दोस्तों प्रथम भाग में हमने इस अधिनियम की पृष्ठभूमि और इस अधिनियम के अंतर्गत दिए गए कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाओं पर चर्चा की थी, अब हम इस भाग में धारा ३ और उसके पश्चात की धाराओं के अंतर्गत दिए गए विभिन्न प्रावधानों पर विचार विमर्श करेंगे।
धारा 3- अधिनियम, 2013 की चार्जिग धारा है और यह प्रावधान करती है कि;
लैंगिक उत्पीडन का निवारण:-
(1) किसी भी महिला का किसी भी कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न नहीं किया जाएगा। (2) अन्य परिस्थितियों में निम्नलिखित परिस्थितिया यदि वे लेंगिक उत्पीड़न के किसी कार्य या आचरण के संबंध में होती हैं या विद्दमान है या उससे सम्बंधित है लेंगिक उत्पीड़न कि श्रेणी में आ सकेंगी:-
(i) उसके नियोजन में अधिमानी व्यवहार का विवक्षित या सुस्पष्ट वचन देना। (ii) उसके नियोजन में अहितकर व्यवहार कि विवक्षित या सुस्पष्ट धमकी देना। (iii) उसके वर्तमान या भावी नियोजन कि प्रास्थिति के बारे में विवक्षित या सुस्पष्ट धमकी देना। (iv) उसके कार्य में हस्तक्षेप करना या उसके लिए अभित्रासमय या सन्तापकारी या प्रतिकूल कार्य वातावरण तैयार करना; या (v) उसके स्वास्थ्य या सुरक्षा को प्रभावित करने की संभावना वाला अपमानजनक व्यवहार करना।
धारा 4. आंतरिक पिरवाद समिति का गठन।
(1) किसी कार्यस्थल का प्रत्येक नियोजक, लिखित आदेश के द्वारा एक “आंतरिक परिवाद समिति” नामक समिति का गठन करेगा। “परंतु जहां कार्यस्थल के कायार्लय या प्रशासनिक यूनिटें भिन्न भिन्न स्थानों या खंड या उपखंड स्तर पर अविस्थत हैं, वंहा आंतिरक समिति सभी प्रशासनिक यूनिट या कायार्लय में गठित की जाएगी।
धारा 9- प्रावधान करता है कि कोई भी पीड़ित महिला लिखित रूप में यौन संबंध की शिकायत कर सकती है। लेंगिक उत्पीड़न का परिवाद:-
(1) कोई व्यथित महिला, कार्यस्थल पर लेंगिक उत्पीड़न का परिवाद, घटना की तारीख से तीन मास की अविध के भीतर और श्रृंखलाबद्ध घटनाओ की दशा में अंतिम घटना की तारीख से तीन मास की अविध के भीतर, लिखित मेंआंतिरक परिवाद समिति को, यदि इस प्रकार गठित की गई है या यदि इस प्रकार गठित नहीं की गई है तो स्थानीय समिति को कर सकेगी: परंतु जहां ऐसा परिवाद, लिखित में नहीं किया जा सकता है वंहा यथास्थिति, आंतिरक समिति का पीठासीन अिधकारी या कोई सदस्य, या स्थानीय समिति का अध्यक्ष या कोई सदस्य, महिला को लिखित में परिवाद करने के लिए सभी युक्तियुक्त सहायता प्रदान करेगा : परंतु यह और कि, यथास्थिति, आंतिरक समिति या स्थानीय समिति, लेखबद्ध किए जाने वाले कारण से तीन मास से अनिधक की समय-सीमा को विस्तारित कर सकेगी, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि परिस्थितियां ऐसी थी जिसने महिला को उक्त अविध के भीतर परिवाद फाइल करने से निवारित किया था।
(2) जहां व्यथित महिला, अपनी शारीिरक या मानिसक असमर्थता या मृत्यु के कारण या अन्यथा परिवाद करने में असमर्थ है वहां उसका विधिक वारिस या ऐसा अन्य व्यिक्त जो विहित किया जाए, इस धारा के अधीन परिवाद कर सकेगा।
