जी हाँ मित्रों आदरणीय सर्वोच्च न्यायालय ने वक्फ बोर्ड को आईना दिखाते हुए दिनांक २९/०४/२०२२ को एक ऐतिहासिक निर्णय दिया, जिसके बारे में हम सभी को जानना आवश्यक है।
पृष्ठभूमि:-
अ १:-राजस्थान के तहसील और ज़िला भीलवाड़ा के तहसीलदार ने सम्बन्धित ग्रामो के पटवारीयों से रिपोर्ट प्राप्त करने के पश्चात ग्राम समोदी, ग्राम दरीबा, ग्राम पंसल, ग्राम मलोला, ग्राम धुलखेड़ा और ग्राम पुर में स्थित कुछ सर्वे संख्या वाले भूखंडो के संबंध में राजस्व अभिलेख सुपर इम्पोज साइट प्लान के साथ एक जांच करने के बाद दिनांक ०३/१२/२०१० को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसके अनुसार, ग्राम पुर में विचाराधीन क्षेत्र के संबंध में भूमि सर्वेक्षण संख्या २३५ में खनन प्रस्तावित किया गया था। १५८ बीघा 12 बिस्वा के क्षेत्रफल वाले सर्वेक्षण संख्या ६७३१ के संबंध में भी खनन कार्य के लिए अनुमति प्रदान करने का प्रस्ताव दिया गया था।
ब:-इसके बाद राजस्थान सरकार ने “जिंदल सा लिमिटेड” नामक कंपनी को तहसील और जिला भीलवाड़ा में स्थित ग्राम ढेडवास, के पास सोना, चांदी, सीसा, जस्ता, तांबा, लोहा, कोबाल्ट, निकिल और भूमि से जुड़े अन्य खनिजों के खनन के लिए एक पट्टा विलेख (Lease Deed) दिनांक ०८/१२/२०१० के तहत १५५६.७८१७ हेक्टेयर क्षेत्र का पट्टा प्रदान किया था।
स:- मित्रों अब यही से राजस्थान वक्फ बोर्ड मामले में कूद पड़ता है और यह कहते हुए कि ग्राम पूर में स्थित सर्वेक्षण संख्या ६७३१ के भूखंड पर एक जर्जर दीवार और एक चबूतरा है, जो तिरंगा कलंदरी मस्जिद के नाम से जाना जाता है और वंहा मजदूर लोग नमाज पढ़ते थे अत: वो वक्फ है और वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति है, वंहा खनन का कार्य नहीं हो सकता।
मामला पहुँचा राजस्थान उच्च न्यायलय में:-
१:-जिंदल सा लिमिटेड ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद २२६ के अंतर्गत एक याचिका प्रेषित करते हुए उच्च न्यायालय से विनती की खनन के दौरान वक्फ बोर्ड को व्यवधान उतपन्न करने से रोका जाए।
२:-आदरणीय उच्च न्यायलय ने विषय की गंभीरता को देखते हुए निम्नलिखित दो प्रश्नों की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया:
“(i) क्या याचिकाकर्ता के खनन पट्टा क्षेत्र के भीतर मौजूद संरचना एक मस्जिद या संरचना थी जिसे उक्त क्षेत्र के भीतर लीज होल्ड गतिविधियों को चलाने के उद्देश्य से हटाया जा सकता है।
(ii) समिति यह भी सुनिश्चित करेगी कि क्या याचिकाकर्ता के खनन पट्टा क्षेत्र के भीतर कोई अवैध खनन गतिविधि है और यदि ऐसा है तो क्या वह याचिकाकर्ता-कंपनी या किसी अन्य संस्था द्वारा किया गया था।
३:- विशेषज्ञ समिति की अध्यक्षता श्री आर.के. सिन्हा, भारतीय खान ब्यूरो के महानियंत्रक (सेवानिवृत्त) ने कि और इनके साथ राजस्थान सरकार द्वारा नामित श्री ओपी काबरा ( सचिव खान, खान और भूविज्ञान विभाग, तथा श्रीमती नंदिनी भट्टाचार्य साहू( क्षेत्रीय निदेशक (पश्चिम), भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) सम्मिलित थी। बाद में श्री ओ.पी. काबरा के स्थान पर श्री ए.के. नंदवाना, (अधीक्षण खनि अभियंता, भीलवाड़ा) को शामिल कर लिया गया।
४:- इस समिति ने १०/०१/२०२१ को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें बताया गया कि खसरा संख्या ६७३१ पर मौजूद जीर्ण-शीर्ण संरचना न तो मस्जिद है और न ही पुरातात्विक या ऐतिहासिक प्रासंगिकता वाली कोई संरचना है। श्री ए.के. नंदवाना, सदस्यों में से एक ने एक हस्तलिखित नोट द्वारा रिपोर्ट का आंशिक रूप से विरोध किया था जिसमें कहा गया था कि अवैध खनन को रोकने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए!
