एक तरफ जहां वैक्सीन की किल्लत के कारण बहुत से राज्यों को टीकाकरण अभियान को रोकना पड़ रहा है, वहीं कई राज्यों में बड़े पैमानों पर वैक्सीन की बर्बादी हो रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी के आंकड़े के अनुसार, वैक्सीन की बर्बादी में झारखंड और छत्तीसगढ़ सबसे आगे है। आकड़ों के मुताबिक झारखंड की आपूर्ति की गयी कुल वैक्सीन का 37.3 फीसदी बर्बाद हुआ है, तो वहीं छत्तीसगढ़ में आपूर्ति का 30.2 प्रतिशत बर्बाद हुआ है। केवल इन्हीं दो राज्यों में वैक्सीन बर्बाद हुआ है, ऐसा नहीं है। तमिलनाडु, जम्मू –कश्मीर, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में वैक्सीन की बर्बादी हुई है। परंतु इन राज्यों में झारखंड और छत्तीसगढ़ की तुलना में कम है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान के पाली और दूसरे टीके केन्द्रों पर भी वैक्सीन को कूड़ादान में पाया गया है। कूड़ादान में वैक्सीन को फेंकने की वजह स्पष्ट नहीं है, परंतु वैक्सीन का इस तरह से बर्बाद होना दुखद है।
अगर इन राज्यों में वैक्सीन की बर्बादी नहीं हुई होती ,तो अब तक कहीं अधिक लोगों को वैक्सीन लग चुकी होती। इस समय जब पूरी दुनिया में वैक्सीन लेने की होड़ मची है और इसकी अनुपलब्धता के कारण लोग वैक्सीन से वंचित हो रहे हैं, लोग ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के बाबजूद बिना टीका लिए घर को लौट जा रहे हैं। कोरोना की कमी को लेकर लोग परेशान हो रहे हैं, कोरोना लोगों को ग्रास बना रहा है, इस कारण कितने लोगों की जान चली गयी है, ऐसे में वैक्सीन की बर्बाद होना कहीं न कहीं टीकाकरण अभियान योजना की प्रबंधन में कमी को दर्शाता है।
हालांकि अब राज्य सरकारें यह आरोप लगा रहीं है कि राज्य में वैक्सीन नहीं है, तमाम राजनीतिक विपक्षी पार्टियां लगातार मीडिया में आकर यह बात कह रहे हैं कि केंद्र सरकार कौमर्शियल फायदा को ज्यादा तरजीह देते हुए, अपनी देशवासी के स्वास्थ्य की कम चिंता करते हुए हमारे देश का करीब 6.45 करोड़ वैक्सीन विदेशों में भेज दी। हाल ही में दिल्ली में लगे पोस्टर के जरिये यह कहा गया कि हमारे बच्चों की वैक्सीन दूसरे देश में क्यों भेज दी?। वही कांग्रेस नेता राहुल गांधी के ट्विटर हैंडल के द्वारा ‘हमारे बच्चों की वैक्सीन बाहर क्यों भेज दी‘ खूब प्रचारित भी किया गया।
इन सब आरोपों के जवाब में केंद्र सरकार के मंत्रियों एवं पार्टी प्रवक्ताओं के द्वारा विभिन्न मीडिया के प्लेटफॉर्मों के द्वारा यह स्पष्टीकरण दिया जाता रहा किबच्चों की वैक्सीन अभी नहीं बनी है, तो ऐसे में भेजने का सवाल ही राजनैतिक है, साथ ही केंद्र सरकार के द्वारा विदेशों में वैक्सीन निर्यात के सवालों पर उत्तर देते यह कहा गया कि वैक्सीन बनाने और उसके इस्तेमाल के साथ –साथ वैश्विक समुदायों के बीच कुछ नियम और शर्तें होती हैं, उन्ही नियमों एवं शर्तों के तहत देश में बने वैक्सीन भारत को अन्य देशों को भेजना पड़ा। सवाल यह है कि संसाधनों कि कमी होना एक समस्या है, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है, वहीं संसाधनो को सही ढंग से इस्तेमाल करना और उचित जरूरत मंद को उसकी आवश्यकतानुसार उसके पास पहुँचना भी सरकार की प्रबंधन का हिस्सा है।
टीकों की कम आपूर्ति कुछ राज्यों और केंद्र सरकार के बीच आरोप –प्रत्यारोप की वजह भी बनी। यह तो सच है कि वैक्सीन जितना आपूर्ति होनी चाहिए थी, उतनी नहीं मिल रही हैं लेकिन यह भी सच है कि वैक्सीन की बर्बादी भी हुई है, ऐसी स्थिति फिर न बने, इसके लिए राज्यों के आवंटन में टीका लेने की आंकड़ें, आबादी और वैक्सीन लेने की बर्बादी जैसे कारकों पर ध्यान रखा जाय। राज्यों को स्वास्थ्य मंत्रालय की सलाह को पूरा ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि किसी भी योजना का लागू करना केंद्र सरकार के हाथ में है, वहीं उस योजना को सही ढंग से क्रियान्वित करना राज्यों की जिम्मेवारी है। अगर राज्य सरकार किसी ठोस रणनीति के तहत ऐसी योजन बनाए, जिसमें वैक्सीन न बर्बाद हो, क्योंकि जिस तरह के हालात कोरोना के दूसरी लहर में बनी है, उसमें टिकाकरण ही बचाव के रूप में सबसे उपयुक्त है। यह तथ्य है कि टीका के अलावा संक्रमण से बचाव का कोई अन्य ठोस विकल्प दुनिया के पास नहीं है। एक ओर हम महामारी के दूसरी लहर से गुजर रहे हैं, तो दूसरी ओर तीसरी लहर की आशंका भी है। यदि आबादी के बड़े हिस्से का टीकाकरण हो सकेगा, तो हम संक्रमण से बच जाएंगे।
बर्बादी को रोकना बेहद जरूरी है। टीका करण केन्द्रों पर सरकार के द्वारा गठित टीम को निगरानी की जिम्मेदारी देनी चाहिए, जिसे टीके की बर्बादी पर लगाम लग सके। नहीं तो यदि इसी तरह वैक्सीन की बर्बादी चलती रही, तो कोरोना महामारी को हराना मुश्किल हो जाएगा। कोरोना से लड़ाई में राज्य सरकारें और स्थानीय प्रशासन सहित सभी को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और वैक्सीन की बर्बादी को रोकने के लिए ठोस पहल करने होंगे और ऐसी योजना बनानी होगी, जिसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों का टीकाकरण किया जा सके, बिना वैक्सीन को बर्बाद किए।
ज्योति रंजन पाठक –औथर व कौल्मनिस्ट