अभी हाल ही में सत्तारूड दल के नेता ने अपने आपको राजदंड (सेंगोल) से शोभित किया और बाद मे राजदंड को संसद भवन मे एक स्वर्ण पदक के रूप मे रख दिया है. इस अवसर पर ‘इंडिया गवर्नमेंट’ ने खूब वाह-वाही लूटी और सोश्ल मीडिया पर इसका प्रसारण किया.
क्या है राजदंड?
राजदंड एक प्राचीन परंपरा है और इसका उल्लेख अथर्ववेद (६.१३४.१) मे मिलता है.
अ॒यं वज्र॑स्तर्पयतामृ॒तस्या॑वास्य रा॒ष्ट्रमप॑ हन्तु जीवि॒तम्। शृ॒णातु॑ ग्री॒वाः प्र शृ॑णातू॒ष्णिहा॑ वृ॒त्रस्ये॑व॒ शची॒पतिः॑ ॥ (१)
मेरे द्वारा धारण किया गया, यह दंड इंद्र के वज्र के समान सत्य और यज्ञ के सामर्थ्य से तृप्त हो. यह वज्र हमारे द्वेषी राजा के राष्ट्र का विनाश करे तथा उस की गले की हङ्डियां काट दे. यह गले की धमनियों को भी उसी प्रकार काट दे, जिस प्रकार शचीपति इंद्र ने वृत्र के गले की धमनियां काटी थी. (१)
क्या है राजदंड धारण करने की योग्यता
राजदंड को धारण करने के लिए सत्यनिष्ठ, कर्तव्यप्रणयता, शूरता, वीरता जैसे गुणों मे प्रधान नेतृत्व को ही चुना जाता है. जो राजा अपनी प्रजा को समान रूप से न्याय देने मे असमर्थ है, अपराधियों को दंड देने मे शक्तिहीन है, महिलाओं का सम्मान करने मे असक्षम है एवं शत्रु से युद्ध करने मे तत्पर नहीं है, ऐसे व्यक्ति को राजदंड से सुशोभित करना धर्म के विरुद्ध है.
जो राजा या नेतृत्व धर्म के अनुसार न्याय प्रदान नहीं कर सकता और राजदंड को धारण करने मे असमर्थ या राजदंड का अनुचित प्रयोग करता है, उसे धर्मदंड का सामना करना पड़ता है और राजदंड का त्याग करना पड़ता है.
आज के परिपेक्ष मे राजदंड का प्रयोग मतदाताओं को भ्रमित करके अगले चुनाव मे वोट लेने के लिए किया गया प्रतीत होता है. एक समुदाय को विशेष अधिकार और योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है और नागरिकों को समान अधिकार से वंचित रखा गया है. सनातन धर्म के अनुयाई को देश विदेश मे नरसंघार किया जा रहा है. नूपुर शर्मा जी और साध्वी प्रज्ञा जी को सत्य कहने पर राज्य द्वारा अपमानित किया जा रहा है. एक विशेष समुदाय ने राज्य मे आंतक मचा रखा है, जिसके समक्ष राज्य घुटने टेक चुका है.
यदि भारतीय समाज इसी प्रकार, राजदंड के योग्य गुणों और कर्मो से वंचित नेतृत्व की व्यक्ति पूजा में लीन रहेगा तो यह एक अत्यंत ही गंभीर स्थिती है. वर्तमान मे राज्य एक समुदाय विशेष के तृप्तिकरण मे लीन है, जो राजदंड के नियमों के प्रतिकूल है.