धारा10. सुलह–– (1) यथास्थिति, आंतिरक समिति या स्थानीय समिति, धारा 11 के अधीन जांच आरंभ करने से पूर्व और व्यथित महिला के अनुरोध पर, सुलह के माध्यम से उसके और प्रतिवादी के बीच मामले को निपटाने के उपाय कर सकेगी: परंतु कोई धनीय समझौता, सलह के आधार के रूप में नहीं किया जाएगा।
(2) जहां उपधारा (1) के अधीन कोई समझौता हो गया है, वहां, यथास्थिति, आंतिरक समिति या स्थानीय समिति, इस प्रकार किए गए समझौते को अभिलिखित् करेगी और उसको नियोजक या ज़िला अिधकारी को ऐसी कार्यवाई, जो सिफारिश में विनीर्दिश्ट की जाए, करने के लिए भेजेगी।
धारा 11- परिवाद कि जांच और आईसीसी या स्थानीय समितियों की शक्तियां के बारे मे प्रावधान करता है;
उपधारा(3):- उपधारा (1) के अधीन जांच करने के प्रयोजन के लिए यथास्थिति, आंतिरक समिति या स्थानीय समिति को वही शक्तिया होंगी, जो निम्नलिखित मामलो के संबंध में किसी वाद का विचारण करते समय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5)के अधीन किसी सिविल न्यायालय में निहित है, अर्थात:–
(क) किसी व्यिक्त को समन करना और उसको हाजिर कराना तथा उसकी शपथ पर परीक्षा करना; (ख) किन्ही दस्तावेज के प्रकटिकरण और पेश किए जाने की अपेक्षा करना; (ग) ऐसा कोई अन्य विषय, जो विहित किया जाए।
उपधारा (4):- उपधारा (1) के अधीन जांच, नब्बे दिन की अविध के भीतर पूरी की जाएगी।
धारा 12 – जांच के लंबित रहने के दौरान आईसीसी या स्थानीय समिति द्वारा की जाने वाली कार्रवाई प्रदान करता है।
(i)पीड़ित महिला या प्रतिवादी को किसी अन्य कार्यस्थल पर स्थानांतरित करना; (ii) व्यथित महिला को तीन (3) महीने की अवधि तक की छुट्टी देना; (iii)पीड़ित महिला को ऐसी अन्य राहत प्रदान करें जो निर्धारित की जाए।
(2) इस धारा के अधीन व्यथित महिला को अनुदत्त छुट्टी ऐसी छुट्टी के अतिरिक्त होगी, जिसके लिए वह अन्यथा हकदार होगी।
(3) उपधारा (1) के अधीन, यथास्थिति, आंतिरक समिति या स्थानीय समिति की सिफारिश पर, नियोजक, उपधारा (1) के अधीन की गई सिफारिश को कार्यान्वित करेगा और ऐसे कार्यान्वयन की रिपोर्ट, यथास्थिति, आंतिरक समिति या स्थानीय समिति को भेजेगा।
धारा13. जांच रिपोर्ट–– उपधारा(1) इस अिधिनयम के अधीन जांच के पूरा होने पर, यथास्थिति, आंतिरक समिति या स्थानीय समिति अपने निष्कर्ष की एक रिपोर्ट, यथास्थिति नियोजक या ज़िला अधिकारी को जांच के पूरा होने की तारीख से दस दिन की अविध के भीतर उपलब्ध कराएगी और ऐसी रिपोर्ट सम्बन्धित पक्षकार को उपलब्ध कराई जाएगी।
उपधारा(4) नियोजक या ज़िला अिधकारी, उसके द्वारा सिफारिश की प्राप्ति के साठ दिन के भीतर उस पर कार्यवाई करेगा ।
धारा 14. मिथ्या या विद्वेषपूर्ण परिवाद और मिथ्या साक्ष्य के लिए दंड:-
(1) जहां, यथास्थिति, आंतिरक समिति या स्थानीय समिति इस निष्कर्ष पर पहुचती हैं कि प्रातिवादी के विरुद्ध अभिकथन विद्वेषपूर्ण है या व्यथित मिहला या परिवाद करने वाले किसी अन्य व्यिक्त ने परिवाद को मिथ्या जानते हुए किया है या व्यथित महिला या परिवाद करने वाले किसी अन्य व्यक्ति ने कोई कूटरिचत या भ्रामक दस्तावेज पेश किया है तो वह, यथास्थिति, नियोजक या ज़िला अधिकारी को ऐसी महिला या व्यक्ति के विरुद्ध जिसने, यथास्थिति, धारा 