Sunday, November 10, 2024
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भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता २०१६ (IBC) क्या है: तृतीय भाग

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Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.

मित्रों इसके प्रथम दो भागों में हमने ये जाना की आखिर “भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता २०१६ (IBC)” को लागू करने की आवश्यकता क्यों पड़ी ,अब इस भाग में हम ये देखेंगे की इसके अंतर्गत प्रक्रिया होती कैसे है।

इस संहिता के अंतर्गत धारा १ से लेकर धारा ३२ तक “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” जिसे अंग्रेजी में “Corporate Insolvency resolution process (CIRP)” कहते हैं, से सम्बंधित प्रावधान दिए गए हैं तथा इसके पश्चात की धाराओं में “परिसमापन” अर्थात लिक्विडेशन (LIQUIDATION) से सम्बंधित प्रावधानों को सूचीबद्ध किया गया है।

साथियों ये संहिता किसी कारपोरेट (कंपनी या एल एल पी) को मारने (अर्थात उसके “परिसमापन” (LIQUIDATION) से पूर्व उसको जिन्दा रहने (अर्थात व्यवसाय करने और ऋण के भुगतान करने) का पूरा अवसर प्रदान करती है, जो “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” (CIRP) के अंतर्गत आती है। आइये हम समझने का प्रयास करते है कि आखिर ये CIRP है क्या और कैसे आरम्भ होकर अंत तक पहुंचता है। इस संहिता के अंतर्गत तीन प्रकार के लोग किसी कॉर्पोरेट (Company या LLP) के विरुद्ध “राष्ट्रिय कंपनी विधि प्राधिकरण (NCLT)” में आवेदन देकर  “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” (CIRP) की शुरुआत कर सकते हैं जो निम्न प्रकार हैं:-

१) वित्तीय लेनदार (Financial Creditor) जैसे बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान, संहिता की धारा ७ के अनुसार;

२) परिचालन लेनदार (Operational Creditor) सेवा प्रदान करने वाले (service provider) या  माल आपूर्तिकर्ता (Goods Supplier) संहिता की धारा ८ और ९ के अनुसार  तथा

३) कंपनी देनदार (Company Debtor) स्वयं कंपनी या LLP, संहिता की धारा १० के  अनुसार।

इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को हम चार भागो में बाँट सकते है और इसे हम एक उदाहरण से समझने का प्रयास करेंगे। मान लीजिये की VIDEOCON एक कंपनी है जिसे SBI ने ऋण दिया है। VIDEOCON  के द्वारा लिए गए ऋण की कोई क़िस्त (जो Rs. १,००,०००/- तक की है) नहीं दी गयी है। अब SBI  को ये लगता है की VIDEOCON  की स्थिति ख़राब हो चुकी है और वो उसके दिए गए ऋण का भुगतान नहीं कर पा रही है तब  SBI, यँहा पर एक  वित्तीय लेनदार (Financial Creditor) होने के नाते, VIDEOCON (जो की कंपनी देनदार /Company Debtor) के विरुद्ध भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता २०१६ (IBC) की धारा ७ के अनुसार “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” (CIRP) व “परिसमापन” (LIQUIDATION) की प्रक्रिया आरम्भ कर सकती है:- (यँहा यह याद रखने वाली बात है की कॉर्पोरेट और LLP भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता २०१६ (IBC) के अंतर्गत कार्यवाही शुरू करने के लिए अर्जी “राष्ट्रिय कंपनी विधिक प्राधिकरण (NCLT) के समक्ष प्रस्तुत करेंगे और इंडिविजुअल और पार्टनरशिप फर्म ये DRT के समक्ष अर्जी प्रस्तुत करेंगे)।

अब यँहा पर VIDEOCON के परिसमापन अर्थात (Liquidation) की प्रक्रिया शुरू करने से पूर्व ये देखा जायेगा की क्या किसी प्रक्रिया को अपनाकर VIDEOCON के व्यवसाय को फिर से नया जीवन प्रदान किया जा सकता है जिससे की वो अपने ऋण को चूका कर अपना व्यवसाय सुचारु रूप से संचालित कर सके अर्थात स्पष्ट शब्दों में यदि कहे तो “VIDEOCON” को मारने से पहले उसे जिन्दा रहने का एक और मौका देने पर विचार किया जायेगा और किस प्रकार होगा आइये देखते हैं।