निष्कर्ष/निर्णय:- राजस्थान उच्च न्यायालय ने सभी दस्तावेजो का सुक्ष्म निरीक्षण करते हुए, समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए और दोनों पक्ष के तर्क और वितर्क सुनते हुए दिनांक २९/०९/२०२१ को अपना फैसला सुनाया और वक्फ बोर्ड तथा अन्य को जिंदल सा लिमिटेड के द्वारा खसरा संख्या ६७३१ पर से जर्जर सरंचना को हटाते समय हस्तक्षेप करने से रोक दिया और इस प्रकार न्याय की रक्षा की।
मामला पहुँचा सर्वोच्च न्यायालय:-
राजस्थान वक्फ बोर्ड ने उच्च न्यायालय के द्वारा दिनांक २९/०९/२०२१ को पारित किये गये उक्त आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में एक सिविल अपील CIVIL APPEAL NO. 2788 OF 2022 (ARISING OUT OF SLP (CIVIL) NO. 16196 OF 2021) W I T H CIVIL APPEAL NO. 2789 OF 2022 (ARISING OUT OF SLP (CIVIL) NO. 17334 OF 2021) प्रेषित करके चुनौती देते हुए निम्न तर्क प्रस्तुत किये:-
१:-राजस्थान राज्य के वक्फ के सर्वेक्षण आयुक्त ने वर्ष १९६३ में वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण किया। उक्त सर्वेक्षण में सर्वेक्षण रिपोर्ट में ‘तिरंगा की कलंदरी मस्जिद’ नाम की एक संरचना मिली।उक्त सर्वेक्षण रिपोर्ट के आधार पर दिनांक २३/०९/१९६५ को एक अधिसूचना प्रकाशित की गई जिसमें ग्राम पुर स्थित ‘तिरंगा की कलंदरी मस्जिद’ को वक्फ के रूप में अधिसूचित किया गया। बाद में, उक्त राजपत्र अधिसूचना के आधार पर, ‘तिरंगा की कलंदरी मस्जिद’ को वक्फ रजिस्टर में 12×9 = 108 माप के रूप में दर्ज किया गया था।
२:- यह सरंचना एक जर्जर दिवार और चबूतरा खसरा संख्या ६७३१ पर स्थित है, जंहा मजदूर लोग नमाज पढ़ते थे, अत: यह वहीं तिरंगा कालंदरी मस्जिद है। यह वक्फ है अत: यंहा खनन नहीं हो सकता इसे वक्फ बोर्ड को मिलना चाहिए।
३:-एक अन्य सर्वेक्षण वक्फ अधिनियम, १९५२ के अनुसार ग्राम पुर, भीलवाड़ा में किया गया था। १५/०१/२००२ की रिपोर्ट के अनुसार सर्वेक्षण संख्या ९३१ में ‘तिरंगा कलंदरी मस्जिद’ अस्तित्व में पाया गया था। उक्त सर्वेक्षण रिपोर्ट के भाग III (बी) में मस्जिद का आयाम 25x25x25x25 के रूप में दिया गया है, जो सभी तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
४:-वक्फ बोर्ड के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क दिया कि राजस्थान उच्च न्यायालय गठित विशेषज्ञ समिति में वक्फ बोर्ड का कोई प्रतिनिधि नहीं था और वक्फ बोर्ड इस प्रकार प्रस्तुत की गई रिपोर्ट से संबद्ध नहीं था। इसलिए,इस रिपोर्ट के अनुसार पहाड़ी पर स्थित संरचना को धार्मिक संरचना के रूप में ना मान कर इसे खारिज नहीं किया जा सकता है या इस रिपोर्ट को आधार बनाकर धार्मिक सरंचना के दावों को ख़ारिज नहीं किया जा सकता।
