Thursday, March 28, 2024
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कोरोना की दूसरी लहर की अधिक भयावहता का असली जिम्मेदार कौन?

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किसी भी बीमारी या संकट के समय हमारा मनोबल ही हमें विजय दिलाता है। यह एक वैज्ञानिक सत्य है। समुद्र पार करने की क्षमता होते हुए भी श्री राम भक्त हनुमानजी मनोबल के अभाव में चुपचाप बैठे रहे तब जामवंत जी ने उनका मनोबल बढ़ाया और हनुमान जी समुद्र लांघने में सक्षम हुए। आज जैसे कुछ लोग यदि श्री राम जी की सेना में होते तो शायद कहते कि जामवंत जी बड़ी-बड़ी बातों से कुछ नहीं होता कुछ करके दिखाओ नहीं तो शांत रहो और यदि जामवंत जी उनकी परवाह करके चुप बैठ जाते तो शायद सफलता न मिलती। इसलिए आपको ऐसे लोगों की परवाह नहीं करनी जो कहते हैं कि दीप जलाने, शंख बजाने, ताली-थाली बजाने या पुष्प वर्षा करने से कुछ नहीं होता। आपको बस ऐसे लोगों की पहचान करनी है ताकि आप उन्हें नजरअंदाज कर सकें।

अंग्रेजी दवाइयों में जानवरों की चर्बी तक खा जाने वाले लोग भी कहते मिलेंगे कि गौमूत्र से कुछ नहीं होता। आप बस पहचान करते जाइए और अपने राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगे रहिए। मस्तिष्क में ऐसी अनेक शक्तियां विद्यमान है जिनकी परतें आज तक इंसान या विज्ञान नहीं खोल सका है। सकारात्मक विचार और आत्म शक्ति के बल पर हमारा शरीर किसी भी प्रकार की एंटीबॉडीज का निर्माण कर किसी भी बीमारी से लड़ सकता है। वैसे भी दवाइयां केवल सहायक होती हैं वास्तव में तो हमारा शरीर ही मस्तिष्क के बल पर बीमारियों को परास्त करता है। इसलिए मस्तिष्क का स्वस्थ होना अति आवश्यक है। तथा मस्तिष्क की खुराक है सकारात्मक विचार एवं अच्छी नींद।

उपर्युक्त भूमिका के आधार पर पिछले 1 वर्ष का चित्र प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूं कृपया पूरा पढ़ कर चिंतन करें। याद कीजिए कोरोना की पहली लहर का समय, हर भारतवासी सकारात्मक विचारों से भरा हुआ था माननीय प्रधानमंत्री बार-बार देश को संबोधित करके लोगों का मनोबल बढ़ा रहे थे। सारा देश एक साथ खड़ा होकर आगामी संकट के लिए अपने आपको तैयार कर रहा था। प्रधानमंत्री के आह्वान पर घर-घर में उत्साह के दीप जलाए जा रहे थे, कोरोना से लड़ने वाले कोरोना योद्धाओं का ताली और थाली बजाकर उत्साह वर्धन किया जा रहा था। शंख बजाकर अदृश्य शत्रु से युद्ध का बिगुल फूंक दिया जाता है। कोरोना योद्धाओं के योगदान को सम्मान देने के लिए उन पर फूलों की वर्षा की जा रही थी। सारा विश्व देख रहा था कि भारत एकजुट होकर संकट का सामना करने के लिए तैयार है। इन छोटे-छोटे प्रयासों, उपलब्ध संसाधनों तथा कोरोना योद्धाओं के अथक परिश्रम और उच्च मनोबल से देश कोरोना की पहली लहर का सामना मजबूती से कर रहा था।

इसी बीच एक और अच्छी खबर आई की वैक्सीन आने वाली है। वो भी भारत के द्वारा विकसित की गई स्वदेशी वैक्सीन। सारे विश्व में भारत का गौरव बढ़ा। कोरोना योद्धाओं और वरिष्ठ नागरिकों का टीकाकरण जोर शोर से प्रारंभ हो गया था और सफलतापूर्वक चल रहा था। साथ ही वसुधैव कुटुंबकम और विश्व कल्याण की भावना को चरितार्थ करते हुए हमने आवश्यकता वाले देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराई। यहां तक कि पाकिस्तान भी वैक्सीन के लिए भारत की ओर टकटकी लगाए देख रहा था। पृथ्वीराज चौहान युद्ध जीत रहा था किंतु जयचंदो की अंतड़ियों में कीड़े कुलबुला रहे थे। वे करवटें बदल रहे थे किंतु नींद नहीं आ रही थी दूसरी ओर देश चैन की सांस ले रहा था। यह सब गद्दारों से सहन नहीं हुआ और फिर अचानक देश और धर्म विरोधी फिर से खड़े होते हैं।

