क्या आपको पता है, जिस समय ठंड अपने चरम पर थी और यूपी सरकार हमेशा की तरह इन दिनों सैफई महोत्सव मना रही थी। ये बर्ष था 2013 और दिनांक 29 दिसंबर थी। सैफई महोत्सव से शायद किसी को कोई परेशानी नहीं, लेकिन जब प्रदेश के बहुत से लोग मुसीबत में हों और मुखिया रंगारंग कार्यक्रम करवा रहे हों तो फिर सवाल उठने लाजिमी हैं।
सैफई के इस महोत्सव में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से लेकर सपा चीफ मुलायम सिंह और यूपी सरकार के तमाम मंत्री मौजूद थे लेकिन किसी को इस बात की कोई फिक्र नहीं है कि दंगा पीड़ितों का राहत शिविरों में क्या हाल है।
विपक्ष ने आरोप लगाया की सैफई महोत्सव में अखिलेश यादव ने जनता के 100 करोड़ रुपये फूंक दिए। वो भी उस वक्त जब मुजफ्फरनगर दंगों के जख्म अभी भरे भी नहीं थे। इस पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गुस्सा मे कह भी दिया की इसमे केवल 10 करोड रूपये खर्च हुए।
इस पर विभिन्न दलों ने क्या प्रतिक्रियाएं दी –
1- जनता लेगी बदला: आम आदमी पार्टी
आम आदमी पार्टी की अवध जोन संयोजक अरुणा सिंह ने कहा कि सरकार गरीब जनता की गाढ़ी कमाई नाच-गाने और सैर-सपाटे में लुटा रही है। प्रदेश की गरीब जनता हाड़ कंपाने वाली सर्दी में जहां तन ढकने और दो जून की रोटी के लिए दाने-दाने को मोहताज है, वहीं मुख्यमंत्री और सपा सरकार सैकड़ों करोड़ रुपये राजशाही शौक पूरा करने में पानी की तरह बहा रही हैं। आने वाले दिनों में अपनी दुर्दशा का बदला जनता लेगी।
2- कांग्रेस ने अखिलेश यादव को बताया हिटलर जैसी प्रवृत्ति का
कांग्रेस ने भी अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री ने कहा कि मुख्यमंत्री ने जिस तरह से मीडिया घरानों और मीडिया कर्मियों को धमकाते हुए अपनी बौखलाहट दिखाई, उससे हिटलर की याद ताजा हो गई। लोकतंत्र के चौथे खंभे पर यह हमला निंदनीय है। सरकार और उसके अफसरों के मनोरंजन के लिए सैफई महोत्सव में अश्लील और फूहड़ नृत्य पर जनता की गाढ़ी कमाई का सैंकड़ों करोड़ रुपये फूंक देना दुर्भाग्यपूर्ण है।
3- भारतीय जनता पार्टी ने मांगा था महोत्सव का हिसाब
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व भाजपा के वरिष्ठ नेता केशरीनाथ त्रिपाठी ने कहा कि सैफई महोत्सव पर यदि तीन सौ करोड़ नहीं खर्च हुए तो सरकार खुद विवरण दे कि कितना खर्च हुआ और उसमें सरकार ने कितना दिया। बड़े-बड़े फिल्म स्टार्स को कितना दिया गया, एक दिन में 16 हैलीकॉप्टर लैंड हुए, इसमें कितना खर्च हुआ। प्रदेश की सड़कें खस्ताहाल हैं, लोग ठंड से मर रहे हैं, माघमेले को रुपयों की दरकार है, बिजली का संकट है। सरकार इसके प्रति संवेदनशील नहीं है।
4- बसपा ने भी कहा सरकार बौखलाई है
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौैर्य ने कहा कि मुख्यमंत्री सैफई महोत्सव के नाच-गाने में मस्त हैं और मंत्री विदेश में सैर-सपाटा कर रहे हैं। जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे पर मौज-मस्ती, मटरगस्ती व सैर-सपाटा कर सरकार जनता को धोखा दे रही है। चूंकि मीडिया ने मौज-मस्ती व सैर-सपाटे की सही तस्वीर जनता के सामने लाने का प्रयास किया इसलिए बौैखलाहट में सरकार के मुखिया मीडियाकर्मियों पर ही भड़ास निकाल रहे हैं, जिसका लोकतांत्रिक व्यवस्था में कोई स्थान नहीं है। मुख्यमंत्री को तो मीडिया का धन्यवाद अदा करना चाहिए था कि कुंभकरणी नींद में सो रही सरकार को उसने जगाने का काम किया है।