५:- वक्फ बोर्ड का यह भी तर्क था की यह सरंचना वक्फ है या नहीं, इसका फैसला केवल वक्फ ट्रिब्यूनल द्वारा वक्फ अधिनियम की धारा ८३ के अंतर्गत ही लिया जा सकता है ना की भारीतय संविधान के अनुच्छेद २२६ के अंतर्गत प्रेषित किये गए याचिका के अंतर्गत उच्च न्यायालय द्वारा।
जिंदल सा लिमिटेड के पक्ष में निम्न तर्क दिए गए:-
१:-सर्वेक्षण रिपोर्ट में जिस भूखंड पर उक्त संरचना पाई जाती है वह जिंदल सा लिमिटेड को दिए गए पट्टे (Lease)का भाग नहीं है । सर्वेक्षण संख्या ६७३१( माप १५८ बीघा १२ बिस्वा )वह भूखंड था जिसके ऊपर जिंदल लिमिटेड को खनन कार्य करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन यह दिखाने के लिए कोई दस्तावेज या रिपोर्ट नहीं है कि सर्वेक्षण संख्या ६७३१ के किसी भी हिस्से को कभी भी वक्फ अधिनियम के अंतर्गत धार्मिक संरचना घोषित किया गया था।
२:-वक्फ बोर्ड का दावा पूरी तरह से अस्थिर (untenable) है क्योंकि किसी भी समय, कोई भी राजस्व रिकॉर्ड सर्वेक्षण संख्या ६७३१ में शामिल भूमि पर किसी भी धार्मिक संरचना को नहीं दिखाता है। दरअसल सर्वे नंबर ९३१ के ऊपर धार्मिक ढांचा अस्तित्व में बताया गया है।
३:-इससे भी आगे, वक्फ बोर्ड के रिकॉर्ड से पता चलता है कि धार्मिक संरचना का क्षेत्रफल 108 फीट है जबकि दूसरी सर्वेक्षण रिपोर्ट में क्षेत्र 525 फीट दिखाया गया है। इसलिए, उस क्षेत्र के बारे में एक विसंगति है जिस पर धार्मिक संरचना अस्तित्व में है।
सर्वोच्च न्यायालय का विश्लेषण:-
आदरणीय सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों पक्ष द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त तर्क और वितर्क और सुसंगत दस्तावेजो का सुक्ष्म अवलोकन करते हुए पाया कि:-
१:-अंजुमन समिति ने १७/०४/२०१२ को वक्फ-बोर्ड के अध्यक्ष को इस आशय का एक पत्र संबोधित किया कि गांव पुर में तिरंगा पहाड़ी पर तथाकथित कलंदरी मस्जिद पर एक दीवार और चबूतरा (मंच) है जहां पुराने समय में मजदूर नमाज अदा करते थे। बड़ों ने बताया था कि उन्होंने न तो किसी को नमाज पढ़ते देखा है और न ही चबूतरे तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां हैं और ना पानी है। यह वक्फ की संपत्ति है इसे बचाया जाना चाहिए|
२:-वक्फ बोर्ड के कार्यालय ने 18.4.2012 को जवाब दिया कि तिरंगा पहाड़ी के ऊपर चबूतरा वाले क्षेत्र को खनन से बचाया जाना चाहिए।
