Wednesday, April 24, 2024
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भारत कि सशक्त और धाकड़ विदेश नीति।

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Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.

मित्रों आज से कुछ वर्ष पूर्व गीतकार और कवी प्रसून जोशी के एक प्रश्न का उत्तर देते हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदीजी ने कहा था कि “भारत ना आँखे उठा के बात करता है और ना आँखे झुकाकर बात करता है, ये नया भारत है जो आँखो में आँखे डालकर बात करता है।”

मित्रों उस वाक्य के एक एक शब्द को चरितार्थ करते हुए भारत ने अपनी विदेश नीति को श्री एस जयशंकर जी के नेतृत्व में अत्यधिक शसक्त और सुदृढ़ बना दिया है।

जैसा कि आप सबको विदित है कि वर्ष २०१४ से पूर्व भारत की समस्त नीतियाँ चाहे हो विदेश नीति हो या आर्थिक या फिर धार्मिक, सभी एक परिवार द्वारा तय की जाती थी। और इस परिवार को देशहित से ज्यादा व्यक्तिगत हित में रूचि थी।

परन्तु वर्ष २०१४ के पश्चात् जब राष्ट्रवादी नेतृत्व के अंतर्गत भारत में भारतीयों की सरकार बनी तो देश की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और विदेश नीति एक परिवार के हाथो से निकलकर लोकतंत्र के हाथों में चली गई। और फिर भारत वो सब करने और कहने लगा जो भारत के हित में था।

उदाहरण के लिए जब कांग्रेस के शासन काल में २६/११ का हमला पाकिस्तानी इस्लामिक आतंकवादियों ने किया तो इसका बदला केवल इसलिए नहीं लिया गया, क्योंकि इससे देश का मुसलमान नाराज हो जाता और संयुक्त राष्ट्र संघ इसे सही नहीं मानता।

परन्तु जब जम्मू कश्मीर के पुलवामा में इस्लामिक आतंकियों ने हमारे ४० से ज्यादा वीर जवानो का बलिदान ले लिया तो हमने तुरंत पाकिस्तान के सीमा के अंदर घुसकर बालाकोट नामक स्थान पर सर्जिकल स्ट्राइक किया। मित्रों आज भारत दुनिया के हर बड़े देश चाहे वो सस्ता ब्रिटेन हो, अमेरिका हो, जर्मनी या चिन हो, सबको उन्हीं की भाषा में उत्तर देता है।

गलवान घाटी की घटना तो आप भूले नहीं होंगे। जिस चिन के ताकतवर होने का हौव्वा नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक (स्व. लाल बहादुर शास्त्री जी को छोड़कर) सभी कांग्रेसियों ने कई वर्षो से खड़ा कर रखा था, गलवान घाटी में उसकी हवा निकल गई, उसके दाँत खट्टे कर दिए हमारी वीर सेना ने। एशिया के कई देश तो विश्वास ही नहीं कर पाये की चिन को उसकी औकात कोई इस प्रकार से भी बता सकता है।

कोरोना काल में केवल भारत हि ऐसा एकमात्र देश था, जिसने दुनिया के लगभग ८० से ज्यादा गरीब देशों को वेक्सिन दी वो भी सहायता के तौर पर और इससे उन सभी देशों के रिश्ते मजबूती से भारत के साथ जुड़े।

यही नहीं अफगानिस्तान को बर्बाद करके अमेरिका एक चालाक और धूर्त अक्रान्ता की तरह तालिबान के हवाले छोड़कर भाग खड़ा हुआ और पलट कर देखा भी नहीं, उस अफगानिस्तान का साथ भारत ने नहीं छोड़ा और दवाई, खाद्यान्न, पेट्रोल इत्यादि जीवन से जुड़ी हर वस्तु देकर उसकी सहायता की और इसीलिए तालिबान सत्ता में आने के पश्चात् भारत के सामने नतमस्तक हो गए।

ये भारत की विदेश नीति का ही कमाल है की भारत ने अस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ मिलकर चिन के विरुद्ध Quad की स्थापना की। आज दक्षिणी चिन महासागर Indo- pacific zone के नाम से जाना जाता है।

