Monday, October 14, 2024
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गदर्-२ और पठान दोनों में अलग क्या है?

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Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.

मित्रों अभी कुछ हो दिन पुर्व बालीवुड की एक फिल्म आयी थी “पठान”। आपने देखा हि होगा कि इस फिल्म को “सफल” अर्थात “हिट” फिल्म का दर्जा दिलाने के लिए वो सारे हथकंडे अपनाये गये जो अपनाये जा सकते हैँ, उदाहरण के लिए:-

१:- इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अर्थात “न्यूज़ चैनलों” का भरपूर उपयोग किया गया उन्हें ढेर सारा पैसा दिया गया, जिसको अपना माई बाप बनाकर “अंजना ओम कश्यप” जैसे चर्चित पत्रकारों ने “पठान” को सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने से पूर्व हि सफल फिल्म बताना शुरु कर दिया था;

२:- प्रिंट मीडिया जैसे अमर उजाला इत्यादि अखबारों ने तो “पठान” को सबसे बड़ी हिट फिल्म करार दे दिया था;

३:- कुछ यू ट्यूबर तो पहले पंद्रह दिनों में हि दावा करने लगे थे की इस फिल्म ने ६ से ८ हजार करोड़ का व्यवसाय कर लिया था;

४:- पठान फिल्म के प्रोडूसर तो एक टिकट पर दूसरा फ्री या फिर ५०% कम दाम पर टिकट देने के स्कीम लेकर आ गये;

५:- शाहरुख खान के कई प्रसंशकों ने तो कई फिल्म के कई “शो” की पूरी की पूरी टिकटें ही खरीद ली थी और मुफ्त में लोगों को बाँट रहे थे कि आओ आकर फिल्म देख लो;

६:- कुछ प्रसंशकों को जुटाकर फिल्म और शाहरुख़ खान की तारीफ के कसीदे भी गढ़े गये और वीडियो बनाकर वायरल कराया गया;
७:- सुनील सेट्टी से लेकर कई छोटे बड़े बालीवुड़िये Twitter पर ट्वीट पे ट्वीट करके इस फिल्म को सफल बनाने की कोशिश कर रहे थे;

८:- कई फर्जी और नामी गिरामी फिल्म समीक्षक इस फिल्म को सबसे सफल फिल्म होने के कारण गिना गिना कर जनता को प्रोत्साहित कर रहे थे की जनता उनके बहकावे में आकर अपनी गाढ़ी कमाई इनके फिल्म पर लुटा दे;

९:- विपक्ष के कई नेता भी इस फिल्म को सफल सिद्ध करने में लगे हुए थे;

१०:- इस “पठान” फिल्म को सफल दिखाने और जनता को सिनेमाघर तक बुलाने के लिए बड़े पापड़ बेलने पड़े पर अंतत: सारे हथकंडे बेकार सिद्ध हुए, फिल्म पिटनी थी, पिट गई, जनता का कोई आशीर्वाद नहीं मिला।

परन्तु गदर्-२ को “सुपर हिट” बनाने के लिए, उपर दिया गया कोई भी हथकंडा अपनाने की आवश्यकता हि नहीं पड़ी। प्रदर्शित होने के प्रथम २ दिनों में हि ८३ करोड़ की बम्पर कमाई ने कई बॉक्स ऑफिस के कई रिकार्ड तोड़ दिये। गदर्-२ को जनता से मिल रहा आशीर्वाद देखकर पूरा बालीवुड एक बार फिर “सनी मैजिक” को देख दांतो तले उँगलियाँ दबाने को विवश है। जनता इतनी प्रेम में डूबी है कि, टिकट तक नहीं मिल रहे हैँ। हर “शो” “हॉउस फुल” जा रहा है।

अब प्रश्न यह उठता है कि “आखिर क्यों” जो गदर्-२ को प्यार और आशीर्वाद जनता अपने हृदय से दे रही है, वो प्यार और आशीर्वाद जनता ने “पठान” को क्यों नहीं दिया?

आइये विश्लेषण करते हैँ:-

मित्रों ये अक्सर कहा जाता है कि “चलचित्र समाज का दर्पण होता है”। भारतीय समाज विशेषकर ” सनातन समाज” तो भावनाओं के समुद्र में सदैव डूबा रहता है। सनातनियों की भावनाएं तो इतनी प्रबल होती हैँ कि “कण कण में भगवान” के दर्शन वो करते हुए अपने जीवन को जिने का सुप्रयास करते हैं जैसे:- फसल उगती है, तो पहला दाना पक्षियों को, उनसे अनाज प्राप्त होता है और उससे आटा बनाते हैँ तो उसका पहला भाग चीटियों को देते हैँ, रोटी बनाते हैँ तो प्रथम रोटी गौ माता को और अंतिम रोटी स्वान अर्थात कुत्ते के लिए बनाते हैँ। इन्हें किसी निर्जीव वस्तु से भी प्यार या लगाव हो जाए तो वर्षों उसे अपने पास सुरक्षित रखते हैँ। अपनों के दुःख से दुखी तो होते हि हैँ पर दूसरों के दुःख से भी दुःखी होकर उसे बांटकर उसका दुःख थोड़ा कम करने का प्रयास करते हैँ।

मित्रों सनातनीयों की यही भावनायें उन्हें फिल्म अर्थात चलचित्र के चरित्रों से भी जोड़ती हैँ और उसमें कार्य करने वाले कलाकारों से भी जोड़ती हैँ। इस जुड़ाव का मुख्य आधार विश्वाश और भरोसा होता है।