सबसे पहले मजदूरों को डराया और भड़काया जाता है हड़बड़ाहट में पलायन होता है। उनके साहस को संबल ना देकर दीन हीनता की तस्वीरें प्रसारित कर उनका मनोबल तोड़ा जाता है। अगला प्रहार वैक्सीन पर होता है। कोई इसे बीजेपी की वैक्सीन कह रहा था तो कोई जल्दबाजी में उठाया गया कदम यहां तक कि लॉकडाउन को भी जल्दबाजी बता कर गुमराह किया गया। अब चक्रव्यूह शुरू होता है और बारी आती है हमारे सांस्कृतिक मान बिंदुओं पर हमला करने की। दीप जला कर प्रकाश फैलाने का उपहास उड़ाया जाता है। यहां यह पंक्तियां याद आती है-
“माना अंधेरा घना है। किंतु दीपक जलाना कहां मना है।”

इतना ही नहीं राम मंदिर, शंख-झालर और गौ माता का उपहास करके हमारे धर्म और संस्कृति पर प्रहार किया जाता है जो अभी भी जारी है। आम भारतीय समाज इस षड्यंत्र को नहीं समझ पाता है और उसका मनोबल टूटने लगता है। हमें लगने लगता है कि वास्तव में इन सब से कुछ नहीं होता। झूठ को इतनी जोर से प्रसारित किया जाता है कि हमें हमारे सत्य पर शंका होने लगती है। जबकि मनोबल ही हमें जीत दिला सकता है।

अगले चरण में कोरोना योद्धाओं को निशाना बनाया जाता है। शाम के समय ताली और थाली हमारे स्वास्थ्य कर्मियों के सम्मान में बजाई गई थी किंतु उसका मजाक बना कर कोरोना योद्धाओं का अपमान किया जाता है। उन पर फूल बरसाने को नौटंकी बता कर असुरों सा ठहाका लगाया जाता है। उनका मनोबल भी टूटने लगता है और तभी कोरोनावायरस की दूसरी लहर अपने पैर पसारती है। इस सब से षड्यंत्रकारी उत्साहित हो जाते हैं। चारों ओर भय का वातावरण निर्मित किया जाता है। देश के प्रधानमंत्री के पिछले प्रयासों का इतना मजाक बनाया जाता है कि इस बार वे भी राज्यों को इसका सामना करने का अवसर देते हैं।अंततः जिस भारतीय समाज में कोरोना से लड़ने के लिए अभूतपूर्व उत्साह था वो अब कुछ कम होने लगता है। मौसम परिवर्तन होने पर फैलने वाला साधारण बुखार भी हावी होने लगता है। मनोबल गिरने से तबीयत ज्यादा बिगड़ने लगती है।

इसी समय सत्ता के लोभी अगली चाल चलते हैं। आवश्यक दवाओं और ऑक्सीजन की कमी का हल्ला खड़ा किया जाता है। लोग भी अवसर पाकर इनकी कालाबाजारी करने लगते हैं। चारों और भय का वातावरण निर्मित होता है। लोगों की तबीयत ज्यादा बिगड़ने लगती है और संसाधन वास्तव में कम पड़ने लगते हैं। जो लोग कोरोना की पहली लहर में सकारात्मक वातावरण के बलबूते ठीक हो रहे थे अब विरोधियों द्वारा बनाए गए भय के वातावरण से घबराकर उनकी जान जाने लगती है। किंतु इसी समय कुछ लोग फालतू की बहस में ना उलझते हुए सेवा कार्य में लग जाते हैं। R.S.S. और सेवा भारती व्यापक स्तर पर सेवा कार्य प्रारंभ करते हैं।

सरकार संसाधन जुटाने में लग जाती है। सारे विश्व से भी सहायता आने लगती है और हालात सामान्य होने लगते हैं। अब शत्रु को फिर बेचैनी होती है और अगला प्रहार फिर वैक्सीन पर होता है। स्वयं वैक्सीन लगवा कर लोगों को वैक्सीन लगवाने के लिए प्रेरित ना करके डराने का काम करते हैं। वैक्सीन की कमी का रोना शुरू होता है। इसी बीच हमारी धार्मिक मान्यताओं (शंख, झालर, दीपक जलाना, गौ माता, राम मंदिर) आदि पर प्रहार जारी रहता है जो अभी भी हो रहा है। लेकिन देश जीत रहा था। इस संकट से तो हम उबर ही जाएंगे। किंतु इस अवसर पर देश और धर्म विरोधियों की पहचान कीजिए। ये अपने अंत के करीब हैं और बेचैनी की पराकाष्ठा पर हैं। लाशों को देखकर कुटिल मुस्कान इनकी पहचान है। यह देश तो हर संकट से जीत ही जाएगा। हो सकता है अभिमन्यु को अपना बलिदान करना पड़े। किंतु अर्जुन का मनोबल बनाए रखना आवश्यक है।
और अंत में…

“भारत मां का मान बढ़ाने, बढ़ते बांके मस्ताने।
कदम कदम पर मिल-जुल गाते, वीरों के व्रत के गाने।
जरासंध छल बल दिखला ले, अंतिम विजय हमारी है।
भीम पराक्रम प्रकटित होगा, योगेश्वर गिरधारी है।
अर्जुन का रथ हांक रहा जो, हम सब उसके दीवाने।
कदम कदम पर मिल-जुल गाते, वीरों के व्रत के गाने।”

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