Saturday, April 20, 2024
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राष्ट्रवाद और राष्ट्रवादी क्यों जरूरी है?

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Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.

देख लो जब अफगानिस्तान पर तालिबान ने आक्रमण कर कब्जा करना शुरू किया तो वंहा कि जनता के साथ साथ सेना ने भी बुजदिलो कि तरह आत्मसमर्पण कर दिया। उनके पास पेट्रोल, डीजल कि कमी नहीं थी, सारी दुनिया से मदद भी आ रही थी और अमेरिका तो था ही पर फिर भी ३.५ लाख सैनिको ने ६० से ६५ हजार तालिबानीयो के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। कमी क्या थी? कंही तो कुछ ऐसा था जो इन लोगो ने अपनी जान की परवाह तो की पर अपने देश की परवाह नहीं की उसे जाने दिया तालिबानियों के हाथो में।

यूरोपियन देश यूक्रेन भी विकसित राष्ट्र कि श्रेणी में आता है। बड़ी बड़ी जगमगाती शानदार बिल्डिंगें है.. चमचमाती हुई सड़कें और लंबी लक्जरी कार गाडियां हैं सड़कों पर साइकिल तो क्या दोपहिया वाहन भी दिखाई नहीं देते क्योंकि सबके पास महंगी लक्जरी गाडियां है, अच्छे मेडिकल कॉलेज भी है, पेट्रोल है, डीजल है, महंगाई नहीं है, RSS नहीं है, भाजपा नहीं है, हिंदुत्व नहीं है, सेक्युलरिज्म है, लिबरलिज्म् है और समस्त भौतिक आधुनिक सुख सुविधाएं हैं।

बड़ी बड़ी युनिवर्सिटी है, बेहतरीन मेडिकल कालेज हैं, तभी तो शिक्षा के लिए भारत के हजारों छात्र यूक्रेन में पढ़ाई कर रहें हैं। अब हमारे यंहा के तथाकथित सेक्युलरवादी, लिबरलवादी, साम्यवादी और कांग्रेसवादी तथाकथित बुध्जिवियो के अनुसार यूक्रेन में चारों तरफ संपन्नता है।

पर इस सम्पन्नता के चक्कर में युक्रेन ने अगर कुछ नहीं बनाया तो वो है देश की सामरिक शक्ति, मजबूत सेना, अत्याधुनिक हथियार।

वंहा कि जनता भौतिक सुख सुविधाओं का भोग करने कि इतनी आदत हो चुकी है, कि उनके लिए ना तो राष्ट्र का कोई मतलब है और ना राष्ट्रवाद से कोई लेना देना। उन्हें इस बात की परवाह हि नहीं रही की युक्रेन उनका अपना देश है वो केवल इसे मिट्टी का एक टुकड़ा भर समझते रहे।

और अपने राष्ट्र के प्रति वहां की जनता में राष्ट्रवादी भावना ना होने कारण  मात्र दो घंटे में रुस ने यूक्रेन को घुटनों पर लाकर खड़ा कर दिया यूक्रेन के सैनिक उनका सामना नहीं कर पा रहे। यूक्रेन के राष्ट्रपति आम लोगों से युद्ध लड़ने की अपील कर रहें हैं, परन्तु भौतिक्तावादी जनता उनके इस अपील को नजरअंदाज कर केवल अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर भाग रही है।

यद्यपि इसके लिए सारी पाबंदियां भी हटा दी गई है और यूक्रेन आम नागरिकों को युद्ध लड़ने के लिए हथियार देने की बात भी कह रहा है पर मजाल यूक्रेन का एक भी नागरिक (जिसने केवल और केवल आधुनिक सुख सुविधाओं से युक्त विलासितापूर्ण जीवन जिया है), युद्ध लड़ने को तैयार हुआ हो, क्योंकि यूक्रेन के नागरिकों में भारत या इजराइल के नागरिकों की तरह राष्ट्रवाद की भावना ही नहीं है।

वह तो एशो आराम की जिन्दगी जीने के आदी हो चुके हैं। जिसका परिणाम ये है कि यूक्रेन के स्कूल कालेज, युनिवर्सिटी, बाजार, दुकान,आफिस सब बन्द कर दिये गये हैं। सब कारोबार चौपट हो गया है। कारखाने फैक्ट्री सब बन्द हो गये। सब कारोबार चौपट हो गया है कारखाने फैक्ट्री बंद हो गई लोग रोजगार तो क्या अपनी जान बचाने के लिए सिमित संख्या में मौजूद बंकरों में छुप रहें हैं अंडरग्राउंड मेट्रो स्टेशनों में शरण ले रहें हैं। यानि सब कुछ होते हुए भी यूक्रेन आज जिंदगी की भीख मांग रहा है।

अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी इत्यादि सभी ने युक्रेन को धोखा देते हुए सैन्य मदद देने से इंकार कर दिया क्योंकि रूस से कोई पंगा नहीं लेना चाहता। युक्रेन NATO में शामिल होना चाहता था और उसे भली भांति पता था कि रूस इसे बर्दास्त नहीं करेगा पर अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों के धूर्तता और मक्कारी के चक्कर में वो रूस की विश्व स्तरीय सामरिक् शक्ति को छोटा समझने कि भूल कर बैठा।

ये लेख भारत के उन लोगों को समर्पित है जो राष्ट्रवाद और राष्ट्रवादियों को गाहे बगाहे गालियां देते रहते हैं तथा सिर्फ महंगाई, बेरोजगारी और आलू प्याज टमाटर तथा मुफ्त की योजनाओं को ही देश के विकास का पैमाना मान बैठे हैं।

