Friday, April 26, 2024
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जयंत के सामने रालोद के अस्तित्व को बचाने चुनौती

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Abhishek Kumar
Abhishek Kumarhttps://muckrack.com/abhishekkumar
Politics -Political & Election Analyst

अजित सिंह को विरासत में मिली थीं करीब 36 सीटें
अजित सिंह को विरासत में अपने पिता से 36 सीटें मिली थी, लेकिन 2019 तक उनके पास अपनी भी सीट नहीं बची हैं। चौधरी परिवार की 1937 से शुरू हुई राजनीति आज केवल नाम की रह गई है। चौधरी चरण सिंह की राजनीति से बनाई गई राष्ट्रीय लोकदल केवल एक पार्टी मात्र बची है। चौधरी चरण सिंह ने जिस लोकदल को इतना मजबूत किया था कि वह प्रधानमंत्री तक बने। वहीं, लोकदल अजित सिंह को विरासत में 1989 में मिली, जब वह अपने पिता की बागपत सीट से भारी मतों से विजयी हुए,अजित सिंह छह बार यहां से सांसद रहे। 2014 में वह तीसरे नंबर पर चले गए थे। 2019 लोकसभा चुनाव में अपने पुत्र जयंत को बागपत सीट सौंपकर अजित सिंह मुज्जफरनगर से लड़ें मगर पिता-पुत्र दोनों की जोड़ी मोदी लहर में हार गयी. कोरोना से पिता अजित सिंह के निधन के बाद रालोद की कमान जयंत के पास हैं, ये विधानसभा चुनाव उसके लिए सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा हैं.

पलटी मारने का पुराना इतिहास
गृहमंत्री अमित शाह के उन्हें समाजवादी पार्टी का साथ छोड़कर बीजेपी के साथ आने के ऑफ़र के जवाब में रालोद के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने कहा “चवन्नी नहीं हूं जो पलट जऊंगा” लेकिन उनकी पार्टी का इतिहास तो चुनाव के बाद पलटी मारने का रहा है. जयंत के चवन्नी वाले बयान के बाद केंद्रीय शिक्षामंत्री धर्मेद्र प्रधान ने जयंत को ये इतिहास याद भी दिलाया है. उन्होंने ये भी याद दिलाया है कि जिस बीजेपी के नाम से वो नाक भौं सिकोड़ रहे हैं, उसी के साथ गठबंधन के चलते वो 2009 में मथुरा से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे.

मुसलमानों का भरोसा जीतने की चुनौती

मुसलमानों का भरोसा जीतना जयंत के लिए बेहद ज़रूरी है.अखिलेश ने इसलिए उनके साथ गठबंधन किया है कि वो जाट-मुस्लिम समीकरण से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के विजय रथ को रोकेंगे. ऐसा भी मुमकिन है जब मुसलमानों का बड़ा धड़ा उनके गठबंधन को वोट दे. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मुसलमान सपा-रालोद गठबंधन को तभी वोट देगा, जब जाट इस गठबंधन को एक तरफा वोट करेगा.

बीजेपी के चक्रव्यूह में फंसे जयंत

मुज्जफरनगर दंगो के बाद जाट और मुस्लिमों के बीच पैदा हुई खाई को पाटने के लिए अखिलेश यादव और जयंत की बनाई जाट-मुस्लिम एकता वाली रणनीति को ध्वस्त करने के लिए बीजेपी ने बड़े पमाने पर जाटों को टिकट दिया है. माना जा रहा हैं सपा-रालोद के जाट उम्मीदवार को जाटों का भरपूर वोट मिलेगा, लेकिन मुसलमान उम्मीदवार को जाट उतने उत्साह से वोट ना देकर बीजेपी के जाट प्रत्याशी को जिताएंगे. इसका अहसास जयंत को भी है, इसको भांपते हुए मुज्जफरनगर जनपद में छह में एक सीट पर भी गठबंधन ने मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है, इससे ज़िले के मुसलमानों में नाराज़गी बताई जा रही है. कृषि कानूनों की वापसी और लगातार उठते हिंदू-मुस्लिम मुद्दों की वजह से जाटों के एक बड़े तबके पर फिर से हिंदुत्व का नारा हावी होने लगा है. मुज्जफरनगर दंगो के जख्म लोगों के जहन में अभी भी जिन्दा हैं, जिसको भर पाना जयंत के लिए बड़ी चुनौती है.

बीजेपी के सामने पुराना प्रदर्शन दोहराने की चुनौती

मुज़फ्फरनगर दंगों से हुए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुसलमान समीकरण ध्वस्त हो गए थे. मोदी लहर और हिंदुत्व के मुद्दों पर हुए विधानसभा चुनाव में इस इलाके में बीजेपी का झंडा फहराया था, पहले और दूसरे चरण में जिन 113 सीटों पर चुनाव होना है, उनमें से पिछली बार 91 सीटें बीजेपी ने जीती थीं. पहले चरण वाली 58 में से 53 और दूसरे चरण वाली 55 में से 38 बीजेपी के खाते में गई थीं. रालोद और सपा गठबंधन से बने समीकरणों को ध्वस्त करने के लिए बीजेपी ने इस बार पूरी ताक़त झोक दी है.

सपा रालोद गठबंधन का हव्वा

देश के अधिकांश मीडिया हाउस और कुछ कथाकथित पत्रकारों ने सपा और रालोद गठबंधन के पक्ष में एक नरेटिव बनाया हुआ हैं, जबकि आंकड़े इसके विपरीत हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में रालोद ने वेस्ट यूपी में सौ सीटों पर चुनाव लड़ा था,जिसमे 85 सीटों पर पार्टी की जमानत जब्त हुई थी,4 सीटों पर नंबर 2 पर पार्टी रही, तथा 13 सीटों पर नंबर 3 पर रही थी, 32 सीटों में से 6 सीटों पर हजार से कम,4 सीटों पर ढाई हजार से कम, कुल मिलकर 21 सीटों पर दस हजार मतों से नीचे सिमट गयी थी. रालोद ने 277 सीटों पर चुनाव लड़कर सिर्फ छपरौली की सीट ही जीती थी. रालोद को कुल पड़े वोटों का सिर्फ 1.87% यानि 15,45,811 वोट मिले थे. इस वजह से रालोद की क्षेत्रीय पार्टी की भी मान्यता रद्द हो गई थी. क्षेत्रीय पार्टी की मान्यता बरकरार रखने के रालोद का विधानसभा सीटों की 3%  सीटें यानि कम से कम 13 सीटें या फिर कोई भी सीट जीते बगैर 8%  वोट हासिल करना जरूरी है. अपनी पार्टी की मान्यता बचाने के लिए वो गठबंधन में सिर्फ 36 सीटों पर लड़ने को राज़ी हुए हैं. क्या सपा और रालोद के गठबंधन बीजेपी को अपना पुराना प्रदर्शन दोहराने से रोक पाती हैं ये तो 10 मार्च को चुनाव परिणाम के बाद ही पता चल पायेगा

-अभिषेक कुमार

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