प्रथम भाग में सम्पादित होने वाली प्रक्रियायें निम्नवत हैं;-

१) सर्वप्रथम SBI  भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता २०१६ (IBC) की  धारा ७ के अनुसार अर्जी (Application) NCLT के समक्ष प्रस्तुत करेगी।

२) अब NCLT इस अर्जी को १४ दिन के अंदर या तो स्वीकार करेगी या अस्वीकार करेगी। यदि अस्वीकार करेगी तो NCLT, SBI को नोटिस जारी करके ७ दिनों के अंदर स्पष्टीकरण मांगेगी उस कारक  के लिए जिसके कारण अर्जी को अस्वीकार कर दिया जायेगा। जिस दिन अर्जी स्वीकार कर ली जाती है उसी दिन से “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” (CIRP) आरम्भ हो जाती है (अब यँहा पर ध्यान देने वाली बात ये है की अर्जी के स्वीकार कर लेने वाले दिन से लेकर १८० दिन के मध्य  “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” (CIRP) को पूर्ण करना होता है, विशेष परस्थितियों में इसे ९० दिन और जोड़ा जा सकता है।)

३) अर्जी स्वीकार करने के बाद ७ दिनों के अंदर  NCLT, VIDEOCON  को तथा उसके सभी लेनदारों (Creditors) को  India Bulls  के विरुद्ध “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” (CIRP) के आरम्भ होने की सुचना देगी। अर्जी स्वीकार करने के बाद १४ दिनों के अंदर  NCLT एक Insolvency Resolution Professional (दिवाला समाधान पेशेवर) अर्थात IRP की नियुक्ति करेगी।

४)IRP  अपनी नियुक्ति होने के पश्चात ३ दिन के अंदर अपनी नियुक्ति की सार्वजानिक घोषणा करेगा (IDDBI की website पर)।

५) IRP अपनी नियुक्ति की घोषणा के पश्चात  VIDEOCON के सभी लेनदारों (CREDITORS)से अपने अपने क्लेम  उसके समक्ष प्रस्तुत करने की अपील करेगा।

६) IRP प्रस्तुत किये गये सभी claims (दावो) कि छान बीन कर (Verify) करेगा।

७) IRP सत्यापित किये गए (claims) दावों के आधार पर  लेनदारों (creditors) की एक समिति की स्थापना करेगा जिसे COC अर्थात Committee of Creditors कहते हैं। अब ये COC ही India Bulls के  निदेशक मंडल (Board ऑफ़ Directors) के स्थान पर  VIDEOCON का कार्यभार सम्हालेगी।

द्रितीय भाग में सम्पादित होने वाली प्रक्रियायें निम्नवत हैं:-

१)अपने गठन होने के ७ दिन के अंदर COC की प्रथम  सम्मलेन (Meeting) होगा, जिसमे ये तय किया जायेगा की आगे की कार्यवाही इसी IRP अर्थात Insolvency Resolution Professional (दिवाला समाधान पेशेवर) के द्वारा ही RP के रूप में पूरी की जाये या इसके स्थान पर किसी अन्य RP  की नियुक्ति की जाये।

(क ) ६६% COC के लोग यदि पहले वाले IRP के द्वारा ही आगे का कार्य करवाने की मंजूरी देते हैं तब पहले वाले IRP के द्वारा ही आगे का कार्य पूरा किया जायेगा।

(ख ) यदि ६६% COC के लोग यदि पहले वाले IRP के स्थान पर नए RP के नियुक्ति की मंजूरी देते हैं तब इस सन्दर्भ में अर्जी NCLT को COC द्वारा दी जाती है। NCLT उसे IBBI को भेजती है और IBBI उसे १० दिनों के अंदर CONFIRM करके नए IRP की नियुक्ति कर देती है (यँहा ध्यान देने वाली बात ये है की पूर्व में नियुक्त किया गया IRP नए RP के कार्यभार सम्हालने तक अपना कार्य करता रहता है।