ये भारत की विदेश नीति की सफलता ही है की वो फ्रांस से राफेल ले रहा है, इजराइल से नई तकनीकी ले रहा है, अमेरिका से अत्याधुनिक आयुध सामग्री खरीद रहा है और रसिया से दुनिया की सबसे मारक एंटी मिसाइल तकनीकी S-४०० ले रहा है। और यही नहीं वाह कई देशों को अपने देश में बने तेजस जैसे लडाकू विमान और ब्रह्मोस मिसाइल भी बेच रहा है।

मित्रों एक परिवार की इच्छा को अपना राजधर्म मानकर चलने वाले कांग्रेसी कभी भारत की विदेश निति के बढ़ते प्रभाव और व्यापक सफलता को पचा ही नहीं पाए | उदहारण के लिए एक महान वफादार कांग्रेसी है श्री आनंद शर्मा जी, इन्होने भारत की विदेश निति पर एक लेख लिखा, जो ” Modi pursuing personalised foreign policy bereft of direction” नामक शीर्षक से ” The Economic Times” ने दिनांक १८ मार्च २०१८ को छापा था| इस लेख के जरिये कांग्रेसी भाई ने ये बताने की कोशिश की “It was confused एंड conducted in a cavalier manner which has damaged India’s profile”. मित्रों ये वही आनंद शर्मा जी हैं जो उस वक्त वफादार जिव की भांति हाथ बांधकर खड़े थे जब सोनिया गाँधी जी की उपस्थिति में परमज्ञानी श्री राहुल गाँधी जी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एक MOU पर हस्ताक्षर कर रहे थे। अब ये पता नहीं की ये परिवार किस प्रकार का समझौता चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ कर रहा था और उसका भारत की विदेश निति से क्या लेना देना था।

मित्रों दूसरा उदहारण उस समय का है जब पंजाब में चुनाव हो रहे थे और कांग्रेस पार्टी को सस्ती लोकप्रियता दिलाने के लिए परिवार के इशारे पर, मनमोहन सिंह जी ने एक वीडियो सन्देश जारी कर भारत के राष्ट्रवाद और विदेश नीति की मन से आधारहीन आलोचना की, उनके इस वीडियो सन्देश को “The Wire” के Website  पर १७ फरवरी २०२२ को “Fake Nationalism, Failed Foreign Policy” नामक शीर्षक के साथ प्रस्तुत किया गया। मित्रों ये मनमोहन सिंह वही Accidental PM” थे जो पुरे १० वर्ष प्रधानमंत्री होने के बाद भी एक नियम या कानून पर अपना ज्ञान इस परिवार को न दे सके और केवल अपना सारा हावर्ड से पढ़ा अर्थशास्त्र उस परिवार की जी हुजूरी में खर्च कर दिया।

खैर पुन: अपने मुद्दे पर आते हैं, ये भारत की विदेश नीति की सफलता ही है की जंहा एक ओर वो ताइवान के मामले में चिन के विरुद्ध यूरोपिय यूनियन और अमेरिका के साथ है, वंही दूसरी ओर युक्रेन और रसिया के मामले में किसी के साथ ना होकर भी अपने परम्परागत मित्र रसिया के विरोध में नहीं है।

मित्रों जब से रसिया और यूक्रेन के मध्य अमेरिका के धूर्तता और चालाकी से युद्ध आरम्भ हुआ है, तब से ही अमेरिका और ब्रिटेन ने अपने षड्यंत्र के अनुसार रसिया को कमजोर करने के लिए युरोपीय यूनियन को साथ लेकर तरह तरह के प्रतिबंध लगा रहे हैं। और वो चाहते थे की भारत भी रसिया के साथ खड़ा ना हो और खुलकर उसका विरोध करे, पर भारत ने बड़े ही सजगता और चातुर्य से धूर्त अमेरिका और ब्रिटेन की चाल को पकड़ लिया और स्पष्ट रूप से घोषणा कर दी की “हम केवल उसके साथ हैं जो हमारे साथ है।”

मित्रों भारत के इस रुख से सबसे ज्यादा झटका यदि किसी को लगा तो वो भारत से अरबों की सम्पत्ति लूट कर ले जाने वाले ब्रिटेन को लगा, क्योंकि वो आज भी ये समझता था कि “भारत हर हाल में उनके साथ ही होगा” पर ये गोरे भूल गए अब भारत में एक राष्ट्रवादी सरकार एक राष्ट्रवादी नेतृत्व के हाथो द्वारा वर्ष २०१४ से कार्य कर रहे है और भारत की विदेश निति अब एक परिवार के हाथ से निकलकर लोकतंत्र के हाथो में आ गयी है, अत: अब भारत वही करता है जो भारत के हित में होता है।

