Friday, April 26, 2024
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बेलगाम इंटरनेट मीडिया पर नकेल कितनी जरूरी?

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तकनीक के क्षेत्र में मानव ने बुलंदियां क्या हासिल कर ली, मानो अब इसके आगे दुनियां वीरान हैं। पर ऐसा कतई नही हैं। हर चीज के दो पहलू होते हैं। हमे किसी भी शोध के दोनों पहलुओं पर समान रूप से चिंतन करना चाहिये कि इसमें इसमें लाभ भी हैं और हानि भी। बात मीडिया क्षेत्र की करें तो प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बाद सोशल मीडिया ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया हैं। इसके उपयोग ने मानव के दैनिक दिनचर्या का अटूट हिस्सा बना लिया हैं अर्थात इसका उपयोग आदत/नशा बन गई हैं। प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से भी पहले इस स्त्रोत द्वारा खबरें पहुँच जाती हैं। अब यह अलग बात हैं कि वो कितनी सही हैं या गलत।

इंटरनेट मीडिया का उपयोग एक ज़माने में सीमित उपयोग होता था। लेकिन टेलीकॉम कम्पनियों की प्रतिस्पर्धा, लोक-लुभावने ऑफरों एवं फ्री डाटा के चक्कर में इसका उपयोग बहुतायात में होने लगा हैं। विश्व के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो भारत उन चुनिंदा देशों की सूची में शिखर पर हैं जहाँ सबसे कम दर पर इंटरनेट डाटा की सुविधा मिलती हैं।

प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की विश्वसनीयता अब भी कायम हैं। वहीं इंटरनेट मीडिया विश्वसनीयता के पैमानें पर खरा नही उतरता। शायद यही कारण हैं कि समय-समय पर इन प्लेटफॉर्म पर उपभोक्ताओं की निजी जानकारी एवं देश की सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण गोपनीय जानकारियों को विदेशी सर्वर पर साझा करने, फेक खबरें शेयर करने, प्रामाणिक स्रोतों के अभाव, हिंसा एवं अफवाह फैलाने जैसे संगीन आरोप लगते रहे हैं। गत वर्ष मई 2020 से अक्टूबर तक केंद्र सरकार ने देश में लोकप्रियता हासिल कर चुके टिकटोक, पबजी सहित 267 चीनी ऐप्स प्रतिबंधित कर दिये। इसे चीन पर सायबर स्ट्राइक भी करार दिया गया।

हाल ही में एक टूलकिट से जुड़ा मामला सुर्ख़ियों में आया। देश के दो सबसे बड़े राजनितिक दल इस मसले को लेकर आमने-सामने हैं। सोशल मीडिया के प्रभावी प्लेटफॉर्म ट्वीटर द्वारा बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा के द्वारा किये गये ट्वीट को मैनिपुलेटेड मीडिया करार देने के बाद यह मामला अदालत तक जा पहुँचा। हरकत में आई केंद्र सरकार ने ट्विटर से भी जवाब तलब कर दिया। कांग्रेस इसे सच्चाई बता रही हैं। वहीं बीजेपी इसे देश और पीएम की छवि धूमिल करने की दृष्टि से देख रही हैं। ट्विटर द्वारा मेनिपुलेटेड करार देने के बाद ट्विटर को इसके सबूत देने के लिये कहा गया, वही इस कार्यवाही को पक्षपातपूर्ण बताया गया। मैनिपुलेटेड मीडिया से आशय ऐसे स्क्रीनशॉट, फोटो या वीडियो जिसके जरिये किये जा रहे दावों की विश्वसनीयता को लेकर कोई संदेह हो या इसके मूलरूप में कोई छेड़छाड़ की गई हो।

बीतें सोमवार को अचानक एक खबर वायरल हो गई कि कल से ट्वीटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सअप आदि पर प्रतिबंध लग जायेगा। इस खबर के यकायक वायरल होने के बाद कई लोगों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी तो कइयों ने ख़ुशी जाहिर की। ख़ुशी जाहिर करने वालों के मुताबिक अब वे पहले से ज्यादा समय अपने परिवार को दे पायेंगे। वहीं तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करने वालों ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी को सीमित करने, सरकार की नाकामियों पर पर्दा डालने को लेकर जोड़ा। मसला चाहे किसान आंदोलन, गंगा में शव प्रवाहित, कोरोना प्रबन्धन, चुनाव या टूलकिट से जुड़ा हो, गाहे-बगाहे फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम आदि पर पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं। यह केवल इंटरनेट मीडिया तक ही सीमित नही हैं। पक्षपात के आरोपों से प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी अछूता नही रहा हैं। लेकिन सच इससे कहीं जुदा हैं, दरअसल इंटरनेट मीडिया पर प्रतिबंध की वायरल खबर केन्द्र सरकार द्वारा अचानक से लिया गया फैसला नही हैं। केन्द्र सरकार ने 25 फरवरी 2021 को इंटरनेट मीडिया प्लेटफॉर्म से जुड़ी कम्पनियों के लिये कुछ आवश्यक दिशा निर्देश जारी किये थे, जिनकी 3 माह में पालना करनी थी। लेकिन ये निर्देश इन कम्पनियों को इतने नागवार गुजरे कि पालना तो दूर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया भी नही दी। निर्धारित समयावधि खत्म होने के बाद अब ये कम्पनियां इस मसले को लेकर सरकार से और वक्त देने की मांग कर रही हैं।

केन्द्रीय सूचना तकनीक व इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय ने इन विदेशी इंटरनेट कम्पनियों से भारत में ही अपना नियंत्रण सेंटर स्थापित करने को बोला था जिसके तहत इन्हें भारत में नोडल ऑफिसर, ग्रीवांस ऑफिसर नियुक्त करना था। फैक्ट चेकर एवं आपत्तिजनक पोस्ट हटाने के लेकर कार्य किया जाना था। लेकिन भारतीय कम्पनी कू को छोड़कर बाकि किसीने भी इसमें रूचि नही दिखाई।

यह वक्त की माँग हैं कि बेलगाम इंटरनेट मीडिया पर लगाम जरूरी हैं। भारत जैसे विशाल उपभोक्ताओं वाले नेटवर्क से भारी भरकम मुनाफा कमाने वाली इन दिग्गज विदेशी कम्पनियों की जवाबदेही तय की जानी चाहिये। इन प्लेटफॉर्म पर देश के करोड़ो लोग जुड़े हुए हैं। लिहाजा सरकार और इंटरनेट मीडिया कम्पनियों को देशहित में सकारात्मक रुख अपनाते हुए आम आदमी के अभिव्यक्ति की आजादी को प्रभावित न करते हुए स्थायी समझौता जल्द किया जाना उचित रहेगा। यदि यह विवाद लम्बा खिंचता हैं तो इसके दूरगामी व्यापक परिणाम नजर आयेंगे।

लेखक
कैलाश गर्ग रातड़ी
स्वतंत्र टिप्पणीकार

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