Tuesday, November 5, 2024
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मादक पदार्थों का दुरुपयोग सामाजिक गंभीर समस्या

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मादक द्रव्यों के दुरुपयोग को पथभ्रष्ट व्यवहारों के साथ हीं सामाजिक समस्या के रूप में भी देखा जा सकता है। अनेक पश्चिमी देशों में मादक पदार्थों के दुरुपयोग को काफी समय से एक महत्वपूर्ण सामाजिक समस्या के रूप में स्वीकार किया जा रहा है लेकिन भारत में पिछले तीन दशकों से नशीली द्रव्यों का सेवन बड़ा ही सामाजिक खतरा बनता जा रहा है। अवैध मादक द्रव्यों का उपयोग आज सड़क पर घूमने वाले आवारा छोकरों तथा निचले वर्गों तक ही सीमित नहीं रह गया है, बल्कि मध्य एवं उच्च–वर्ग के अधिकाधिक युवा भी मादक पदार्थों का उपयोग खूब कर रहे हैं, जिससे सामाजिक स्तर पर दुखद  परिणाम देखने को मिल रहे हैं।

इस तरह के पदार्थों के सेवन से शरीर और मन पर बहुत ही बुरा प्रभाव होता है। मेडिकल साइंस के अनुसार जैसे ही कोई व्यक्ति नशीली पदार्थों का सेवन करता है शरीर के तंत्रिका–तंत्र की गति तेज हो जाती है। और नयी ऊर्जा का आभास उत्पन्न होने लगता है। व्यक्ति जागृत अनुभव करने में सक्षम होता है। यह उत्तेजक पदार्थ अवसादों के विपरीत प्रभाव देता है। जब उत्तेजकों का असर दूर होता है तो उपयोगकर्ता को बीमार तथा शरीर में शक्ति क्षीण होने जैसा महसूस होता है। इस तरह के पदार्थों के निरंतर सेवन से उपयोग कर्ता पर अत्यंत नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगता है। फिर इसकी आदत बनती जाती है। इन मादक पदार्थों को सूंघा या फूंका जाता है। तथा उपयोगकर्ता को यह तुरंत असर दिखने लगता है, जिससे परिणाम स्वरूप मानसिक क्षति का होना भी हो सकता है। जब इसे सूंघते हैं तो शरीर ऑक्सीज़न से वंचित हो जाता है जिसके कारण हृदयगति तेज हो जाती है।

मादक द्रव्यों का इस्तेमाल युवा पीढ़ी आसानी से करने लगती है, जो कुछ बड़े शहरों के उच्च–आय वर्ग की एक छोटी आबादी के युवाओं के बीच कभी–कभार उपयोग के रूप में शुरू किया था। लेकिन आज समाज के हर वर्ग में घुसपैठ कर चुका है। भारत में निर्मित औषधियाँ, हेरोइन एवं एल्कोहल आदि सर्वधिक दुरुपयोग किए जाने वाले मादक पदार्थों में से है। लगभग 500 अरब डौलर के आसपास के व्यापार के साथ यह विश्व का तीसरा बड़ा व्यवसाय है। भारत में सांस्कृतिक मूल्यों में परिवर्तन देखने को मिल रहा है। एक ओर गरीब वर्ग आर्थिक कमी से पीड़ित है वहीं दूसरी ओर इस तरह के नशीली दवाओं का सेवन उच्च वर्ग में तेजी से परिवर्तित हो रही है। विगत कुछ दशकों से भारत में शहरीकरण में वृद्धि के कारण उनकी पारंपरिक संस्कृति एवं जीवन शैली के धीरे–धीरे कमजोर पड़ने के कारण यह स्थिति बन रही है। किसी भी व्यक्ति को अपने विचारों को शांत करने तथा जीवन की परेशानियों से निबटने के लिए मादक पदार्थों का सहारा लिया जा रहा है।

नशीली पदार्थों का दुरुपयोग मानवता के प्रति एक बढ़ता हुआ खतरा बन चुका है। उपयोगकर्ता अपने अवसादों, कुंठा तथा क्रोध के लिए त्वरित उपचार प्राप्त कने के उद्देश्य से इन मादक पदार्थों का सेवन करते हैं। और शारीरिक, आर्थिक, भावनात्मक के साथ-साथ सामाजिक रूप से भी पीड़ित हो जाते हैं। सन 1991 से हर वर्ष 26 जून को मादक पदार्थ तथा अवैध तस्करी के अंतराष्ट्रीय विरोध दिवस के रूप में मनाया जाता है। ताकि मादक पढ़ार्थों के उपयोगकर्ता के साथ-साथ उन सभी लोगों के बीच जागरूकता उत्पन्न किया जाय जो मादक पदार्थों के विरुद्ध संघर्ष करने में सहयोग देते हैं।

मादक पदार्थों का सेवन के रोकथाम, उपचार इन सभी के लिए एक सकारात्मक एवं जीवन –समर्थक अभियान की आवश्यकता है। परिवार के साथ –साथ स्वयंसेवी संगठन भी व्यसन मुक्ति के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। माता –पिता बच्चों के साथ खुलकर बात –चित करें, उनकी समस्या गंभीरता से सुनें और उन्हे यह बताने की कोशिश करें कि जीवन में समस्याओं से कैसे निपटा जा सकता है और स्वयं मादक पदार्थों का सेवन न कर बच्चों के सामने उदाहरण प्रस्तुत करें । चूंकि व्यसन रातों –रात नहीं पनपता है ऑर इसमें गतिविधियों तथा शौक़ों में रुचि का घटना, गैर जिम्मेदाराना व्यवहार अपनाना, आवेगपूर्ण आचरण आदि लक्षण उत्पन्न होने की प्रक्रिया शामिल है। अतः माता –पिता चौकन्ने रहते हुए इन प्राथमिक संकेतों को पहचान कर तथा सुनिश्चित कर अपने बच्चे को इस आदत से दूर रख सकते हैं।

ज्योति रंजन पाठक -औथर –‘चंचला ‘ (उपन्यास )

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