पठान फिल्म भी देशभक्ति पर आधारित थी, परन्तु इसमे देश से प्रेम के स्थान पर “पठान” प्रेम अधिक दिखलाई पड़ रहा था। इस फिल्म में भी बालीवुड़ ने भारतीय समुदाय के बहुसंख्यक समुदाय के भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने का सम्पूर्ण प्रयास किया गया था, जैसे:-
१:- एक सनातनी समाज के व्यक्ति को देश का गद्दार बताना;
२:- एक पठान को देश का वफादार साबित करना;
३:- बहुसंख्यक समाज के “भगवा” रंग को अपमानित करना;
इसके अतिरिक्त
१:- नायक अर्थात शाहरुख़ खान को एक बॉडी बिल्डर के रूप में दिखलाना, जो कि किसी के गले नहीं उतरा;
२:- बेकार के विजुवल इफ़ेक्ट्स दिखाना;
३:- कई विदेशी फिल्मों की कहानी की नकल करके गोलमोल और ना समझने वाली कहानी गढ़ना;
४:- भारत माता को बार बार पठान से जोड़ना;
५:- पुरी फिल्म में केवल और केवल “पठान” को देशभक्त दिखाने का प्रयास करना;
६:- ISI (पाकिस्तान की नापाक और भारत की नंबर १ दुश्मन, ख़ुफ़िया एजेंसी) के महिला एजेंट को भारत का वफादार दिखाना;
७:- शाहरुख़ खान से विश्वाश और भरोसे का हट जाना;
८:- शाहरुख़ खान की सनातन समाज विरोधी छवी;
९:- बालीवुड़ पर खान गैंग का राज और
१०:- भारतीय जनमानस का बालीवुड़ के “नेपोटीज्म कल्चर” को सिरे से नकार देना इत्यादि ऐसे कई कारण थे, जिनसे भारतीय सनातनी जनमानस ने इस बालीवुड़िये गैंग को हृदय से निकाल दिया।

वंही सनी दिओल की बात करें तो वो एक मेहनती किसान परिवार से हैँ, इनके पिताजी धर्मेंद्र (जो “हि मैन” के नाम से भी प्रसिद्ध हैँ ) भी इस देश के महान कलाकारों में से एक हैँ। सनी दिओल ने भारतीय जनमानस के हृदय में स्थान स्वयं बनाया, उन्होंने अपने शानदार अभिनय, जानदार आवाज और भारतीय समाज से सीधे जुड़े रहने की प्रवृति के कारण आज भी विश्वाश और भरोसे के स्तम्भ बने हुए हैँ।

सनी दिओल जैसे भारतीय कथाकारों को बालीवुड़ के “खान गैंग” ने किनारे लगाने की भरपुर कोशिश की, ठीक वैसे हि जैसे उन्होंने गोविंदा, विवेक ओबेराय और ऋतिक रोशन के साथ किया और ऐसे ना जाने कितने लेखकों, गायकों, गीतकारों और अभिनेताओं को किनारे लगा दिया गया, पर इस बंदे ने अपने दम पर इन सभी बालीवुडियो से संघर्ष किया और अपने प्यार, विश्वाश और भरोसे को कम नहीं होने दिया।

“गदर्-२”, “गदर” की हि भांति देशभक्ति से आपके शरीर के रोम रोम को जूनून और उमंग से भर देती है। जब पाकिस्तान के छाती पर चढ़ कर अपने जानदार आवाज़ से अपना “तारा सिंह” जब पाकिस्तानियों को आइना दिखाता है तो पूरा सिनेमा हाल तालियों की तड़तडाहट से गुंज उठता है।

गदर्-२ के नायक से आम भारतीय जनमानस ने अपने आपको स्वयं से जोड़ लिया और वो स्वयं तारा सिंह के किरदार को जिने का अनुभव करते हैँ। हालांकि वो जानते हैँ कि यह एक चलचित्र है फिर भी वो उस किरदार से जुड़ कर अपनी भावनाओं को पर्दे पर फलिभूत होते देख अत्यंत आनंद का अनुभव करते हैँ।

गदर्-२ में अपनापन है, अपने देश के मिट्टी की खुशबु है, अपने देशा के कैमरामेन, जूनियर कलाकार, लाइटिंग करने वाले, स्टेज बनाने वाले, चाय पिलाने वाले, भोजन बनाने वाले, कास्ट्यूम बनाने वाले, मेक उप करने वाले इत्यादि लोगों के कठिन परिश्रम और तपस्या सम्मिलित है।

इसलिए गदर्-२ को भारतिय जनमानस से जोड़ने के लिए “पठान” जैसे हथकंडे अपनाने की आवश्यकता नहीं पड़ी, जनता “हिंदुस्तान जिंदाबाद” के नारे लगाते स्वयं सिनेमाघरों में पहुंच रही है और अपना प्यार, भरोसा और विश्वाश दर्शा रही है।

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम्।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।।

हे मातृभूति, हे हिन्दुस्तान की धरा! आपको नमस्कार है। आपने हमें असीम सुख प्रदान किया है। महा मंगल कारिणि, हे पुण्यभूमि! हमारा यह शरीर भी आपकी सेवा में समर्पित हो जाए। आपको नमस्कार है।

और सच मानिये ये भावना पठान को देखकर नहीं अपितु गदर्-२ जैसी फ़िल्में देखकर हि हिलोरे मारती है।
जय हिंद।

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