5- माकपा ने कहा सरकार ने किया जले पर नमक छिड़कने का काम
माकपा के प्रदेश सचिव डॉ. गिरीश ने कहा कि सरकार की खजाने से सैकड़ों करोड़ रुपये सैफई में अय्याशी पर लुटाने के बाद मुख्यमंत्री को अपनी सफाई पर शर्म आनी चाहिए। जिस उत्तर प्रदेश की आधी आबादी भूखे पेट सोती है। दर्जनों जच्चा-बच्चा इलाज के अभाव मर रहे हैं। आधा उत्तर प्रदेश दंगों में मारे गए परिवारीजनों की याद में शोक-संतप्त है। ऐसे समय में सरकार ने गरीबों के जख्म पर राहत का मरहम लगाने के बजाए फिल्मी दुनिया के स्टारों को नचाकर नमक छिड़कने का काम किया है।
मुजफ्फरनगर काण्ड क्या था और कैसे शुरु हुआ
जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच अगस्त 2013 मे कवाल गाँव में कथित तौर पर एक छेड़खानी के साथ यह मामला शुरू हुआ। पीड़ित मलिक पुरा गांव की लड़की के द्वारा जानसठ पुलिस में कई बार शिकायत की गई लेकिन तत्कालीन सपा सरकार की नाकामी के द्वारा इस मामले में पुलिस द्वारा कोई मदद नहीं की गई। और संघर्ष के दौरान मुस्लिम युवक शाहनवाज भी गलती से मुस्लिमों द्वारा मारा गया। इसके बाद पुलिस कप्तान मंजिल सैनी और डीएम मुजफ्फरनगर सुरेंद्र सिंह जाट ने कुछ मुस्लिम युवकों को कव्वाल से गिरफ्तार कर लिया गया। उसी रात तत्कालीन सपा सरकार के मुजफ्फरनगर जिला प्रभारी आजम खान के दबाव के चलते पुलिस कप्तान मंजिल सैनी और डीएम सुरेंद्र सिंह जाट का मुजफ्फरनगर से तबादला कर दिया गया और सभी मुस्लिम युवकों को थाने से ही छोड़ दिया गया। इस घटना ने जाटों में बेचैनी बढ़ा दी और उनका विश्वास सपा सरकार से खत्म हो गया। एक तरफा कार्रवाई ने दंगे में आग में घी का काम किया। सपा सरकार के सानिध्य में मुस्लिम समाज हिंसक बना रहा और मुजफ्फरनगर के खालापार में जुम्मे की नमाज के बाद जनसभा में भड़काऊ भाषण जाटों के खिलाफ दिए गए और नतीजे भुगतने की धमकी दी गई। इससे जाटों द्वारा भी नगला में महापंचायत बुलाई गई। जिसमें कहा गया “बेटियों के सम्मान में जाट मैदान में”, पंचायत के बाद घरों को लौटते हुए जाटों पर जोली नहर और अनेकों रास्तों पर जैसे पुरबालियान ने मुस्लिम समाज के लोगों ने जानलेवा हमला किया और चार पांच लोगों को जान से मार दिया। उसके बाद स्वाभिमानी जाट समाज क्रोधित हो उठा और पूरा जनपद हिंसा ग्रस्त हो गया पुलिस थानों से भाग गई।
भारतीय इतिहास का पहला दंगा था जो गांवों में भयानक रूप ले चुका था पूरे जनपद के सैकड़ों गांव हिंसा की चपेट में आ गया। मजबूरन सपा सरकार को जनपद में भारतीय सेना बुलानी पड़ी। इसके बाद लाखों की संख्या में मुस्लिम शरणार्थी कैंपों में रहने को विवश हो गए। पूरे जनपद को दंगे ने अपने घेरे में ले लिया था। कुटबा कुटबी फुगाना पुरबालियान जौली अनेकों गांवों में जीवन संघर्ष हुआ। मुस्लिम बाहुल्य गांवों से दलित समाज के लोगों ने पलायन किया जाट बहुल इलाकों से मुस्लिम फरार हो गए। 60 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गवाई और सैकड़ों से ज्यादा लापता हुए। एक पत्रकार भी मारा गया।
उसके बाद मुजफ्फरनगर शहर से 25 किलोमीटर दूर राहत शिविर लगाया गया और बच्चे वहा ठंड मे सिकुड़ते रहे, आग जलाकर अपने आप को गर्म करते रहे और आस लगाये बैठे रहे की सरकार की तरफ से उनको कोई मदद मिलेगी। विपक्ष ने भी अखिलेश यादव सरकार से मदद की गुहार लगाई लेकिन गुहार असफल हुई।