अब जब अमेरिका और धूर्त ब्रिटेन, भारत को रसिया के विरुद्ध नहीं कर पाए तो उन्होंने भारत के विरुद्ध प्रोपेगेंडा चलाना शुरू किया और उसकी आड़ में भारत को यूक्रेन का साथ देने के लिए नसीहत देने लगे| पर मित्रों हमारे श्री जयशंकर जी ने जब पूरी दुनिया की मिडिया के सामने ये कहा कि “हमें याद रखना होगा की आपने अफगानिस्तान के मामले में क्या किया”, तो ब्रिटेन का मुंह सुख कर मुरझा गया।

मित्रों इनका प्रोपेगेंडा यहीं नहीं रुका, जब रसिया के प्रस्ताव पर भारत सस्ते दर पर रसिया से तेल खरीदने के लिए राजी हो गया, तो इसी ब्रिटेन के डिप्लोमैट्स ने दुनिया के सामने कहना शुरू किया की “India-Russia Cheap Oil Deal would be deeply disappointing UK”. फिर क्या था, एक बार फिर पूरी दुनिया के सामने श्री जयशंकर जी ने इनके प्रोपेगण्डे को ध्वस्त करते हुए कहा की “यूरोपियन यूनियन के देश रसिया से ख़रीदा तेल जितना दोपहर तक खर्च कर देते हैं, भारत उतना एक महीने में भी नहीं खर्च करता।” बस फिर क्या था सबकी बोलती एक बार फिर बंद।

मित्रों जब अमेरिका और ब्रिटेन,  भारत और रसिया के मध्य खाई नहीं खोद पाए तो उन्होंने भारत में मानव अधिकारों के हनन की झूठी कहानी लेकर प्रोपेगेंडा फैलाना और भारत को कटघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया। पर यंहा भी उनको मुंहतोड़ जवाब देते हुए हमारे विदेश मंत्री श्री एस  जयशंकर जी ने सीधा संदेश देते हुए कहा कि “India also Monitors Human Rights Situation in other Countries including US”, समझदारो के लिए इशारा काफी था। अल्पसंख्यकों की स्थिति पर उठाये गए प्रोपेगेंडा का जवाब देते हुए उन्होंने आइना दिखाते हुए कहा कि “others should answer, how did they respond? We are not the only country dealing with disturbances in our neighbourhood. Europe has ssen conflict; the US had 9/11(terror attacks). How did they respond? It is important to reflect on your own way of handling the issues. On naturalisation (immigration laws), what is the pathway they took? critics must not “get fixated on the dots and ignore the line” or big picture.”

अब मित्रों मजे की बात ये है की ना केवल “श्री एस जयशंकर जी ने इनके नाक में दम कर रखा है अपितु भारत का हर डिप्लोमेट इसी भाषा और तेवर में बात करता है और इसी को कोट करते हुए विदेशी डिप्लोमैट्स ने सीधे सीधे शिकायत भरे लहजे में कहा कि “भारत की विदेश नीति पूरी तरह बदल चुकी है, अब वो किसी की भी नहीं सुनते”।

मित्रों विदेशी डिप्लोमेट्स के इसी शिकायत को आधार बनाकर परमज्ञानी श्री राहुल गाँधी ने सूट – बूट में सजधजकर विदेश में एक साक्षात्कार दिया और   भारत की विदेश नीति की आलोचना करते हुए इसे गलत बताया और साथ हि भारतीय डिप्लोमेट्स को arrogant बताया।

अब आपको पता चल ही गया होगा कि मैं इनको परमज्ञानी क्यों कह रहा हूँ? पर हमारे श्री एस जयशंकर साहेब कँहा चुकने वाले थे, उन्होंने एक ट्वीट के जरिये  पुरे विपक्ष  को समझा दिया जो इस प्रकार है” Yes, The Indian Foreign Service has changed. Yes, They follow the orders of the Government. Yes, They counter the Arguments of the others. It is called confidence and it is called defending National Interest”. पर देखने  और समझने वाली बात ये है कि जिसके पास अपना कोई अस्तित्व ना हो वो क्या “confidence” और “Defending National Interest” जैसे भारी भरकम शब्दों के मायने समझ सकता है, आप क्या कहते हैं?

मैं तो बस यही कहूंगा “जय जय एस जयशंकर”

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