Wednesday, November 6, 2024
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लिथुवानिया, चीन के विरुद्ध भारत का नया मित्र

लिथुवानिया, ताइवान को अलग देश मानता है और उसके साथ खड़ा है, अब भारत लिथुवानिया के साथ खड़ा है

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Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.

सोवियत संघ के विघटन के फलस्वरुप स्वतन्त्र हुआ एक छोटा सा देश है लिथुवनिया। इस देश की सीमाएं पोलैंड से मिलती हैं। लिथुवानिया अब यूरोपिय यूनियन का सदस्य है।

चीन ने श्रीलंका, पाकिस्तान और अन्य कई अफ़्रीकी देशों की तरह लिथुवनिया को भी अपने चाल में फंसा कर “Debt Trap” में लेना चाहता था, परन्तु समय रहते, लिथुवनिया ने खतरे को भांप लिया और China की पॉलीसी को अपनाने से इंकार कर दिया। इससे क्रोधित होकर चीन ने लिथुवानिया के साथ “Trade” पर प्रतिबंध लगा दिया।

बात बढ़ी तो रुकी नहीं, दिनाक २९ जनवरी, २०२२ को Washingtan Post में छपि एक खबर के अनुसार, लिथुवनिया ने Taiwan को एक स्वतन्त्र देश मान कर उसके साथ खड़ा हो गया। अब लिथुवानिया के इन दोनों कार्यों से चीन आगबबूला हो गया और उसने वंहा अपनी Embassy को भी बंद कर दिया।

अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर लिथुवानिया कैसे भारत का मित्र बना?

मित्रों भारत को जैसे ही इस तथ्य की जानकारी हुई, यंहा कि सरकार ने तुरंत जांच की और पाया की लिथुवानिया में तो कोई Embassy है हि नहीं, तो सरकार ने पोलैंड में स्थित अपने Embassy को ही लिथुवानिया के लिए भी Embassy के रूप में स्थापित कर दिया। आप भारत सरकार की Website पर इसे देख सकते हैं। इसके पश्चात उन्होंने ळिथुवनिया कि सहायता करने कि भी घोषणा कर दी। लिथुवानिया के विदेश मंत्री भारत आए और हमारे प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री से मिलकर गए और निसंदेह ये रिश्ता चीन को नागवार गुजरी पर Taiwan और अन्य यूरोपिय देशों को बहुत पसंद आयी।

अब भी प्रश्न वहीं है इससे भारत को क्या लाभ हुआ?

तो दोस्तों चलो थोड़ा भूतकाल में चलते हैं। वर्ष १९६२ ई में हुए युद्ध कि याद तो ताज़ा होगी, वो युद्ध हम हारे नहीं थे, अपितु हमारे देश के ही लम्पट नेताओं ने हमारी सेना के माथे पर वो कलंक लगा दिया था, क्योंकि युद्ध के लिए तैयार वायु सेना को अगर आदेश दे दिया गया होता तो चीनीयो का इतिहास और भूगोल सब बदल जाता।

हमारे यहाँ राज करने वाली अंग्रेजो की पार्टी कांग्रेस ने चीन के शक्तिशाली होने का एक छद्दम ताना बाना फैला कर रखा था। वो जनता के दिल में ये बात बैठा चुके थे की चीन बहुत ताकतवर देश है और हमें उससे युद्ध नहीं करना। कांग्रेसियों ने ये झूठा डर २०१४ तक भारतीय जनमानस के ह्रदय में स्थापित किये रखा।

उसका कुछ उदाहरण हम आपको दे रहे हैं। हम सब जानते हैं की स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के शाशनकाल में राजस्थान के पोखरण में बुद्धा के मुस्कराने के साथ ही भारत एक परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बन चुका था। परन्तु इसके बावजूद भी दिनांक ६ सितम्बर २०१३ में ” The Indian Express ” में छपि एक खबर के अनुसार, भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री श्री A K Antony ये कहते पाये गए की चीन से सटे LOC पर बेहतर infrastructure का निर्माण करने से चीन नाराज हो सकता है और उसके नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है।

वही “Financial Express” में दिनांक ७ फरवरी २०१४ को छपि एक खबर के अनुसार वहीं रक्षा मंत्री श्री A K अंटोनी, ये कहते पाये गए की “सरकार के पास राफेल खरीदने के लिए पैसे नहीं है, इसलिए ये डील कैंसिल हो सकती है”!

