उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव मुझे जितना दिखाई दे रहा हैं, मुझे 1977 और 1984 के चुनाव याद आ रहे हैं, जिसमे 1977 का चुनाव नाराजगी, गुस्सा, इमरजेंसी के अत्याचार, नसबंदी का विरोध और जनतंत्र की पुनर्स्थापना का चुनाव था, यूं तो चुनाव में कई पार्टियों को मिलकर जनता पार्टी बन गयी थी, मगर ये चुनाव लड़ा था आम जनता ने, नेताओं और पार्टी के लिए चुनाव प्रचार स्वेछा और बिना किसी दबाब के मतदाताओं और आम लोगों ने किया था, वही 1984 का चुनाव इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद सहानुभूति और खालिस्तानी आतंकवाद के विरोध का चुनाव था, दोनों चुनावों में लहर चली.
आप उस समय की मीडिया रिपोर्ट उठाकर देख लीजिये, 1977 के चुनाव में संघर्ष से निकले बड़े-बड़े नेता थे, उनलोगों को भी अंदाजा नहीं था कि इतनी बड़ी जीत होने जा रही हैं और पुरे देश में किसी को भी ये कतई भरोसा नहीं था कि रायबरेली से इंदिरा गाँधी चुनाव हार जाएगी. 1984 के चुनाव में जौनपुर में जनता पार्टी के बड़े जनाधार वाले नेता रामकृष्ण हेगड़े को 60 हजार लोग दिसम्बर की सर्द रात में सुनने आये थे, सबको यकीन था उनकी जीत पक्की हैं, चुनाव में शायद उनकी जमानत भी नहीं बची थी.
ये जो लहर होती हैं वो चुनाव परिणाम के बाद दिखाई देती हैं, चुनाव के दौरान हमेशा टक्कर दिखाई देती हैं. किसको पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की लहर दिखाई दे रही थी ? किसको 2017 में भारतीय जनता पार्टी की लहर दिखाई दे रही थी ? सभी मीडिया और विशेषज्ञ 120- 150 सीटें बता रहे थे, कांटे की टक्कर और कड़ा मुकाबला सुनने को 2017 में भी मिल रहा था. बीजेपी की एक बड़ी समस्या हैं मीडिया और बुद्दिजीवियों का एक बड़ा वर्ग हैं जो उनके खिलाफ बड़ा नरेटिव बनाता हैं जिससे आपका विश्वास डगमगा सकता हैं, जिसको काटना बड़ा मुश्किल होता हैं. अगर किसी तरह उनका नरेटिव सफल हो जाता हैं तो लोगों के मन में आशंका घर कर जाती हैं कि पिछली बार सही हो गए थे क्या इस बार भी सही हो जायेगे. जो आप देख रहे हैं उसको कई बार देखने की कोशिश करे और सही सोर्स से कन्फर्म करने की कोशिश करे.
हो सकता हैं मैं पूरी तरह से गलत हो जायुं, एकदम उल्टा नतीजा आ जाये लेकिन मैं वो लिख रहा हूँ जो मुझे दिखाई और समझ आ रहा हैं, अगर जो दिखाई और समझ में आ रहा हैं वो गलत हैं तो चुनाव परिमाण में बाद मैं आपसे माफ़ी मांग लूँगा. लेकिन इस डर से कि मैं गलत हो सकता हूँ, मैं वो बात नही कह सकता हूँ जो मुझे दिख नहीं रही हैं , आप कह सकते हैं कि आपकी नजर पर दूसरा चश्मा लगा हुआ हैं ,कोई भी आरोप लगा सकते हैं , उसके लिए आप स्वतंत्र हैं, मगर मैं गलत हुआ तो आप कह सकते हैं कि मैं दुसरे चश्मे से देख रहा रहा था.
इस सब के बावजूद मैं कह रहा हूँ कि 2022 उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव बीजेपी नही लड़ रही हैं, ये चुनाव आम लोग और मतदाता लड़ रहा हैं, इसके संकेत आपको जगह-जगह मिल जायेगे, आप देखिये नमक का मुद्दा, नमक की शपथ दिलाई जा रहीं हैं, कहा जा रहा हैं जिन्होंने नमक दिया हैं, नमक खाया हैं उनसे नमक हरामी नहीं करेगे. ये बीजेपी के नेता नहीं कह रहे हैं ,ये मुद्दा बीजेपी के लोगों ने नहीं उठाया हैं, ये गाँव में लोगों ने स्वतः उठाया हैं, आप कह सकते हैं कि ये बीजेपी के वोटर हैं और बीजेपी से प्रभावित हैं, बीजेपी से प्रभावित लोग पहले भी हुए हैं. लेकिन वो अपनी और से ये मुद्दा नहीं उठाते हैं, कोई मुद्दा बनाते नहीं हैं, वो तभी होता हैं जब लहर वाला चुनाव हो. जैसा 1977 और 1984 में हुआ था.
मैं जब ये बात कह रहा हूँ मैं सिर्फ उन लोगों की बात कर रहा हूँ जो बीजेपी के विरोधी हैं, जो मोदी और योगी के विरोधी हैं. उनके पास भी इन दोनों नेताओ की ईमानदारी के विरोध में कहने के लिए कुछ नहीं हैं. इन नेताओ का परिवारवाद से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं हैं. इसको काटने का विरोधी के पास कोई उपाय नहीं हैं. ये बात बीजेपी के नेता नहीं आम मतदाता बोल रहा हैं. गाँव में जाईये ,पूछिए भ्रष्टाचार के बारे में ,जबाब के बजाये आपसे सवाल किया जा रहा हैं “ई भैया मोदी-योगी किसन पैसे कमाई हे”, यानि मोदी-योगी किसके लिए पैसे कमायेगे.जिस तरह का भरोसा आम मतदाता प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी के नेतृत्व में जताते हैं,वो बहुत कम देखने को मिला हैं.