9 की उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन परिवाद किया है, उसको लागू सेवा नियम के उपबंध के अनुसार या जहां ऐसे सेवा नियम विद्दमान नहीं है वंहा ऐसी रीती से, जो विहित की जाए, कार्यवाई करने की सिफारिश कर सकेगी: परंतु किसी परिवाद को सिद्ध करने या पर्याप्त सबूत उपलब्ध कराने में केवल असमर्थता, इस धारा के अधीन परिवादी के विरुद्ध कार्यवाई आकर्षित नहीं करेगी : परंतु यह और किसी कार्यवाई की सिफारिश किए जाने से पूर्व, विहित प्रक्रिया के अनुसार कोई जांच करने के पश्चात परिवादी की ओर से विद्वेषपूर्ण आशय सिद्ध किया जाएगा।
(2) जँहा यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि जांच के दौरान किसी साक्षी ने मिथ्या साक्ष्य दिया है या कोई कूटरचित या भ्रामक दस्तावेज दिया है वंहा वह यथास्थिति साक्षी के नियोजक या ज़िला अधिकारी को उक्त साक्षी को लागू सेवा नियम के उपबंध के अनुसार या जहां ऐसे सेवा नियम विद्दमान नहीं है, वंहा ऐसी रीती से, जो विहित की जाए, कार्यवाई करने की सिफारिश कर सकेगी।
धारा १५. मुआवजे का निर्धारण अर्थात प्रतिकर कि अवधारणा:-धारा 13 की उपधारा (3) के खंड (ii) के अधीन व्यथित महिला को संदत्त की जाने वाली राशियों की अवधारण करने के प्रयोजन के लिए, यथास्थिति, आंतिरक समिति या स्थानीय समिति निम्नलिखित को ध्यान में रखेगी,– (क) व्यथित महिला को कारीत हुए मानिसक आघात, पीड़ा, यातना और भावानात्मक कष्ट; (ख) लैंगिक उत्पीड़न की घटना के कारण वृति के अवसर की हानी; (ग) पीड़ित द्वारा शारीरिक या मनिश्चिकत्सीय उपचार के लिए उपगत चिकित्सा व्यय; (घ) प्रत्यर्थी की आय और वित्तीय हैसियत; (ङ) एकमुश्त या किस्तों में ऐसे संदाय की साध्यता।
धारा 16. परिवाद की अंतर्वस्तुओ और जाच कार्यवाहियों के प्रकाशन या सार्वजानिक करने का प्रतिषेध– सूचना का अधिकार अधिनियम2005 (2005 का 22) में किसी बात के होते हुए भी, धारा 9 के अधीन किए गए परिवाद कि अंतर्वस्तुओ, व्यथित महिला, प्रत्यर्थी और साक्षी की पहचान और पते, सुलह और जांच कार्यवाहियों से सम्बन्धित किसी जानकारी, यथास्थिति, आंतिरक समिति या स्थानीय समिति की सिफारिश तथा इस अधिनियम के उपबंध के अधीन नियोजक या ज़िला अधिकारी द्वारा की गई कार्यवाई को, किसी भी रीती से, प्रकाशित, प्रेस और मिडिया को प्रेषित या सावर्जिनक नहीं किया जाएगा: परंतु इस अिधिनयम के अधीन लैंगिक उत्पीड़न की किसी पीड़ित को सुनिश्चित न्याय के संबंध में जानकारी का, व्यथित महिला और साक्षी के नाम, पते या पहचान या उनकी पहचान को प्रकल्पित करने वाली किन्हीं अन्य विशिष्टैयो को प्रकट किएबिना, प्रसार किया जा सकेगा।
धारा १७. परिवाद की अंतर्वस्तुओ और जाच कार्यवाहियों के प्रकाशन या सार्वजानिक करने के लिए शक्ति अर्थात् शिकायत की सामग्री को प्रकाशित करने या ज्ञात करने के लिए दंड –जहां कोई व्यथित महिला जिसको इस अधिनियम के उपबंध के अधीन परिवाद, जांच या किन्ही सिफारिश या की जाने वाली कार्यवाई का संचालन करने या, उस पर कार्यवाही करने का कर्तव्य सौंपा गया है, धारा 16 के उपबंध का उल्लंघन करेगा, वहां वह उक्त व्यक्ति को लागू सेवा नियमके उपबंध के अनुसार या जहां ऐसे सेवा नियम विद्दमान नहीं है, वंहा, ऐसी रीती से, जो विहित की जाए, शास्ती के लिए दायी होगा।
