इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है। जो 1000 साल पहले शुरू हुआ वह अभी तक पूरा नहीं हुआ। अफगानिस्तान में स्थानीय आतंकवादी संगठन तालिबान ने राजधानी काबुल पर नियंत्रण कर, लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई अशरफ गनी सरकार का तख्तापलट कर दिया। और अंततः आतंकियों को एक देश मिल गया।
सम्राट अशोक और उसके पहले से ही अफगानिस्तान (उपगणस्थान) या वेदों में जिस भूमि के लिए ‘अवगान’ शब्द का प्रयोग हुआ है, हजारों वर्षों तक हिंदू या आर्य सभ्यता का प्रमुख केंद्र रही है। किंतु जेहाद का प्रारंभ तो जैसे इस देश के लिए दुर्भाग्य का आरंभ था।
जब अरब से इस्लाम का उदय हुआ तो सारी दुनिया में इस्लाम को फैलाने और शरीयत लागू करने के लिए जिहाद शुरू हुआ जो आज भी पूरा नहीं हो सका। इस जिहाद के कारण आसपास के देशों से वहां के मूल निवासियों को या तो पलायन करना पड़ा या फिर इस्लाम अपनाना पड़ा। वर्षों पहले ईरान (पर्शिया) से पारसी लोगों का पलायन हुआ और कई पारसी लोगों ने भारत में शरण ली। पारसी लोग भारतीय संस्कृति में इस तरह घुल मिल गए जैसे दूध में चीनी और आज भारत की विकास यात्रा में उनका बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। आज भी कई लोग अपने नाम के पीछे ईरानी उपनाम लगाते हैं। इस प्रकार पारसी देश ईरान की मूल पहचान हमेशा के लिए समाप्त हो गई। अब वहां इस्लाम का राज है। अपनी पहचान खोने का खामियाजा वहां के मूल निवासी आज भी भुगत रहे हैं।
गजनी और गौरी जैसे लुटेरों ने जिहाद के नाम पर जो लूट की परंपरा शुरू की वह आज भी जारी है। अपनी लूट को धर्म युद्ध का नाम देकर समर्थन प्राप्त किया और अपने अत्याचार पूर्ण कृत्य को सही साबित करने का प्रयास किया।समाज की गलती यह रही कि उसने इन लोगों को धर्म के नाम पर न केवल मान्यता दी बल्कि एक नायक की तरह प्रस्तुत किया और आज भी वही हो रहा है। इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है। परंतु क्या इतिहास से हम भारतवासियों ने कोई शिक्षा ली? लेते भी कैसे? सही इतिहास तो हमारे सामने प्रस्तुत ही नहीं किया गया। हमने तो पढ़ा कि सन् 1498 में ‘वास्को डी गामा’ ने भारत की खोज की। जिस तर्क के आधार पर ‘वास्कोडिगामा’ ने भारत की खोज की उसके अनुसार तो मैंने भी सन 2002 में मुंबई और 2014 में गुवाहाटी की खोज की थी। और इसी आधार पर शायद आपने भी कभी ना कभी किसी ना किसी शहर या देश की खोज की होगी।
खैर यह तो एक व्यंग था मूल बात यह है कि कितने भारतीय जानते होंगे कि अफगानिस्तान का कांधार शहर महाभारत काल का एक जनपद था जिसका मूल नाम गांधार है, और जो प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक परंपरा का प्रमुख केंद्र रहा है। किंतु यही भूमि समृद्ध एवं वैभवशाली भारत पर आक्रमण करने वाले लुटेरों के लिए एक प्रवेशद्वार है। प्राय एक जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं की पुनरावृत्ति जिहाद के नाम पर होती रही और अफगानिस्तान उसमें जलता रहा और आज भी जल रहा है। कितने लोग जानते होंगे कि अफगानिस्तान में एक पर्वत का नाम ‘हिंदूकुश’ पर्वत है। काबुल का वर्णन संस्कृत ग्रंथों में ‘कुभा’ नाम से मिलता है। अफगानिस्तान की ‘हेलमंद’ नदी जिसका नाम संस्कृत शब्द ‘सतुवंत’ का अपभ्रंश है। और अभी तो हमारी स्मृति पटल से वह चित्र धूमिल भी नहीं हुए जब बामियान में बौद्ध संस्कृति के प्रतीक बुद्ध की प्रतिमाओं का रॉकेट लॉन्चरों के माध्यम से निर्दयता पूर्वक विध्वंस किया गया। हजारों साल पहले भी यही हुआ था। और आज भी हो रहा है। इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है।
पर इससे हमें क्या? हम क्यों चिंतित हो रहे हैं? हमारा देश तो अभी सुरक्षित है किंतु हम भूल जाते हैं कि जहां यह सब तालिबानी अत्याचार हो रहा है वह भी हमारा ही देश था। अतः जो वहां हो सकता है वह कालांतर में पाकिस्तान में, भारत में, और मध्य प्रदेश में भी हो सकता है।
तो फिर इसको कैसे रोका जाए? साधारण सा हल है जो हम भारतीयों को आसानी से समझ में नहीं आता और वह है कि इतिहास की गलतियों को दोहराने से बचा जाए। धर्म के नाम पर अनुचित को उचित न ठहराया जाए। भारत में सभी धर्म सुरक्षित हैं लेकिन तब तक जब तक कि हम वो गलतियां नहीं दोहराते जो अफगानिस्तान के मूल निवासियों ने दोहराईं। इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है और गलतियां सुधारने का अवसर दे रहा। अफगानिस्तान के हालात देखकर तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि चाहे हिंदुत्व हो या बौद्ध या सिख या जैन या पारसी या ईसाई या अन्य सभी धर्म भारत में सुरक्षित हैं। लेकिन तभी तक जब तक हिंदू बहुसंख्यक हैं। यदि कोई भारतवासी अपना धर्म छोड़ता है तो देश से भी कट जाता है फिर उसका कोई देश नहीं होता और फिर तालिबान जैसे लोग आकर बताते हैं कि आप का झंडा क्या होगा? आपका नाम क्या होगा? आपको क्या करना है?और क्या नहीं करना? इसलिए मर्जी आपकी फैसला आपका कि आप (भारतवासी) अपने वंशजों को हवाई जहाज के टायर पर लटकते देखना चाहते हैं या हवाई जहाज उड़ाते हुए।
इतिहास तो अपने आप को दोहरा रहा है अब हमारे ऊपर है कि हम गलतियां दोहराएंगे या सुधारेंगे!