Saturday, April 20, 2024
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गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, १९६७ संशोधन विधेयक २०१९: भाग-१

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Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.

मित्रो इस विधेयक (जो की ८ जुलाई २०१९ को लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था और अब जिसे लोक सभा और राज्य सभा दोनों में पूर्ण बहुमत से पास (पारित) करा लिया गया और जो अब राष्ट्रपति द्वारा स्वीकार्यता मिलाने के पश्चात अधिनियम के रूप में लागू कर दिया जायेगा) की आजकल बड़ी ही चर्चा है। हर प्रबुद्ध व्यक्ति इस विधेयक के द्वारा  गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (जिसे अंग्रेजी में Unlawful Activities (Prevention) Act -1967 कहते हैं।) में किये जाने वाले संसोधनो और इसके फलस्वरूप समाजिक व्यवस्था को पहुंचने वाले लाभ और हानी  के बारे में चर्चा परिचर्चा बड़े जोर शोर से क्र रहा है और अपने बुद्धिमत्ता के अनुसार विश्लेषण कर सकारात्मक या नकारात्मक निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयास कर रहा है।

आइये हम भी एक दृष्टि डालकर इसे समझने का प्रयास करते हैं। 

पृष्ठभूमि:- मित्रो जैसा की हम सब इस अकाट्य तथ्य से भलीभांति परिचित हैं कि किसी भी विधि, नियम या प्रावधान के निर्माण और उसको लागू करने के पीछे युक्तियुक्त  पृष्भूमि का होना अति आवश्यक है, अत: आइये ये जानने का प्रयास करते हैं कि आखिर “गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, १९६७  (जिसे अंग्रेजी में Unlawful Activities (Prevention) Act -1967 कहते हैं) की आवश्यकता क्यों पड़ी।

जैसा की आप इस तथ्य से भी भलीभांति परिचित हैं की हमारे देश में एक पार्टी है जो “द्रविड़ मुनेत्र कजगम” अर्थात Dravid Munetra Kazhagam (DMK)” है , जिसकी स्थापना श्री सी एन अन्नादुरई (Mr. C. N. Annadurai) ने की थी, ये तमिलनाडु (मद्रास) के मुख्यमंत्री थे। श्री सी एन अन्नादुरई (Mr. C. N. Annadurai) ने वर्ष १९६२ में राज्यसभा में अपने दिए गए भाषण से पुरे देश में खलबली मचा दी थी। इन्होने राज्यसभा में दिए गए अपने भाषण में अलग तमिलनाडु नामक देश की मांग रख दी थी और पुरे देश के वातावरण को विषाक्त कर दिया था। 

मित्रो वर्ष १९६२ में ही चीन की धोखेबाजी, धूर्तता और मक्कारी के कारण ना चाहते हुए भी हमारे देश को युद्ध में उतरना पड़ा था। अत: एक ओर चीन के साथ युद्ध हो रहा था और वंही दूसरी ओर  श्री सी एन अन्नादुरई की अलग तमिलनाडु नामक देश बनाने की मांग थी अत: आप अंदाजा लगा सकते हैं की देश कैसी परिस्थिति से जूझ रहा था। हालाँकि युद्ध शुरू होने के पश्चात श्री सी एन अन्नादुरई ने अपनी मांग छोड़ दी। दोस्तों यंहा गौर करने वाली बात  की बाहरी ताकतों से लड़ने के लिए तो हमारे पास नियम या विधियां हैं/थी  अनुच्छेद ३५२ के रूप में हमारे संविधान में लेकिन देश के आंतरिक वातावरण को खंडित करने वाली ताकतों (जो संविधान द्वारा प्रदत्त मुलभुत अधिकारों का दुरुपयोग करके देश की एकता और अखंडता को तोड़ने का प्रयास करते हैं) को रोकने के लिए हमारे पास कोई नियम या अधिनियम नहीं था। अत सरकार को नागरिको के कुछ मुलभुत अधिकारों पर युक्तियुक्त रोक लगाने की आवश्यकता महसूस हुई। 