३:- दिनांक २३/०४/२०१२ को, वक्फ-बोर्ड के अध्यक्ष ने कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को सूचित किया कि १८/०४/२०१२ के उनके द्वारा लिखें गए पत्र का गलत अर्थ निकाला जा रहा है क्योंकि इसका उद्देश्य वक्फ के हितों की रक्षा करना था लेकिन अंजुमन समिति के सदस्यो ने व्यक्तिगत हित के लिए काम किया है अत: इसलिए कार्रवाई की जानी चाहिए।
४:-उक्त पत्र के जवाब में जिलाधिकारी ने बताया कि प्राथमिकी दर्ज कर ली गयी है और ६५ लाख रुपये की राशि बरामद कर ली गयी है।
५:-वक्फ बोर्ड द्वारा प्रस्तुत किया गया पहला दस्तावेज बगैर तारीख का है, लेकिन विषय यह दर्शाता है कि यह राज्य के अजमेर और सुनेल क्षेत्रों में ०५/०१/१९५९ तक और शेष राजस्थान में ०१/०४/१९५५ तक पंजीकृत होने के संबंध में है।
६:-उक्त रिपोर्ट के पढ़ने से पता चलता है कि इसमें कोई सर्वेक्षण संख्या नहीं है, हालांकि वक्फ का मूल्य 900/- रुपये आंका गया था और उपयोग का उद्देश्य नमाज के लिए था।इसके बाद, २३/०९/१९६५ को कलंदरी तिरंगा की मस्जिद को वक्फ संपत्ति के रूप में घोषित करते हुए एक अधिसूचना प्रकाशित की गई!वक्फ बोर्ड (अपीलकर्ता )ने अपने रजिस्टर से एक उद्धरण प्रस्तुत किया है जिसमें बताया गया है कि तिरंगा की कलंदरी मस्जिद की माप १२ x ९=१०८ है।
७:- वक्फ बोर्ड(अपीलकर्ता) द्वारा प्रस्तुत एक अन्य दस्तावेज दिनांक १५/०१/२००२ की सर्वेक्षण रिपोर्ट है कि तिरंगा पहाड़ी पर कलंदरी मस्जिद सर्वेक्षण संख्या ९३१ में स्थित है! यह कहा जा सकता है कि सर्वेक्षण संख्या ९३१ उन सर्वेक्षण संख्याओं की सूची में शामिल नहीं है जिन्हें पट्टा प्रदान किया गया था।सर्वेक्षण संख्या ९३१ का कोई संदर्भ नहीं है कि क्या इसके लिए पट्टा दिया जाना है या नहीं।
८:- यह भी तर्क दिया गया है कि तस्वीरों के अवलोकन से पता चलता है कि संरचना बिना किसी छत के पूरी तरह से जीर्ण-शीर्ण है और वास्तव में एक दीवार और कुछ टूटे हुए परित्यक्त मंच मौजूद हैं।
९:-यह क्षेत्र वनस्पति से घिरा हुआ है और यह भी सुझाव देने के लिए कुछ भी नहीं है कि संरचना का उपयोग कभी भी नमाज़ (नमाज़) करने के लिए नहीं किया जाता था क्योंकि न तो क्षेत्र सुलभ है और न ही वज़ू की कोई सुविधा है, जिसे प्रार्थना (नमाज) करने से पहले एक आवश्यक कदम कहा जाता है।
१०:-पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों ने बताया है कि इस संरचना का कोई ऐतिहासिक या पुरातात्विक महत्व नहीं है। आगे यह तर्क दिया गया है कि तहसीलदार ने कब्जा देने से पहले, प्रस्तावित भूमि पर मौजूद प्रत्येक संरचना की एक विस्तृत रिपोर्ट दी थी।
११:-कब्रिस्तान और अन्य धार्मिक संरचनाओं के लिए भूमि को पट्टे से बाहर रखा गया
सर्वोच्च न्यायालय का निष्कर्ष:-