 यह लेख राहुल गांधी के उस  बयान को  मूर्खतापूर्ण बयान कि श्रेणी में रखकर आइना दिखाता है जिसमें राहुल गांधी ने कहा था कि सेना की मजबूती अत्याधुनिक हथियारों के जखीरे इकट्ठा करने से देश का विकास नहीं होता। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी जैसे मंदबुद्धि को रुस यूक्रेन युद्ध से शाय़द थोड़ी अक्ल आ जाये हम ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं और उन मुफ्तखोरों को भी समझ आ जायेगी, क्योंकि किसी भी देश के विकास का रास्ता उसकी सैनिक ताकत, सीमाओं की मजबूत सुरक्षा और अत्याधिक हथियारों से होकर निकलता है।

अब आप हि इस तथ्य से भारत के नामुराद छद्दम धर्मनिरपेक्षता वादियों, लिबरलवादीयो, साम्यवादीयो, कांग्रेसवादीयो को अवगत कराये और पूछें की बताओ भारत कि धरती पर बोझ बन कर जीने वालों बताओ ये सच है कि नहीं कि “राष्ट्रवाद हि नागरिकों को अपने राष्ट्र से जोडता है, अपने राष्ट्र की रक्षा के लिए अपना सर्वस्य बलिदान करने के लिए प्रेरित करता है। एक देश के नागरिकों के राष्ट्रवाद कि भावना ही राष्ट्र को मजबूत बनाती है, उसकी सुरक्षा करती है।

अब जरा यूक्रेन और रूस के भारत से सम्बन्धो के ऊपर भी गौर कर लें | ये बात किसी से छिपी नहीं है की जब जब भारत पर मुसीबत आयी है तब तब या तो रूस  भारत के पक्ष में खड़ा हुआ है या फिर इजराइल | इन दोनों देशो ने पूरी दुनिया से भारत के लिए पंगा लिया और इसलिए भारत ने भी इजराइल  और रूस का भरपूर साथ दिया | अब यूक्रेन की जरा बात करे तो क्या यूक्रेन ने कभीभी भारत का साथ दिया है , उत्तर होगा नहीं , क्योंकि नाटो की सदस्य्ता पाने और अमेरिका के नजदीक जाने में यूक्रेन ने इतनी दिलचस्पी दिखाई की हर बार उसने या तो भारत का या फिर रूस का विरोध किया |  भारत के विरुद्ध किये गए यूक्रेन के कार्य  निम्नवत है :-

१)यूक्रेन ने कश्मीर मुद्दे पर UNO में भारत के खिलाफ वोट दिया था।

२ ) यूक्रेन ने परमाणु परीक्षण मुद्दे पर UNO में भारत के खिलाफ वोट दिया था।

३ ) यूक्रेन ने UNO की सिक्योरिटी कौंसिल में भारत की स्थायी सदस्यता के खिलाफ वोट किया था।

४ ) यूक्रेन पाकिस्तान को हथियार सप्लाई करता है।

५ ) यूक्रेन अल कायदा को समर्थन देता है।

 उपर्युक्त कारणों से युक्रेन से भारतीय होने के नाते मुझे कोई भी सहानुभूति नही है। जब हमारे उपर प्रतिबन्ध लगा तो UNO मे उसने प्रतिबन्ध के पक्ष मे वोट किया। इसके पास यूरेनियम का भंडार था फिर भी बार बार मांगे जाने पर भी इसने कभी भी देना तो दूर हमारे तत्कालीन PM को टरका दिया। सीधे मुँह बात तक नही किया, जबकि भारत अपनी ऊर्जा के लिए यूरेनियम खोज रहा था। मैं  केवल  नागरिको के साथ सहानुभूति ही व्यक्त कर सकता हूँ । कमज़ोर युक्रेन(जो की अपने आप बना) के साथ वही हो रहा है जो  नेहरू जी के समय 1947 से पहले और उसके बाद हुआ। अर्थात विभाजन और देश के सीमा पर अतिक्रमण। इसलिए जो लोग यूक्रेन के समर्थन में दुबले हो रहे है उनको समझना चाहिए कि यूक्रेन हमारा एक दुश्मन है जिसने कभी भारत का साथ नही दिया।

आज भारत में रह रहे यूक्रेन के राजदूत भारत से गुहार लगा रहे हैं की वो रूस के क्रोध से यूक्रेन को बचा ले | भारत ने मानवतावादी दृष्टिकोण को कायम रखते हुए मोदी जी के नेतृत्व में  रूस के महानायक पुतिन से बात भी की और मामले के शांतिपूर्ण हल ढूढ़ने की सलाह दी परन्तु समस्या ये है की नाटो के हाथो में खेलता यूक्रेन, रूस के लिए कभी भी खतरा बन सकता है , क्योंकि नाटो का सदस्य बन जाने के पश्चात यूक्रेन की भूमि का उपयोग अमेरिका और ब्रिटेन रूस के विरुद्ध आसानी से कर सकते हैं अत: रूस अपने दरवाजे पर दुश्मन को खड़ा होने का मौका क्यों देगा | अब इस एक्स प्रश्न का जवाब और समस्या का हल दोनों यूक्रेन के पास है , रूस के पास नहीं |

यूक्रेन ना तो अपने को ताकतवर बना पाया और ना अपने नागरिको के दिलो में राष्ट्रवाद को जिन्दा कर पाया और परिणाम ये है की यूक्रेन के नागरिक अपने देश को नहीं अपितु अपनी जान बचने के लिए इधर उधर बहग रहे हैं, अफगानियों की तरह |

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि |

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि |  जय हिन्द|   वन्देमातरम |

Nagendra Pratap Singh

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