मुख्यमंत्री योगी के सन्यास से पहले के परिवार की आर्थिक स्तिथि देख ले ,प्रधानमंत्री मोदी के परिवार की आर्थिक स्तिथि देख ले, मोदी पिछले 20 सालो से सत्ता में हैं. उनका विरोधी या दुश्मन भी खड़ा होकर ये नहीं कह सकता हैं इन्होने अपने परिवार के लिए ये किया हैं. इस वजह से ये भरोसा है. डबल इंजन की बात प्रधानमंत्री मोदी ,मुख्यमंत्री योगी और बीजेपी के नेता बार-बार कर रहे हैं, मैं दुसरे डबल इंजन की बात कर रहा हूँ, यानि मोदी और योगी के नेतृत्व का डबल इंजन, ये आजादी के बाद का पहला ऐसा चुनाव हैं जिसमे एक ही पार्टी की सरकार दोनों जगह हो, जिसमे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की ईमानदारी पर कोई शक ही ना हो ,दोनो की छवि पर परिवारवाद और भ्रष्टाचार का आरोप उनके विरोधी भी नहीं लगा पा रहे हैं.
बीजेपी को मुसलमानों का सबसे बड़ा विरोधी के रूप में पेश किया जाता हैं, ये परसेपसन बनाया गया है जो मुस्लिमों के मन में घर कर गया हैं. जो गुंडे,माफिया, अवैध बूचड़खाने चलाने वाले, गौ तस्करी, हत्या, चोरी में संलिप्त रहते थे उनको छोड़ दीजिये, आम मुसलमान से आप पूछिए उसके पास सरकार की आलोचना का कोई आधार नहीं हैं, भले ही वो कहे हम वोट नहीं देगे, हमे बीजेपी पसंद नहीं हैं. उत्तर प्रदेश का मुसलमान ऐसी एक भी बात बताने की स्थिति में नहीं हैं कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने ऐसा कुछ किया हैं जो उसके खिलाफ हो, भेदभाव किया हो. अपनी राजनीतिक लगाव के कारण वो कुछ भी कहे, समर्थन और प्रचार किसी का भी करे.लेकिन सरकार और उसकी नीतियों के खिलाफ बोलने के लिए उसके पास कोई भी मुद्दा नहीं हैं.
ये चुनाव आम लोग और मतदाता लड़ रहे हैं, बीजेपी नहीं लड़ रही हैं, इसके तीन उदाहरण हाल ही में सामने आये हैं, ये घटनाये तीसरे चरण में ही हुई हैं, पहली घटना शाहजहांपुर में हुई जहाँ यादव समाज के सपा समर्थक और यादव समाज के बीजेपी समर्थक में झगडा हुआ, सपा के यादव ने बीजेपी के यादव की गोली मारकर हत्या कर दी, जबकि माना जाता हैं यादव बीजेपी का वोटर नहीं होता हैं. यादव इस हद तक कैसे जा सकता हैं कि वो मौत की भी परवाह नहीं करता.
दूसरी घटना बदांयू में हुई जहाँ अपनी पसंद की पार्टी को लेकर बहस में मुसलमान सपा समर्थक ने मुसलमान बीजेपी समर्थक की गोली मारकर हत्या कर दी, जबकि मुस्लिम बीजेपी का समर्थक तो नहीं होता हैं, आपने कभी सुना हैं कि किसी मुस्लिम की बीजेपी का समर्थन करने के कारण जान चली गयी.
तीसरी घटना फिरोजाबाद में हुई जहाँ भाजपा के ब्राह्मण समर्थक और सपा के यादव समर्थक में झगडा हुआ और सपा के यादव समर्थक ने भाजपा के ब्राह्मण समर्थक को गोली मार दी,हॉस्पिटल में भर्ती कराने पर उसकी जान बच गयी. बड़ा नेरेटिव बनाया गया ब्राह्मण बीजेपी से नाराज हैं,यहाँ एक ब्राह्मण हैं जो बीजेपी के लिए जान देने को तैयार हैं.
ये घटनाये और उदाहरण बता रहे हैं कि चुनाव अब बीजेपी नहीं जनता लड़ रही हैं. लोगों को जिस प्रकार से सुविधाये और लाभ मिला हैं, मुफ्त राशन से लेकर किसान सम्मान निधि,पेंशन,जनधन खाता,बिजली,सड़क ये सब चीजे लोगों की जिन्दगी को बदल रही हैं.लोगों को ठोस लाभ दिखाई दे रहा हैं, ये आश्वासन का लाभ नहीं हैं कि हम सत्ता में आये तो ऐसा करेगे वैसा करेगे. ये सब काम कोरोना की महामारी के 2 साल के व्यवधान के बाद हुआ है. आप गाँव में जाकर देखिये बुजुर्ग लोग मोदी-योगी को आशीर्वाद देने की बात करते दिखाई देगे.एक बुजुर्ग की विडियो वायरल हुई जिसमे वो मोदी-योगी की सरकार दोबारा किसी कारण ना आने पर लोगों के ख़राब भाग्य से जोड़ते दिखाई दिए थे. आप समझ सकते हैं लोगों के अन्दर कितना प्रेम और लगन हैं योगी को दोबारा मुख्यमंत्री बनाने के लिए.
आगामी 10 मार्च को योगी आदित्यनाथ के भाग्य का फैसला हो जायेगा. ये लहर कितना प्रचंड रूप दिखाती हैं ये चुनाव परिमाण के बाद सबके सामने आ जायेगा.
- -अभिषेक कुमार
( सभी विचार और आंकलन लेखक के व्यतिगत हैं)