Monday, November 4, 2024
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मनरेगा का खजाना खाली होने के कगार पर

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Pooja Kushwah
Pooja Kushwahhttps://muckrack.com/poojakushwah
Digital Journalist/ Social Activist/ News Media

मनरेगा योजना का नब्बे प्रतिशत आंवटित बजट खर्च हो गया हैं, खजाना खाली होने के कगार पर पहुंच गया है जबकि अभी योजना के कार्यक्रम के पांच महिने शेष हैं ।लॉकडाउन के दौरान मजदूरों के लिए संजीवनी साबित हुई मनरेगा एक मांग आधारित योजना है, जो किसी भी ग्रामीण परिवार को 100 दिनों के अकुशल काम की गारंटी देता है। पिछले साल के लॉकडाउन के दौरान, इस योजना को 1.11 लाख करोड़ रुपये का उच्चतम बजट दिया गया और रिकॉर्ड 11 करोड़ श्रमिकों के लिए एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा प्रदान की गई।

देश के गांवों में रोजगार के लिए लाइफ लाइन कहीं जाने वाली महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) में कार्यरत श्रमिको की दिवाली इस बार फीकी रह सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक देश की मनरेगा योजना के खजाने में अब रुपये नहीं बचे हैं जिससे 21 राज्यों में काम कर रहे मजदूरों के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। वहीं, ग्रामीण विकास मंत्रालय ने शनिवार को कहा कि सरकार कार्यक्रम के उचित कार्यान्वयन के लिए मजदूरी और सामग्री भुगतान के लिए धन जारी करने के लिए प्रतिबद्ध है। मंत्रालय ने कहा कि जब भी अतिरिक्त धन की आवश्यकता होती है, वित्त मंत्रालय से इसे उपलब्ध कराने का अनुरोध किया जाता है।

आवंटित बजट का लगभग 90 फीसदी खत्म, पांच महीने अभी भी शेष

उधर, पीपुल्स ऐक्शन फार इंप्लाइमेंट गारंटी (पीएईजी) कार्यकारी समूह के सदस्य निखिल डे ने कहा कि कोरोना महामारी के साथ साथ लॉकडाउन की वजह से देश भर के श्रमिकों पर अभूतपूर्व प्रभाव पड़ा है। पिछले साल पहली लहर के दौरान लाखों ग्रामीण गरीबों ने मनरेगा की ओर रुख किया क्योंकि यह बुनियादी आय सुरक्षा का एकमात्र स्रोत था। वित्तीय वर्ष 2020-21 में कुल 7.75 करोड़ परिवारों को इसके तहत काम दिया गया था। नरेगा प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस) के आंकड़ों के आधार पर विवरण साझा करते हुए डे ने कहा, ‘ इस वर्ष के लिए आवंटित बजट का लगभग 90 प्रतिशत अब तक उपयोग किया जा चुका है, कार्यक्रम के पांच महीने अभी भी शेष हैं।

2021-22 का बजट सिर्फ ₹73,000 करोड़ रुपये का

हालांकि, योजना का 2021-22 का बजट सिर्फ 73,000 करोड़ रुपये पर निर्धारित किया गया था, केंद्र ने तर्क दिया कि देशव्यापी लॉकडाउन समाप्त हो गया था और अगर पैसा खत्म हो गया तो अनुपूरक बजटीय आवंटन उपलब्ध होगा। 29 अक्टूबर तक, देय भुगतान सहित कुल व्यय पहले ही 79,810 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था, जिससे योजना संकट में आ गई। पहले से ही, 21 राज्यों ने नकारात्मक शुद्ध संतुलन दिखाया है, जिसमें आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल सबसे खराब स्थिति में हैं तो वहीं राजस्थान में श्रमिकों के भुगतान का 106 करोड़ रुपये बकाया हैं ,दिवाली के चार दिन बचे हैं और 64 हजारों श्रमिकों के भुगतान का 106 करोड़ रुपये बाकी है। वहीं, मटेरियल मद में भी 81.74 करोड़ रुपये का भुगतान बकाया है। दोनों का करीब 1 अरब 90 करोड़ रुपये का भुगतान बजट के अभाव में अटका है। पिछले वित्तीय वर्ष में, केंद्र ने आवंटन को 61,500 करोड़ रुपये के प्रारंभिक आवंटन से संशोधित कर 1.11 लाख करोड़ रुपये कर दिया था। 

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