भारत की संप्रभुता और अखंडता के हितों को ध्यान में रखकर  नागरिको के मूलभूत अधिकारों पर  उचित प्रतिबंध लगाने के पहलू पर गौर करने के लिए  राष्ट्रीय एकता परिषद ने (राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीयकरण पर) एक समिति नियुक्त की| समिति की सिफारिशों की स्वीकृति के अनुसरण में संविधान (सोलहवां संशोधन) अधिनियम, १९६३ (16th (Constitution) Amendment Act -1963) अधिनियमित किया गया।

राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रवाद पर राष्ट्रीय एकता परिषद द्वारा नियुक्त समिति की सर्वसम्मत सिफारिश की सरकार द्वारा स्वीकृति के अनुसरण में, संविधान (सोलहवां संशोधन) अधिनियम, 1963 अधिनियमित किया गया जिसके द्वारा संसद को, भारत की संप्रभुता और अखंडता के हितों में, कानून द्वारा, नागरिको के कुछ  मूलभूत अधिकारों पर, उचित प्रतिबंध लगाने के लिए सशक्त बनाया गया। ये मूलभूत अधिकार निम्नवत हैं:-

१:- भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression);

२:-शांतिपूर्वक और बिना हथियारों के इकट्ठा होने का अधिकार (Right to Assemble peaceably and without arms); और

३:-एसोसिएशन या यूनियन बनाने का अधिकार (Right to Form Associations or Unions)।

इस विधेयक का उद्देश्य भारत की अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ निर्देशित गतिविधियों से निपटने के लिए शक्तियां उपलब्ध कराना था। विधेयक को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया और 30 दिसंबर 1967 को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई, और इस प्रकार गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, १९६७ (जिसे अंग्रेजी में Unlawful Activities (Prevention) Act -1967 (UAPA )कहते हैं) अस्तित्व में आया।

संसोधन (Amendment)

ऐसा नहीं है की पहली बार २०१९ में ही इस UAPA में संशोधन हो रहा है अपितु समय-समय पर इसमें संसोधन होते रहे हैं, जैसे :-

The Unlawful Activities (Prevention) Amendment Act, 1969

The Criminal Law (Amendment) Act, 1972

The Delegated Legislation Provisions (Amendment) Act, 1986

The Unlawful Activities (Prevention) Amendment Act, 2004

The Unlawful Activities (Prevention) Amendment Act, 2008

The Unlawful Activities (Prevention) Amendment Act, 2012

चलिए देखते हैं की UAPA से पूर्व और पश्चात और कितने  अधिनियम गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) के लिए लागू  किये गए:-

१:- Preventive Detention Act ये वर्ष १९५० में लागू किया गया और १९६९ में इसे समाप्त कर दिया गया।

२:- Armed Forces Special  Powers Act इसे वर्ष १९५८ में लागू किया गया जो अब तक जारी है।

३:- Maintenance of Internal Security Act  इसे हम MISA के नाम से भी जानते हैं। ये वर्ष १९७१ में लागू किया गया था और १९७७ में समाप्त कर दिया गया।

४:- National Security Act इसे वर्ष १९८० में लागू  किया गया था और अब तक जारी है।

५:- Terrorist & Disruptive Activities (Prevention Act ) इसे हम TADA के नाम से भी जानते हैं। दोस्तों इसे पंजाब और अन्य राज्यों में चल रहे आतंकवादी घटनाओ को ध्यान में रखकर वर्ष १९८५ में लागू किया गया था और वर्ष १९९५ में इसे समाप्त कर दिया गया।

६:- Prevention of Terrorism Act  इसे POTA के नाम से भी जानते हैं| कंधार विमान  हाइजैक और संसद पर हुई आतंकवादी घटनाओ को ध्यान में रखते हुए  इसे वर्ष २००१ में लागू  किया गया था, परन्तु वर्ष २००४ में कांग्रेस की सरकार ने इसे समाप्त कर दिया।

हालाँकि, वर्ष २००४  में UAPA  में संशोधन करके  पोटा (POTA ) के अधिकांश प्रावधानों को फिर से शामिल कर लिया गया। वर्ष  २००८ में मुंबई  में हुए हमले के बाद इसे और मजबूत किया गया। सबसे नया  संशोधन २०१९  में किया गया है। इस संसोधन के उद्देश्यों और कारणों के बयान के अनुसार, विधेयक गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम, १९६७  में संशोधन करता है ताकि गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने में इसे और अधिक प्रभावी बनाया जा सके और वित्तीय कार्रवाई कार्य बल FATF (मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद वित्तपोषण से निपटने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन) में की गई प्रतिबद्धताओं को पूरा किया जा सके।

जुलाई २०१९  में, यूएपीए के दायरे का विस्तार किया गया। चलिए देखते हैं कि ये विस्तार किस प्रकार किया गया है?

गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) संशोधन विधेयक, २०१९  लोकसभा में ८ जुलाई २०१९  को गृह मंत्री, अमित शाह द्वारा पेश किया गया था। यह विधेयक गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, १९६७  में संशोधन करता है। अन्य बातों के अलावा, आतंकवादी गतिविधियों के साथ निपटने के लिए ये अधिनियम  विशेष प्रक्रिया प्रदान करता है यह अधिनियम २४  जुलाई को लोकसभा और २ अगस्त को राज्यसभा में पारित किया गया था। इसे ८ अगस्त को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई।

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च ने अधिनियम की व्याख्या निम्न प्रकार से की है:-

आतंकवाद कौन कर सकता है: अधिनियम के तहत, केंद्र सरकार किसी संगठन को आतंकवादी संगठन के रूप में नामित कर सकती है यदि वह:

(i) आतंकवाद के कृत्य करता है या उसमें भाग लेता है,:- अर्थात वो प्रत्यक्ष रूप से आतंकवाद की घटनाओ से जुड़ा होता है और अपने संगठन या समूह के गुर्गों के द्वारा आतंकवाद की घटनाओ को अंजाम देता है।

(ii) आतंकवाद के लिए तैयार करता है :- जैसे अर्बन नक्सली ये स्वयं तो आतंक की कार्यवाही नहीं करते परन्तु अपने विचारों से अपने लेखों से लोगो को भड़का कर देश की एकता और अखंडता पर कुठाराघात करते हैं।

(iii) आतंकवाद को बढ़ावा देता है,:- ये वो संगठन या समूह होते है जो किसी न किसी प्रकार से आतंकवादी संगठनों को आतंकवादी घटनाओ को अंजाम देने के लिए सहायता पहुंचाते (जैसे आर्थिक, समाजिक या फिर राजनितिक सहायता देकर) हैं और

(iv) आतंकवाद में अन्यथा शामिल है।

विधेयक अतिरिक्त रूप से सरकार को उसी आधार पर व्यक्तियों को आतंकवादी के रूप में नामित करने का अधिकार देता है।

उपर्युक्त  व्याख्या का विश्लेषण हम निम्न प्रकार से कर सकते हैं। इस UAPA में पहले केवल हम एक संगठन या समूह को आतंकवादी घोषित कर सकते थे उदहारण के लिए भारत सरकार जैसे ही मोहम्मद हाफिज सईद के संगठन “लष्करे तोयबा” को आतंकवादी संगठन घोषित करती थी ये हाफिज सईद और इसके पालतू गुर्गे तुरंत किसी दूसरे संगठन के नाम पर अपना आतंकवाद फैलाना शुरू कर  देते थे  या इसके गुर्गे व्यक्तिगत रूप से आतंकवादी गतिविधियां शुरू कर देते थे। अपने प्रतिबंधित संगठन की सारी काली कमाई नए संगठन के एकाउंट में  स्थानांतरित कर देते थे अत: इनको रोक पाना थोड़ा मुश्किल था और तो और भारत में किसी व्यक्ति विशेष को आतंकवादी घोषित करने का प्रावधान नहीं था इसीलिए भारत मोहम्मद हाफिज सईद या दावूद इब्राहिम या मौलाना मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के लिए अमेरिका को प्रार्थना करता था।

परन्तु अब इस संसोधन के द्वारा सरकार के पास वो शक्तियां मिल गयी है की वो किसी व्यक्ति को जो उपर्युक्त प्रकार से आतंकवादी घटनाओ से जुड़ा है, बिना किसी मुकदमे के आतंकवादी के रूप में नामित कर सकती है और उसका नाम UAPA  के 4th Schedule में आतंकवादी के रूप में अंकित कर सकती है।

इस अंक में बस इतना ही शेष हम अगले अंक में विश्लेषित करेंगे।

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