जबकि विशेषज्ञ प्रजाति का स्पष्ट मानना था की चीन के दवाब में आकर सरकार इस राफेल सौदे से पीछे हट रही है।

अब आता है जनता के द्वारा चुने गए एक राष्ट्रवादी नेता का शाशनकाल, जी हाँ देश में आदरणीय नरेंद्र दामोदरदास मोदीजी के नेतृत्व में सरकार बनते ही, सबसे पहले भारतीय सेना और भारतीय किसान पर ध्यान देना शुरू किया जाता है।

१:- चीन से मिलने वाले LOC पर Better Infrastructures के निर्माण का कार्य युद्धस्तर पर शुरू कर दिया जाता है।
२:- चीन कि नाराजगी को उसी की भाषा में गलवान घाटी में उत्तर दिया जाता है।
३:- चीन से सटे Line of Control में better infrastructure के निर्माण के लिए (विशेषत: अरूणांचल प्रदेश में) बजट में ६ गुना वृद्धि कर दी जाती है।
४:- चीन के कई “artificial intelligence” और कम्पनीयों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है।
५:- कई आवश्यक वस्तुओ के व्यापार को प्रतिबंधित कर दिया जाता है।
६:- ताइवान की ओर सहानुभूति दिखाई जाती है।
७:- QUAD नामक अंतराष्ट्रीय संस्था का गठन किया जाता है और जापान और Australia के साथ मिलकर चीन के विरुद्ध रणनीति तैयार की जाती है।
८:- अब लिथुवनिया के साथ मित्रता करना।
९:-हम अपने हि देश मे ब्रह्मोस जैसी सुपर सोनिक मिसाइल का निर्माण कर रहे हैं।
१०:- आज हम दुनिया के कई देशों को आयुध का निर्यात करने की स्थिति में आ चुके हैं।

अब भारत द्वारा चीन के विरुद्ध किये जाने वाले इन साहसिक कार्यों को देखते हुए अमेरिका और यूरोपिय देशों को भारत में विश्वास उत्पन्न हुआ और उन्होंने इसे हाथो हाथ लिया। अमेरिका और EU ने दक्षिणी चीन सागर वाले क्षेत्र् को “Indo Pacific Zone” कहना शुरू कर दिया और इस प्रकार पूरे विश्व में भारत चीन के विरुद्ध सभी देशों का विश्वासपात्र साथी बन गया।

अब इससे दूसरा लाभ क्या हुआ?

१:- देखिये भारत ताइवान के साथ तो है पर वो ताइवान को अभी तक देश नहीं मानता, क्योंकि चीन, ताइवान को अपना हिस्सा मानता है, जबकि ताइवान, चीन को उसके सभी क्षेत्रो के साथ अपना हिस्सा मानता है। अब यंहा दिक्कत ये है की चीन ने भारत के अक्साई चीन पर कब्जा कर रखा है और उसे अपना क्षेत्र् मानता है, इसके अनुसार यदि ताइवान पूरे चीन कि माँग करेगा तो इसमें अक्साई चीन वाला हिस्सा भी आ जाएगा, बस इसीलिए भारत नहीं चाहता की दो देश उस अक्साई चीन वाले हिस्से को अपने देश का हिस्सा बताए।

२:- पर यंहा देखिये लिथुवानिया, ताइवान को अलग देश मानता है और उसके साथ खड़ा है, अब भारत लिथुवानिया के साथ खड़ा है, अत: ताइवान अपने आप सहयोग का पात्र बन जाता है।

३:- अब एक बार फिर देखिये ळिथुवानिया, यूरोपिय यूनियन(EU) का हिस्सा है, इसीलिए EU, चीन के विरुद्ध लिथुवानिया के साथ है। यूरोपिय यूनियन(EU) रसिया के विरुद्ध है, जबकि भारत, रसिया के विरुद्ध नहीं है, पर जब भारत लिथुवानिया के साथ आता है तो वो अपने आप यूरोपिय यूनियन(EU) का सहयोगी बन जाता है बगैर रसिया का विरोध किए।

तो इस प्रकार की विदेश नीति के चलते, भारत, एक ओर रसिया से अपनी दोस्ती भी निभा रहा है। ताइवान को सहयोग भी कर रहा है। लिथुवानियाके साथ होने पर यूरोपिय यूनियन(EU) का भी सहयोग कर रहा है। “ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर”!

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