बाजीराव पेशवा- एक अजेय हिन्दू योध्दा जिसने सम्पूर्ण भारत को मुगलों के शासन से मुक्त करा दिया था। आज हम बात करेंगे बाजीराव पेशवा की, जिन्होनें अपने जीवनकाल में लड़े गये सभी युद्धों में जीत हासिल की और लगभग, सम्पूर्ण भारत में कब्जा किये हुए मुगलों को खदेड़कर महाराज शिवाजी के हिन्दवी स्वराज का सपना पूरा किया। आज हमारे देश के बच्चे को अकबर जैसे आततायियों एवं क्रूर आक्रांताओँ को महान न बताकर, ऐसे ही महानायक के बारे में अबगत कराने की अवश्यकता है।
बाजीराव पेशवा का जन्म 18 अगस्त सन 1700 ईस्वी में मराठा परिवार में हुआ था ।इनके पिता बालाजी विश्वनाथ तथा माता राधाबाई थी।बाजीराव पेशवा बहुत ही कम, मात्र 20 बर्ष की उम्र में 1720 ईस्वी में ही पेशवा का पद प्राप्त कर लिये थे। हम आपको बताते चलें कि, पेशवा क्षत्रपति के बाद सबसे बड़ा पद होता था जिसकी शुरुआत महाराज शिवाजी ने क्षत्रपति की पदवी धारण करने के बाद की थी और बाद में, क्षत्रपति साहूजी महाराज ने पेशवाओं को ज्यादा ताकत दे देते हैं और बालाजी विश्वनाथ से पेशवाओं का शासन पूरी तरह से स्थापित हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि, यदि बाजीराव पेशवा की मृत्यु इतनी जल्दी न हुई होती तो भारत को आजादी बहुत पहले ही मिल गई होती। तथा भारत अँग्रेजों का गुलाम न हुआ होता। वैसे तो, बाजीराव पेशवा ने अपने जीवनकाल में बहुत से युध्द लड़े और जीते भी लेकिन, आज हम बात करेगें बुन्देलखंड अभियान की जिसमे बाजीराव पेशवा क्षत्रसाल की मदद करते हैं।
बुंदेलखंड अभियान- बुंदेलखंड के महाराज क्षत्रसाल ने कई बर्षों तक मुगलों से लोहा लिया, और उन्हे नाको चने चबाते रहे। महाराज क्षत्रसाल ने मुगलों से युध्द करके एक स्वतंत्र पन्ना साम्राज्य का निर्माण किया। लेकिन, मुगलों के बार बार प्रयासों से मुहम्मद खान बंगाश (जो की फर्रुख़ाबाद का नबाब था) ने महाराज क्षत्रसाल को पराजित कर दिया और उनके परिवार को बंदी बना लिया ।क्षत्रसाल किसी तरह भागने में कामयाब हो गए। और उन्होंने बाजीराव पेशवा महाराजा को खत लिखा-
जो गति ग्राह गजेंद्र की
सो गति भई है आज
बाजी जात बुन्देल की
बाजी राखो लाज!
अर्थात्
जिस प्रकार गजेंद्र यानी हाथी मगरमच्छ के जबड़ो में फँस जाता हैं;
ठीक वही स्थिति मेरी है, आज बुन्देल हार रहा है, बाजी हमारी लाज रखो। ये खत पढ़ते ही बाजीराव भोजन छोड़कर उठे, उनकी पत्नी ने कहा भोजन तो कर लीजिए तब बाजीराव ने कहा- अगर मुझे पहुँचने में देर हो गई तो इतिहास लिखेगा कि एक क्षत्रिय राजपूत ने मदद माँगी और ब्राह्मण भोजन करता रहा”- ऐसा कहते हुए भोजन की थाली छोड़कर बाजीराव अपनी सेना के साथ राजा छत्रसाल की मदद करने के लिए निकल पड़ते है। दस दिन की दूरी बाजीराव ने केवल 48 घंटे में पूरी की, बिना रुके, बिना थके आते ही बाजीराव बुंदेलखंड पहुंचे और खान बंगास की
गर्दन काट कर जब छत्रसाल के सामने गए तो छत्रसाल ने बाजीराव को गले लगा लिया।