१:- वक्फ बोर्ड द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज के अनुसार तिरंगा पहाड़ी पर कलंदरी मस्जिद सर्वेक्षण संख्या ९३१ पर स्थित है। इस बात का कोई दावा नहीं है कि सर्वेक्षण संख्या ९३१ को सर्वेक्षण संख्या ६७३१ के रूप में बदल दिया गया है। इसलिए, वक्फ बोर्ड( अपीलकर्ता) का दावा भूमि के एक अलग हिस्से पर है न कि जिंदल सा लिमिटेड को पट्टे पर दी गई भूमि पर।
2:-दो दस्तावेजों में मस्जिद के कुल क्षेत्रफल में विसंगति है, यानी वक्फ बोर्ड( अपीलकर्ता) द्वारा रजिस्टर से निकाले गए उद्धरण और दूसरी सर्वेक्षण रिपोर्ट में। अंजुमन समिति द्वारा दिनांक १७/०४/२००२ का पत्र अफवाहों पर आधारित है और इसका कोई बाध्यकारी मूल्य नहीं है।
3:-इसके अलावा, किसी भी समय इस बात का कोई सबूत नहीं है कि संरचना का इस्तेमाल मस्जिद के रूप में किया जा रहा था।
4:-समर्पण या उपयोगकर्ता या अनुदान का कोई आरोप या प्रमाण नहीं है जो वक्फ अधिनियम के अर्थ में वक्फ कहा जा सकता है।
अधिनियम की धारा 3 (आर) इस प्रकार है: –
“[(आर) “वक्फ” का अर्थ है किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी भी चल या अचल संपत्ति का स्थायी समर्पण, मुस्लिम कानून द्वारा पवित्र, धार्मिक या धर्मार्थ के रूप में मान्यता प्राप्त किसी भी उद्देश्य के लिए और इसमें शामिल हैं-
(i) उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ लेकिन ऐसा वक्फ केवल इस कारण से वक्फ नहीं रहेगा कि ऐसे सेसर की अवधि के बावजूद उपयोगकर्ता समाप्त हो गया है;
(ii) शामलत पट्टी, शामलत देह, जुमला मलक्कान या किसी अन्य नाम से राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज;
६:-विशेषज्ञों की रिपोर्ट केवल इस हद तक प्रासंगिक है कि संरचना का कोई पुरातात्विक या ऐतिहासिक महत्व नहीं है। समर्पण या उपयोगकर्ता के किसी भी प्रमाण के अभाव में, एक जर्जर दीवार या एक मंच को प्रार्थना / नमाज़ अदा करने के उद्देश्य से धार्मिक स्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।
निर्णय:-
वक्फ बोर्ड द्वारा प्रेषित अपील में कोई Merit नहीं है अत: इसे खारीज किया जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने इस ऐतिहासिक निर्णय से स्पष्ट कर दिया कि (१) किसी सम्पत्ति को वक्फ तभी माना जा सकता है, जब वह वक्फ अधिनयम कि धारा ३(आर) के अंतर्गत आती हो, (२) वक्फ अधिनियम के अंतर्गत केवल वक्फ tribunal को हि नहीं अपितु उच्च न्यायालय को भी अनुच्छेद २२६ के अंतर्गत सुनवाई करने और निर्णय देने का अधिकार है।
इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने अपने इस ऐतिहासिक फैसले से बहुत सारी सरकारी और गैर सरकारी जमीनों को बचा लिया और हमें एक नई रौशनी प्रदान की।