धारा १८. अपील—(1) धारा १३ की उपधारा (२) के तहत या धारा १३ की उपधारा (३) के खंड (i) या खंड (२) के तहत या उपधारा (१) के तहत की गई सिफारिशों से व्यथित कोई भी व्यक्ति या धारा १४ की उप-धारा (२) या धारा १७ के अधीन कि गई शिफारिश या ऐसी सिफारिश के क्रियान्वित किये जाने से व्यथित कोई व्यक्ति उस व्यक्ति को लागू सेवा नियम के उपबंध के अनुसार न्यायालय या अधिकरण को अपील कर सकेगा या जंहा ऐसे सेवा नियम विद्दमान नहीं है वंहा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंध पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना व्यथित व्यक्ति ऐसी रीती से जो विहित कि जाए अपील कर सकेगा।
(२) उपधारा (१)। के अधीन अपील,सिफारिश के ९० दिन कि अवधि के। भीतर कि जाएगी।
धारा २६. अधिनियम के प्रावधानों का पालन न करने के लिए दंड-(1) जहां नियोक्ता विफल रहता है- (ए) धारा ४ की उप-धारा (१) के तहत एक आंतरिक परिवाद समिति का गठन करने में; (बी) धारा १३, १४ और २२ के तहत कार्रवाई करने में; तथा (सी) इसके अन्य प्रावधानों का उल्लंघन करता है या उल्लंघन करने का प्रयास करता है या अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए कोई भी नियम का उल्लंघन करता है, वह जुर्माने से दण्डनीय होगा जो पचास हजार रुपये तक बढ़ाया जा सकता है।
(2) यदि कोई नियोजक इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध में पूर्ववर्ती दोषसिद्धि ठहराये जाने के पश्चात उसी अपराध को करता है और सिद्धदोष ठहराया जाता है तब वह (i) उसी अपराध के लिए उपबन्धित् अधिकतम डंडो के अधीन रहते हुए, पूर्ववत सिद्धदोष ठहराए जाने पर अधिरोपित दंड से दुगुने दंड का दायी होगा पंरतु यिद तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन ऐसे अपराध के लिए, जिसके संबंध मे अभियुक्त का अभियोजन किया जा रहा है, कोई उच्चतर दंड विहित है तो न्यायालय दंड देते समय उसका सम्यक संज्ञान लेगा; (ii) सरकार या स्थानीय प्राधिकारी द्वारा उसके कारबार या क्रियाकलाप को चलाने के लिए अपेक्षित, यथास्थिति, उसकी अनुज्ञप्ति के रद्द किए जाने या रजिस्ट्रीकरण को समाप्त किए जाने या नवीकरण या अनुमोदन न किए जाने या रद्दकरण के लिए दायी होगा।
धारा २७. न्यायालय द्वारा अपराध का संज्ञान:- (1) कोई भी न्यायालय इस अिधिनयम या उसके अधीन बनाए गए किन्हीं नियम के अधीन दडनीय किसी अपराध का सन्ज्ञान, व्यथित महिला या आंतिरक समिति अथवा स्थानीय समिति द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति द्वारा परिवाद किए जाने के सिवाय न करेगा। (2) महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय से अवर कोई न्यायालय इस अिधिनयम के अधीन दंडनीय किसी अपराध का विचारण नहीं करेगा । (3) इस अिधिनयम के अधीन प्रत्येक अपराध असंज्ञेय होगा।
इस प्रकार हम देखते हैं कि ये अधिनियम कार्यस्थल पर महिलाओंं के साथ होने वाले लैंगिक उत्पीड़न से सरंक्षण व् सुरक्षा देने कि दशा में उठाया गया एक उल्लेखनीय कदम है।