सम्पूर्ण ब्रह्मण्ड में व्याप्त समस्त चराचर जगत का एक मात्र धर्म सनातन और उसके पवित्र पुस्तकों अर्थात, वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण, महाभारत, गीता और मनुस्मृति इत्यादि द्वारा व्यक्त अध्यात्म की अनंत शक्ति ने समस्त ब्रह्माण्ड को अपने आकर्षण में बाँध रखा है।
१ और १ मिलकर २ बनाये सनातन धर्म ने तब जाके गणितशास्त्र का जन्म हुआ। शून्य और दशमलव ने गणित को अत्यंत उचाइयां प्रदान की और अंकगणित, बिजगणित, तिरकोणमिति जैसे अनेक विधाओं का जन्म हुआ। जंगल और रेगिस्तान में निवास करने वाले यूरोप और अरब के लोग इन विधाओं को प्राप्त कर आश्चर्य में पड़ गये और उन्होंने इसका अध्ययन किया और अपने नाम से पेंटेट करा के प्रकाशित करा लिया।
मित्रों जब १ और १ को मिलाकर ११ बनाये सनातन धर्म ने, तब जाके “संगठन” या “सहचर्य” का आधार बना। और संगठन की अवधारणा ने हि, समुदायिक और समाजिक व्यवस्था को जन्म दिया।
मित्रों जब १और १ मिलाकर भी १ का हि निर्माण किया सनातन धर्म ने तब जाकर “प्रेम” की पवित्र भावना का उदय हुआ। इस प्रेम ने “वसुधैव कुटुंबकम” और ” कण कण में भगवान” के सिद्धांत को स्थापित किया।
और फिर जब १ और १ मिलकर “शून्य” कर दिये सनातन धर्म ने तब जाकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड “अध्यात्म” क्या है, ये समझ पाया। और इस अध्यात्म ने ही विज्ञान की उत्पत्ति की।
मित्रों “शून्य” अर्थात कुछ भी नहीं, जब आत्मा पूर्णरूपेण परमात्मा के ध्यान में अंतर्धान हो जाए और अस्तित्वान होते हुए भी अपने अस्तित्व को छोड़ दे तो वह शून्यता के शिखर को स्पर्श कर लेती है और ज्ञान का प्रकाश से वाह ओत प्रोत हो जाती है।
मित्रों सनातनीय परम्परा में छ: दर्शनशास्त्र हैँ जिसमें महान वैज्ञानिक कणाद का “वैशेषिका सुत्र” है, महान योग वैज्ञानिक पतंजली का “योग सुत्र” है। भगवान कपिल मूनी “सांख्य दर्शन” है। “न्याय दर्शन” को महान वैज्ञानिक और महर्षि “गौतम” ने दिया था। “मीमांसा दर्शन” इसका प्रतिपादन महर्षि जैमिनी ने किया था और फिर है “वेदान्त दर्शन”आदि शंकराचार्य ने जिस अद्वैतवाद और वेदान्त दर्शन को आगे बढ़ाया ये वही दर्शन है।
ये अध्यात्म की ही शक्ति थी कि “प्रत्येक ब्रह्माण्ड में एक नहीं कै सूर्य हैँ और सभी गतिशील हैँ” इस अकाट्य तथ्य की जानकारी हजारों लाखों वर्ष पूर्व यजुर्वेद में समाहित कर दी गयी थी, जिसे २० वीं शताब्दी के अंत में यूरोप द्वारा ढूंढा जा सका।
ये अध्यात्म की हि शक्ति थी जिसने भारतीय खगोल शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र को जन्म दिया, जिसने हजारों, लाखों वर्ष पूर्व हि चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण के गणना की सटीक जानकारी प्रदान कर दी, जिसका उपयोग NASA अपने अतिशक्तिशाली दूरबीन हिबेल के अस्तित्व में होने के पश्चात भी सही जानकारी प्राप्त करने के लिए करता हैं ।
कुछ मजहबी किताबों में पृथ्वी आज भी चपटी है और सूर्य सहित सारे ग्रह इसके चक्कर लगाते हैँ, जबकी सनातन धर्म ने अपने अध्यात्म से जन्में विज्ञान के आधार पर सदियों पहले बता दिया था कि पृथ्वी गोल (अंडाकार) है और यह अपने धूरी पर घूमती हुई अन्य ग्रहों और उपग्रहों की भांति सूर्य का चक्कर लगाती है।
हमारे अध्यात्म से जन्में विज्ञान ने सर्वप्रथम बताया कि सम्पूर्ण ब्रह्मण्ड पांच तत्वों अर्थात, अग्नि, वायु, जल, आकाश और पृथ्वी से मिलकर बना है।
हमारे अध्यात्म से जन्में विज्ञान ने हि व्याकरणयुक्त सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत का उदभव किया था। ये अध्यात्म की हि शक्ति है जिसने संगणक को समझ में आने वाली भाषा का अविष्कार किया। ये अध्यात्म से जन्में विज्ञान की हि शक्ति थी कि विश्व में सर्वप्रथम “परमाणु सिद्धांत” का प्रतिपादन महान वैज्ञानिक “कणाद” ने अपनी पुस्तक “वेशेषिका सूत्र” में किया था, जिसे “डाल्टन” ने अपने नाम से प्रकाशित करवा लिया था।
हे मित्रों कौन भूल सकता है आर्यभट्ट को जिन्होंने अपने अध्यात्म के विज्ञान के ज्ञान से ग्रहों और उपग्रहों की स्थिति का पता लगाया और उसका सटीक वर्णन अपनी पुस्तक में किया, जिसे यूरोप के हि एक अन्य वैज्ञानिक ने अपने नाम से छपवा लिया।
कौन भूल सकता है, बौद्धायन के सूत्र को जो की ग्रीस जाने के पश्चात पैथागोरस के प्रमेय के रूप में स्थापित कर दिया गया।
१:-मित्रों जब हम चूल्हे की राख से शौच करने पश्चात हाथ स्वच्छ करते थे तो उसका वैज्ञानिक आधार था, परन्तु चिकनाई वाले साबुन से हाथ स्वच्छ करने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं;
२:-जब हम निम के दातुन से दाँत स्वच्छ करते थे, तो इसके पीछे वैज्ञानिक आधार था, परन्तु केमिकल से बने टूथपेस्ट से दाँत स्वच्छ करने का कोई आधार नहीं;
३:- जब हम आंगन में तुलसी जी का पौधा लगाकर प्रात:काल जब सूर्य को जल से अर्ध्य देते थे, तो उसके पीछे वैज्ञानिक आधार था, परन्तु शहरों को छोड़ दो अब तो गांवो में भी तुलसी आंगन में बड़ी मुश्किल से दिखलाई पड़ती हैं;
४:- जब हम पीपल की पूजा करते थे तो उसके पीछे वैज्ञानिक कारण था, परन्तु आज हम इन सभी को भुला रहे हैँ;
५:- जब हाथ जोड़कर “नमस्ते” करके अभिवादन करते थे तो इसके पीछे भी वैज्ञानिक कारण था परन्तु अब तो हम “हाय- हलो” करने और हाथ मिलाने का प्रचलन हो गया।
मित्रों ये तो बस कुछ उदाहरण हैँ, ऐसे अनेक उदाहरण हैँ, जो सनातन धर्म के दिनचर्या में सम्मिलित थे और सब वैज्ञानिकता पर आधारित हैँ, थे और यदि हम सनातन की ओर लौटे तो आगे भी रहेंगे।
शेष अगले अंक में. …