मौबलिचिंग की घटना तो सारे देश में चर्चा होती है लेकिन अंधविश्वास की आड़ में डायन–बिसाही जैसी कुप्रथा की शिकार होती महिलाएं की हत्या अभी भी सामान्य सी होने वाली कानून व्यवस्था के कमी के अंतर्गत ही देखा जाता है। परंतु डायन कुप्रथा के कारण होती महिलाओं की हत्या का सिलसिला झारखंड में थमने का नाम ही नहीं ले रही है। हाल ही में जनवरी माह के 2022 में झारखंड के सिमडेगा जिले में डायन के नाम पर एक महिला को भीड़ ने जिंदा जलाने का प्रयास किया गया लेकिन वह उसके चंगुल से बच निकली। पिछले साल ही झारखंड के ही गुमला जिले के एक ही परिवार के पांच लोगों की हत्या कर दी गई। पुलिसिया कारवाई होने के बावजूद घटनायें रुकने की नाम ले रही है। झारखंड के दूरदराज़ इलाकों में जागरूकता और शिक्षा के अभाव के कारण ऐसी अंधविश्वास को बढ़ावा मिल रहा है। लेकिन सबसे आश्चर्यचकित करने वाली बात यह है कि 21 सदीं के वैज्ञानिकता की इस दौर में भी डायन–बिसाही जैसी कुप्रथा के नाम पर हत्याएं हो रहीं हैं।
झारखंड में डायन –बिसाही की पहली घटना पहली बार साल 1991 में प्रकाश में आया, जिसमें उक्त महिला को डायन के नाम पर प्रताड़ित कर उसके पति और बेटे को हत्या कर दी गयी। इसके बाद सरायकेला–खरसवाँ जिले के पद्म श्री से सम्मानित छुटनी महतो का 1995 में मामला आया, और अपने ऊपर हुए जुल्म को सहा। दर–दर की ठोकरें खानी पड़ी। अपनों के द्वारा ही घर से बेदखल कर दिया गया था, इस विकट समय में अपनों ने साथ छोड़ दिया था। परंतु वे हार नहीं मानी और डायन कुप्रथा के शिकार अन्य पीड़ित महिलाओं लिए उन्होने जमीनी स्तर पर काफी काम किया, क्योंकि डायन-बिसाही के नाम पर हो रही महिलाओं पर अत्याचार दिन–प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे। उन दिनों कोल्हान प्रमंडल में ऐसी घटनायें लगातार हो रही थी। इस प्रथा के खिलाफ जमशेदपुर अंतर्गत सोनारी के प्रेमचंद ने फ्री लीगल एड कमेटी नामक संस्था खोली। इस संस्था ने यूनिसेफ के साथ मिलकर जागरूकता अभियान चलाया ।इस अभियान में कई बार संस्थान के सदस्यों पर जानलेवा हमले हुए। परंतु संस्था अपना काम बड़ी ही मजबूती के साथ करती रही।
देश के जिस राज्य में आदिवासियों की संख्या ज्यादा है, वहां डायन–बिसाही की बहुत बड़ी समस्या है और डायन जैसी कुप्रथा से प्रभावित झारखंड है। अगर औसत प्रतिदिन के हिसाब से देखें तो 2 से ज्यादा मामले डायन–बिसाही का होता है। डायन से जुड़े मामलों की छानबीन में कुछ अहम बातें सामने आई हैं, इसमें ज़्यादातर हत्या निजी स्वार्थ की वजह से की गई है। जिनमें पारिवारिक विवाद और जमीन हड़पने की नियत प्रमुख है। एक और वजह बहुत से मामलों में देखी जाती है। किसी के बीमार होने पर इलाज कराने तांत्रिक और ओझा-गुणी के पास पहुंच जाते हैं और उसके इशारे पर भी हत्या की घटना को अंजाम दिया जाता है। आमतौर पर गाँव में प्रचारित कर दिया जाता है कि डायन तंत्र –मंत्र से किसी की जान ले सकती है। इसके पास इतनी शक्ति है कि हरे–भरे पेड़ को सूखा सकती है, बच्चों को पल में गायब कर सकती है। गाँव में खुद को ओझा कहने वाले लोग गाँव की कमजोर, विधवा महिलाओं को डायन घोषित कर देते हैं और ग्रामीणों को उकसा कर उनकी हत्या कर दी जाती है। उन्हें मैला खिलाना, नंगा घुमाने जैसी जघन्य अपराध की जाती है। यूं कहें तो महिलाओं के शोषण का सबसे सरल तरीका अपनाया जाता है।
महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों के रोकथाम के लिए कार्य कर रही फ्री लीगल हेड कमेटी तमाम धमकियों के बावजूद डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम का ड्राफ्ट तैयार कर तत्कालीन बिहार सरकार को दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी व उनके मंत्रिमंडल ने ड्राफ्ट को सही माना। अविभाजित बिहार ने इसे कानून का शक्ल देकर सन 1999 में लागू कर दिया। यह देश की पहली सरकार थी, जिसने डायन प्रथा के खिलाफ कानून बनाया और इसके बाद छह राज्यों में डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम लागू हो गया। झारखंड सरकार ने इसे तीन जुलाई 2001 को कानून बनाया।
डायन कुप्रथा के उन्मूलन के लिए राज्य सरकार की ओर से लगातार जनजागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियमन को मुस्तैदी से क्रियान्वयन होना आवश्यक है। कुप्रथा के खिलाफ प्रचार–प्रसार हो इसके लिए स्पेशल टास्क फोर्स गठित हो। लेकिन जमीनी स्तर पर इस पर अंकुश लगाने के लिए सरकार के तरफ से लगातार प्रयास की जानी चाहिए। सरकार के द्वारा सभी जिलों में साप्ताहिक हाट–बाजार में भी अभियान चलाया जाना चाहिए। माइक और औडियो–वीडियो के जरिए जागरूकता अभियान चलाने की अवश्यकता है। मुहल्लों, गाँवों, पंचायतों में नुक्कड़ नाटक के माध्यम से जागरूक करने का प्रयास होनी चाहिए। लेकिन सरकार इसे स्थायी तौर पर समाधान तभी कर सकती है, जब पूर्णइच्छा से कार्य किया जाय। इसके लिए समाज को शिक्षित किया जाना चाहिए तब जाकर समाज को जागरूक कर डायन–बिसाही जैसी अमानवीय कुप्रथा पर को समाप्त किया जा सकता है।
ज्योति रंजन पाठक -औथर, कंटेन्ट राइटर व कौल्मनिस्ट