नहीं है जो आए दिन मंदिरों की सम्पत्तियों और सम्पदाओं पर गिद्धदृष्टि जमाए रहते हैं। ये ऐसे लोग हैं जिनकी अपनी सम्पत्तियाँ हजारों करोड़ रुपयों की होंगी किन्तु ये उसमें से एक ढेला नहीं खर्चना चाहते हैं। इनकी समस्या यही है कि मंदिरों के पास अकूत धन है और उसका उपयोग जनकल्याण में क्यों नहीं हो रहा है। इन्हे मंदिरों द्वारा चलाए गए विद्यालयों, अस्पतालों और अन्य समाज कल्याण केंद्रों के विषय में कुछ भी नहीं पता अथवा ये जानने के इच्छुक भी नहीं हैं। इनकी आँखों के सामने हिन्दू घृणा का पर्दा लगा हुआ है जो इन्हे हिन्दू संस्थाओं द्वारा किए जाने वाले कल्याण कार्यों को देखने नहीं देता। ऐसे वामपंथी और बुद्धिजीवी जिनका जीवन लूट कर खाने में व्यतीत हुआ, उन्हें आज मंदिरों की संपत्ति सुलभ प्रतीत हो रही है।
आज हमें ऐसे लोगों को पहचानना होगा जिनकी हिन्दुओं के प्रति घृणा उनके मंदिरों तक पहुँच चुकी है। सरकारें जो सदैव से ही भ्रष्टाचार और अनीति से भरी रहीं, आज मंदिरों की अव्यवस्था का हवाला देकर मंदिरों पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहती हैं। मंदिर हमारी धार्मिक और आध्यात्मिक आस्था के केंद्र रहे हैं। सनातन धर्म की स्थापना में मंदिरों का योगदान सहस्त्राब्दियों से सर्वोच्च रहा है। ऐसे में हम कुछ दो चार पाखंडी वामपंथियों और विधर्मियों के हाथों अपने धार्मिक केंद्रों का नाश नहीं होने देंगे। हमें विरोध करना होगा। सरकार कोई भी हो, यदि वह मंदिरों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास करती है तो हमें विरोध करना चाहिए। विरोध किसी भी रूप में हो किन्तु विरोध होना चाहिए। आज आवाज नहीं उठाएंगे तो तुष्टिकरण की महत्वाकांक्षा में लिप्त सरकारें हमारे मंदिरों को बेच देंगीं। हम कोई भी हों, लेकिन यदि हम हिन्दू हैं तो हमें अपने स्वरों को ऊँचा रखना होगा जिससे जनप्रतिनिधियों और जिम्मेदारों तक हमारी बात पहुंचे। मंदिर हमारे अपने हैं और मंदिरों में विराजे इष्टदेव भी हमारे ही हैं। ऐसे में यह कर्तव्य भी हमारा है कि हम अपने धर्म केंद्रों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहें।
जय श्री राम।।