जी हाँ दोस्तों
क्या आप इस बात पर विश्वास कर सकते हैं कि एक परिवार किसी विकासशील देश को दिवालिया बना सकता है?
तो आइये हम बताते हैं कि कैसे राजपक्षे परिवार ने हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका को दिवालिया बना दिया।
हालांकि इश्क शुरुआत वर्ष १९५० के आस पास हि हो चुकी थी। श्रीलंका प्राकृतिक रूप से अत्यंत धनवान देश था। इस देश से मुख्यत: रबर, चाय, दालचीनी और नारियल का निर्यात होता था। श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भंडार का लगभग ९०% हिस्सा इन्हीं के निर्यात से प्राप्त होता था। परन्तु वंहा कि सरकारो ने कभी इन चाय, नारियल, रबर और दालचीनी के निर्यात से होने वाली आय के आलावा किसी और व्यवसाय या उद्योग के प्रति गंभीरता से सोचा ही नहीं, जिसका परिणाम ये निकला कि उनका देश इन्हीं इन चाय, नारियल, रबर और दालचीनी के निर्यात से होने वाली आय पर निर्भर हो गया।
और फिर जब वर्ष १९५० में रबर और चाय के दाम अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गिरे तो श्रीलंका को पहली बार Forex Crisis का सामना करना पड़ा, परिणामस्वरुप विदेशी वस्तुओ का आयात तो नहीं घटा पर स्वदेशी वस्तुओ के निर्यात मे अभूतपूर्व कमी आ गई।
श्रीलंका में पहले कुल राजस्व का १०% विकास के कार्यों पर खर्च किया जाता था तथा ९०% चुनाव के दौरान किये गए वादों को पूरा करने में खर्च होता था, जिससे दूरगामी विकास कि नीती कभी श्रीलंका में बन ही नहीं पायी। श्रीलंका सदैव अल्पकालीन विकास के दौर में फंसा रहा, जिसके चलते सरकार का खर्च उसको होने वाली आय से हमेशा अधिक हि रहा और इस प्रकार वो Budget Deficient का शिकार बनते रहे।
इसी मध्य वर्ष १९८० में श्रीलंका कि अर्थव्यवस्था एक सिविल वॉर (Civil war) के चपेट में आ गई। जी हाँ मित्रों, श्रीलंका में मुख्यत: दो प्रकार के समूह है।
१:-सिंहली:- जिनकी संख्या ज्यादा है और ये बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग हैं।
२:-तमिल:- ये मुख्यत: तमिल हिन्दू है जो अल्पसंख्यक हैं।
इस सिविल वार का मुख्य कारण था, श्रीलंका की चुनी हुई सरकारो द्वारा तमिल हिन्दुओ के प्रति किया जाने वाला सौतेला व्यवहार। वंहा कि सरकार हमेशा सिंहली लोगो के अधिकारों को सुरक्षित करने मे लगी रही और तमिल लोगों को उन्होंने दोयम दर्जे का बना के रख दिया। तमिल लोगों पर हो रहे अमानवीय अत्याचार और भेदभाव ने पूरे समूह में गुस्से और असंतोष का वातावरण तैयार कर दिया और फिर प्रभाकरन के नेतृत्व में जन्म हुआ LTTE अर्थात “Libration Tigers of Tamil Ilam” का, जिन्होंने श्रीलंका सरकार और सिंहली समुदाय के विरुद्ध सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत कर दिया।
अब इससे श्रीलंका जो १०% राजस्व विकास पर खर्च करता था, उसे उसने रक्षा बजट के साथ जोड़ दिया। पहले जो रक्षा बजट ४.४% हुआ करता था वो १९८० के पश्चात् बढ़ते बढ़ते २१.६% हो गया और विकास के कार्य बिलकुल ठप हो गए और श्रीलंका विदेशी निवेश के लिए एक Poor Destination बन गया। श्रीलंका १९९७ तक Middle Income Country से Low Income Country में बदल गया। इसका परिणाम ये निकला कि इसको विदेशो से मिलने वाले ऋण (Loan) भी High Interest पर हि मिलने लगे।
वर्ष २००४ में राजपक्ष परिवार सत्ता में आया और हालात बद से बदतर होते गए। हालांकि सिविल वार को इसी परिवार ने खत्म किया। अब ज़रा देखिये इस परिवार ने कैसे कब्जा किया:-
१:- महिन्दा राजपक्ष:- ये वर्ष २००४ में प्रधानमंत्री थे। वर्श् २००५ से २०१५ तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे। ये वर्तमान में भी प्रधानमंत्री हैं।
२:- गोटाबया राजपक्ष:- ये वर्तमान में श्रीलंका के राष्ट्रपति हैं। वर्ष २००४ में ये Defence Secretary थे अर्थात श्रीलंका की पुलिस और सेना इन्ही के नियंत्रण में थी। इन पर आरोप है कि सिविल वार का दमन करते हुए करीब ४०००० तामिल हिन्दुओ का नरसंहार करवाया और सिविल वार को खत्म कराया।
३:- बासील राजपक्ष:- ये अमेरिकन श्रीलंकन है। इन्हें सरकार मे शामिल करने हेतु संविधान में आवश्यक संसोधन करवाया गया। ये वर्तमान में वित्त मंत्री (Finance Minister) हैं। इन्हें Mr. 10% के नाम से भी जाना जाता है। ये महाशय मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के कई आरोपों से घिरे हुए हैं।
