भारत आज जैसे-जैसे नवीकरणीय व स्थायी ऊर्जा संसाधनों के उपयोग की दिशा में बढ़ रहा है, वैसे-वैसे इसके लिये अपनी भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं के मध्य समन्वय स्थापित करना, एक चुनौतीपूर्ण कार्य बनता जा रहा है जिनमें से गतिज ऊर्जा के सबसे बड़े संसाधन पेट्रोलियम के आयात पर हमारी विदेशी निर्भरता को घटाना, निर्बाध विद्युतआपूर्ति बनाये रखते हुये वर्तमान संचालित ग्रिडों को सौर उर्जा से जोड़ना आदि मुख्य रूप से शामिल है।
भारत आज सौर ऊर्जा के क्षेत्र में बहुत प्रगति कर रहा है एवं इसके अनेक ऊर्जा संवर्धन व सुरक्षा के प्रयासों को संयुक्त राष्ट्र का समर्थन व साथ प्राप्त है। सरकार ऊर्जा की सुगम उपलब्धता एवं राष्ट्रीय स्तर पर कार्बन उत्पादन में कमी को लेकर एक व्यापक अक्षय ऊर्जा कार्यक्रम भी चला रही है तथा मेक इन इंडिया के तहत चिन्हित क्षेत्रों को पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बनाकर, अक्षय ऊर्जा उत्पादक के रूप में विकसित करना चाहती है। परंपरागत स्रोतों एवं कोयला आधारित विद्युत उत्पादन संयंत्रों पर निर्भरता कम करने की दिशा में आज कई उर्जा क्षेत्र के निकाय अपने अपने स्तर पर प्रयासरत है।
प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के जलवायु सम्मेलन में कहा था कि वर्ष 2030 तक भारत 450 मेगावाट बिजली का उत्पादन अक्षय ऊर्जा से करेगा एवं उसी के तहत सन् 2022 तक 175 मेगावाट विद्युत उत्पादन का लक्ष्य अक्षय ऊर्जा से जिसमें 100 मेगावाट विद्युत सौर ऊर्जा से उत्पादित करने का तय किया। हमारे लिए गौरव का विषय यह है कि, इन लक्ष्यों की प्राप्ति के साथ ही भारत विश्व के बड़े अक्षय ऊर्जा उत्पादकों के रूप में खड़ा होगा। भारत की भौगोलिक संरचना सौर ऊर्जा के अनुकूल भी है यहां वर्ष में 260-320 दिनों तक सूर्य अधिकतम क्षेत्रों में अपनी किरणें फैलाता है जिससे यहां सौर ऊर्जा से विद्युत उत्पादन की संभावनायें और बढ जाती है। आज तमाम टेलीकॉम टावरों द्वारा लाखों लीटर डीजल का प्रयोग किया जाता है जिन्हें सौर ऊर्जा के प्रयोग से सीधे-सीधे बचाया जा सकता है।
सरकार आज आयात की ऊंची लागत एवं उपलब्ध सीमित संसाधनों को दृष्टिगत रखते हुए ऊर्जा उत्पादन में नवोन्मेष व शोध पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जिसके परिणाम स्वरूप बेहतर विश्वसनीयता और दक्षतायुक्त अक्षय ऊर्जा संयंत्र आज विभिन्न क्षेत्रों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आकर्षक विकल्प के रूप में सामने आ रहे है। हालांकि अक्षय ऊर्जा क्षेत्र आज भी तकनीक एवं पूंजी निवेश की प्रतिस्पर्धा के मामले में कुछ पीछे है एवं बाजार में आर्थिक व सामाजिक अवरोधों का सामना कर रहा है इसलिये बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु छोटे निवेशकों एवं बाजारों की वित्त व्यवस्था तैयार करना, कम ब्याज पर सौर ऊर्जा की उपलब्धता को सुनिश्चित करते हुए बैंकिंग तंत्र को विकसित करना एवं छोटे स्तर पर दीर्घकालिक निवेश कैसे किया जाये इस पर कार्य चल ही रहा है और सामान्य जन तक पहुंचाने की प्रक्रिया गतिशील है।
हम सभी के संयुक्त व्यापक प्रयास एवं पर्यावरण सुरक्षा के साथ ऊर्जा संरक्षण के कार्य निश्चित ही भारत की प्रगति के मार्ग में सहायक होंगे, बस शर्त यह है कि उसके लिये हमें खण्डात्मक के स्थान पर व्यापक दृष्टिकोण को अपनाना होगा। आने वाले समय में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत अन्य विकासशील देशों के साथ सहयोगी कार्य करके ना सिर्फ विदेशी मुद्रा अर्जित करेगा अपितु विश्व पटल पर अक्षय ऊर्जा संपन्न राष्ट्र के रूप में स्वयं को सफलतापूर्वक स्थापित भी करेगा।
जय हिंद – जय भारत
वैभव वर्मा