२) इसके बाद IRP के द्वारा INFORMATION MEMORANDUM  परिसंचरित/वितरित किया जाता है। INFORMATION  MEMORANDUM सूचना ज्ञापन में COMPANY CREDITORS (यँहा VIDEOCON) से समबन्धित समस्त सुसंगत जानकारी होती है।

३) इसके पश्चात जो वित्तीय लेनदार (यँहा SBI है) RESOLUTION PROFESSIONAL (RP) के समक्ष VIDEOCON के व्यवसाय को पुनः जीवित करने हेतु “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” (CIRP) योजना  प्रस्तुत करेगा।

४) इस प्रस्तुत किये गए “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” (CIRP) योजना  को RP, COC अर्थात (COMMITTEE OF CREDITORS) के समक्ष अनुमोदन और स्वीकार्यता के लिए प्रस्तुत करेगा।

तृतीय  भाग में सम्पादित होने वाली प्रक्रियायें  निम्नवत हैं:

१) (क) अब यदि ६६% COC के सदस्य इस “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” (CIRP) योजना को स्वीकार नहीं करते हैं तब यह सम्पूर्ण प्रक्रिया यँही समाप्त हो जाती है और यह मान लिया जाता है की अब VIDEOCON का कुछ नहीं हो सकता अतः इसे खत्म करना ही आवश्यक है और तब NCLT इस प्रक्रिया पर विराम लगाकर VIDEOCON  के परिसमापन (LIQUIDATION) की प्रक्रिया आरंभ कर देती है।

(ख) अब यदि ६६% COC के सदस्य इस “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” (CIRP) योजना को स्वीकार कर लेते हैं तब इसको NCLT के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है।

चतुर्थ भाग में सम्पादित होने वाली प्रक्रियायें  निम्नवत हैं:

१) अब NCLT इस “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” (CIRP) योजना को या तो स्वीकार कर लेगी या फिर अस्वीकार कर देगी।

२) यदि स्वीकार कर लेती है तो यँहा पर “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” (CIRP) शुरू करने की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है और COC अर्थात (COMMITTEE OF CREDITORS) VIDEOCON के BOARD OF DIRECTORS  के स्थान पर कंपनी का कार्यभार सम्हाल लेती और व्यवसाय करने लगती हैं।

३) यदि अस्वीकार कर देती है, तब ये “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” (CIRP) की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है और कंपनी के परिसमापन अर्थात LIQUIDATION की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

इस प्रकार हम देखते है की अर्जी के NCLT के द्वारा स्वीकार कर लेने के दिन से लेकर “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” (CIRP) के प्लान को NCLT के द्वारा स्वीकार्यता प्रदान करने तक की सम्पूर्ण प्रक्रिया को १८० दिनों में समाप्त करना होता है और विशेष परिश्थितियों में इसमें ९० दिन और COC की अर्जी पर NCLT द्वारा दिया जा सकता है अर्थात सम्पूर्ण प्रक्रिया न्यूनतम १८० दिनों में और अधिकतम २७० दिनों में पूर्ण करनी होती है। और यही १८० या २७० दिन की अवधी MORATORIUM कहलाती है, इस अवधी के दौरान उस कंपनी (यँहा VIDEOCON) के ऊपर किसी भी प्रकार की क़ानूनी कार्यवाही यदि चल रही हो तो उसे स्थगित कर दिया जाता है, जैसे उस कंपनी के किसी भी सम्पत्ति पर क़ानूनी रूप से जब्ती नहीं की जा सकती, यदि उस कंपनी ने कोई सम्पत्ति LEASE या LEAVE एंड LICENSE आधार पर लिया है तो उसे बेदखल नहीं किया जा सकता, कोई वित्तीय लेनदार (BANK इत्यादि) अपने पास गिरवी रखी किसी सम्पत्ति का अधिग्रहण नहीं कर सकता इत्यादि।

यँहा हमने भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता २०१६ (IBC) की धारा १ से लेकर धारा ३२ तक की कार्यवाही का सूछ्म अध्ययन कर लिया। दोस्तों हम कंपनी के परिसमापन (LIQUIDATION) की सम्पूर्ण प्रक्रिया को चतुर्थ भाग में विस्तार से जानने व समझने का प्रयास करेंगे।

NAGENDRA PRATAP SINGH (ADVOCATE) [email protected]

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