४:-चमल राजपक्ष:- ये वर्तमान में श्रीलंका के Chief of Irrigation Department हैं। इसके पूर्व ये श्रीलंका के संसद के Speaker भी रह चुके हैं। इन्होने Shiping & Aviation Ministry को भी सम्हाला था।
५:- नमल राजपक्ष पुत्र श्री महिन्दा राजपक्ष:- ये वर्तमान में श्रीलंका के Minister of Youth & Sports हैं। ये भी अपने चाचा बासील राजपक्ष कि तरह भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों से घिरे हुए हैं।
६:- यशीथ राजपक्ष पुत्र श्री महिन्दा राजपक्ष:- ये Chief of Staff हैं।
७:- सशीन्द्र राजपक्ष पुत्र चमल राजपक्ष:- ये श्रीलंका के कृषि मंत्री हैं।
८:- शमीन्द्र राजपक्ष पुत्र चमल राजपक्ष:- ये वर्तमान मे श्रीलंकन एयरलाइन्स के Director हैं।
आपको हम बता दे कि ये आठ लोग मिलकर श्रीलंका के ७५% बजट को नियंत्रण में रखते हैं।
आइये आगे बढ़ते हैं:- वर्तमान आर्थिक बदतर हालात से निपटने के लिए इस परिवार ने बेतहाशा विदेशो से ऋण लेना शुरू कर दिया परन्तु उस लिए गए ऋण का अधिकांश हिस्सा भ्रष्टाचार के भेंट चढ़ गया। फिर इस परिवार ने अपने एक बंदरगाह Hanbantota Fishing Harbour को विकसित करने कि योजना बनायीं। इसके लिए इन्होने भारत और अमेरिका दोनों से बात की परन्तु भारत और अमेरिका इस बंदरगाह पर पैसे लगाने को तैयार नहीं हुए क्योंकि ये बंदरगाह उनके लिए फायदेमंद नहीं था।
इसके बाद इस परिवार ने चिन से बात की, बस फिर क्या था ड्रेगन तो इसी ताक में था उसने तुरंत हामी भर दी और श्रीलंका में infrastructure के विकास के नाम पर मनमाने ब्याज पर ऋण देने लगा (7Billian Doller) और अंत मे नतीजा क्या निकला कि श्रीलंका ड्रेगन के ऋण जाल में फंस गया और ब्याज कि रकम ना चुका पाने के कारण पूरा का पूरा बंदरगाह चिन को ९० वर्ष के पट्टे (Lease) पर देना पड़ा।
वर्ष २०१९ मे एक बार फिर यही परिवार सत्ता में आया और गोटाबया राजपक्ष (वर्तमान राष्ट्रपति) ने दो भयंकर भूले की:-
१:- उन्होंने विभिन्न प्रकार के टैक्स में छूट दे दी। अब इससे हुआ ये कि श्रीलंका के खजाने में लगभग ३०% टैक्स अर्थात राजस्व कि कमी हो गई।
२:- उन्होंने कृषि क्षेत्र में केमिकल fertilisers के उपयोग को आनन फानन में प्रतिबंधित कर दिया और कृषि को Organic farming कि ओर शिफ्ट कर दिया ताकि लगभग ४०० मिलियन डालर की बचत कि जा सके। अब इस अचानक परिवर्तन से किसान परेशान हो गए और उन्होंने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। फलस्वरुप पैदावार में अभूतपूर्व कमी आ गई जिससे अनाज में कमी आ गई।
यही नहीं श्रीलंका के कोढ में खाज तब हो गया, जब Easter Sunday को हुए आतंकवादी घटना ने और इसके पश्चात् COVID-१९ के विभिन्न चरणों ने श्रीलंका के Tourism Sector को बिलकुल बर्बाद कर दिया। Tourism Sector से होने वाली आय सामान्य अवस्था में जंहा ४५५ मिलियन डॉलर प्रति महीने थी वही जुलाई २०२१ में ३ मिलियन डॉलर प्रति महीने रह गई।
आज हालत ये है कि श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा भंडार २ बिलियन डॉलर की है तो उस पर विदेशी कर्ज ७ बिलियन डॉलर का है, आप स्वय अंदाजा लगा सकते हैं कि वंहा कि आर्थिक स्थिति क्या है।
आज श्रीलंका १६ बार World Bank से उधार ले चुका है और उसकी सहायता करने के लिए केवल भारत और बंगलादेश सामने आए हैं। भारत ने पैसे, दवाई, अनाज और पेट्रोल के रूप मे श्रीलंका को भारी आर्थिक सहायता दी है। तो मित्रों आपने देखा कि किस प्रकार एक परिवार के लूट खसोट और गलत नीतियों के कारण श्रीलंका जैसा देश दिवालिया हो गया:-
आज श्रीलंका में
१ किलो चावल २०० रुपये में;
४०० ML दूध ८०० रुपये में;
१ गैस सिलेंडर ४२०० रुपये में;
१ किलो चीनी २०० रुपये में;
१ किलो दूध का पाउडर १६०० रुपये में मिल रहा है।
दवाईयो और अनाज का अकाल पड़ा है । पिछले ३ महीनों में पेट्रोल कि कीमत में ९२% और डीजल की कीमत में ७६% का उछाल आया है। आज हर ओर त्राहि माम् त्राहि माम् मचा है।
याद रखिये यही हालत हमारे देश कि भी होती यदि वर्ष २०१४ में हम नहीं जागते तो। हमने सही समय पर सही सरकार चुनकर अपने देश को बचा लिया वरना वो परिवार हमारे देश को ना जाने कंहा लेकर जाता। आज हम अनेक कठिनाइयों से मजबूती से लड़कर स्वाभिमान के साथ पूरे विश्व में खड़े हैं और आगे भी इस मान सम्मान और स्वाभिमान को बरकरार रखेंगे।
जय हिंद
वन्देमातरम।
लेखक और विश्लेशक:- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
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