सुनने में भले अजीब सा लगे मगर कभी कांग्रेस नेत्रियों को समाचार के वाद- विवाद में सुने या फिर इनके लिखे हुए ट्वीट पढ़ें तो यकीन हो जाएगा की सत्य ही है। वैसे छोरियाँ शब्द का इस्तेमाल खुद कांग्रेस नेत्री अलका लाम्बा ने अपने और अपने कांग्रेसी सहभागिनों के लिए किया है। देखा जाये तो यह शोभा तो नहीं देता क्यूंकि न ही अलका लाम्बा और ना ही सुप्रिया श्रीनेत अब छोरियाँ रही है बल्कि दोनों ही अब प्रौढ़ अवस्था की ओर अग्रसित हैं। कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत अपनी पार्टी की गाली गलौज की राजनीती में नयी पीढ़ी की हैं। टीवी के कई वाद- विवाद के कार्यक्रमों में इन्हें आपा खोते हुए देखा गया है। कांग्रेस के प्रवक्ताओं की गाली देने और अपने प्रतिद्वंदियों को अपमानित करने की पुरानी परम्परा रही हैं और अब इसमें सुप्रिया श्रीनेत भी बढ़ चढ़ कर अपने मालिक को खुश करने में लगी हैं।
एक तो प्रवक्ताओं की इस लम्बी फेहरिश्त और उसमे अपने मालिक के नज़रों में आना आख़िरकार यह संभव कैसे हो? ऊपर से पुरानी गाली गलौज करने की कांग्रेसी परम्परा जो की हाल के वर्षों में और भी फूली-फली है उसका निर्वहन करने की ज़िम्मेदारी। तब अपने पार्टी के जाने माने गाली गलौज करने वाले अनगिनत प्रवक्ताओं की तरह इन्होनें भी ठान लिया की यही सही तरीका हैं। आखिर पार्टी के मालिक ने कभी इस तरह के व्यवहार के लिए किसी को रोका टोका तो कभी हैं नहीं वरन हमेशा ही पुरुष्कृत किया हैं। अब मालिक के भी अपने संस्कार हैं। दादा से कभी मिलना हुआ नहीं, इतिहास की ओर देखें तो पता चलता है की दादी इनकी इस मामले में थोड़ी कमज़ोर ही रहीं, पिता ने ज्यादा वक़्त विलायत में बिताया जहाँ लोगों को छोटी-छोटी चार वर्णों वाली गाली देने की आदत है, माता तो खैर विदेशी ही हैं तो समझने वाली बात यह है की देशी संस्कार आये तो आये कहाँ से। बस आज़ादी के कुछ सालों के बाद से ही इसी कांग्रेसी परम्परा का इनके प्रवक्ता लोग पालन कर रहे हैं।
देश का दुर्भाग्य यह भी है की एक पुरुष को सरेआम गाली देने के बावजूद इनकी हंसी-ठीठोली जारी है। बिलकुल निडर जैसे किसी पुरुष की कोई इज़्ज़त ही ना हो। अलका लाम्बा देश के प्रधान मंत्री को नपुंसक शब्द से सम्बोधित कर चुकी हैं। सही भी है इनकी निडरता, एक तो अपने मालिक का साथ और ऊपर से कानून का। पुरुष को समाज अक्सर कहा करता है की घर में माँ बहन नहीं है क्या जो ऐसी भाषा का प्रयोग करते हो मगर यह सोच कर ही शऱीर में सिरहन हो जाती है की ऐसी प्रवक्ता और नेत्री जो भरे समाज में पूरी दुनिया के सामने पुरषों के बारे में ऐसे विचार रखने और प्रकट करने की क्षमता रखती हों उनके पति, भाई, और पिता का घर में क्या हाल होता होगा, उन लोगों का तो भगवान् ही मालिक है।