Friday, April 19, 2024
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गोडसे की याद में

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Babu Bajrangi
Babu Bajrangi
यह प्रबल समय की मांग है हिंदुत्व मेरी पहचान है।। जलता हुआ अघोर अनल जैसा मेरा अभिमान है मैं हूं धरा का भूमि पुत्र मुझसे इसकी पहचान है। जो करता लोक संकट संघार उसमें मेरा ही नाम है मैं हूं विलीन और शकल गगन यह भी मेरा वरदान है। यह प्रबल समय की मांग है हिंदुत्व मेरी पहचान है।। मैं करता राष्ट्र निर्माण निरंतर और यही मेरा प्रमाण है ना झुकना मेरा कर्म और राष्ट्रहित ही मेरा गान है। ना किया किसी पर अत्याचार ना किया अकारण ही प्रहार मैं सदाचार से घिरा निरंतर यह भी मेरा गुणगान है यह प्रबल समय की मांग है हिंदुत्व मेरी पहचान है।।

टपकते हुए आंसूओं को संभाले जा रहे हैं।

लूट रहे हैं सामने सब अपने और हम कराहे जा रहे हैं।

रुठे है रास्ते और जकड़े  है जंजीरे पुकारते हैं मुझको ये टूटती मंदिरें।

वह कौन लोग हैं जो जश्न मनाए जा रहे हैं।

हम हैं अपनों के लाशों से घीरें और वो,

खुशी के गीत गाए जा रहे हैं।

टपकते हुए आंसूओं को संभाले जा रहे हैं।

खिल खिलाती सङको पर है बच्चों का रोना,

जहां लगते थे रोज मेले वह पथ भी अब है सुना।

पर फिर भी कुछ लोग भाषण सुना ये जा रहे हैं।

हमारे दुर्दशा को अपनी सफलता बताए जा रहे हैं।

टपकते हुए आंसूओं को संभाले जा रहे हैं।

हमारे वापस आने से बापू इंकार कर रहे हैं,

और उनका नहीं जाने पर सत्कार कर रहे हैं।

इस निर्मम हिंसा के कारण लोग मारे जा रहे हैं।

पर फिर भी इसे वो अहिंसा बताए जा रहे हैं।

टपकते हुए आंसूओं को संभाले जा रहे हैं।

हमारे जमीन ये राक्षस हथियाए जा रहे हैं।

इसपे कुछ दिग्गज नेता शिगार जलाए जा रहे हैं।

महापुरुषों के सारे सपने दफनाएं जा रहे हैं।

और कुछ हिंसक लोगों के फोटो छपवाए जा रहे हैं।

टपकते हुए आंसूओं को संभाले जा रहे हैं।

वीर स्वतंत्रता सेनानी भुलाए जा रहें हैं।

हिंदुओं के विचारों पर खंजर चलाए जा रहें हैं।

हिंदू अपने घरों से भगाए जा रहें हैं।

और राक्षस इस राष्ट्र को जलाए‌‌ जा रहे हैं।

टपकते हुए आंसूओं को संभाले जा रहे हैं।

छीनीं थी आजादी हमने सन् ४३ में,

फिर क्यों हुआ ये बटवारा सन् ४७ में।

इस बंटवारे का कुछ लोग लाभ उठा‌ए जा रहें हैं।

बन रहें हैं वे मंत्री और हम अपनों को गवाएं जा रहे हैं।

मुझसे यह सब अब न देखा जा रहा है।

राष्ट्र की चिंता मुझे अंधकार में डूबा रहा है।

पर फिर भी कुछ श्रृंगाल मुझे ललकार रहे हैं।

मेरे राष्ट्र भक्ति पर ये मुझे धिक्कारे रहे हैं।

टपकते हुए आंसूओं को संभाले जा रहे हैं।

 इसिलिए

जिसने मेरे देश को तोड़ा उससे मैंने युद्ध किया।

और दिनांक 30 जनवरी को उसका मैंने वद्ध  किया।

लेखक की ओर से 

लो आज मैं अपने जीवन का परम कर्तव्य निभाता हूं।

मैं भी हूं एक राष्ट्रभक्त और जय-जय कार लगाता हूं।

।। भारत माता की जय।। भारत माता की जय।।

।। वन्दे मातरम्।। वन्दे मातरम्।।

एक प्रश्न लेखक के कलम से:- कि क्या जो 1947 में जो मिली वो आज़ादी थी या बटवारा था उस हिंदुओं के धरती का जिसे प्रभु श्री राम, चन्द्रगुप्त, नेताजी, महाराणा प्रताप, वीर सावरकर, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द, जगदगुरु शंकराचार्य आदि वीरों ने महापुरुषों ने अपने बलिदान से अपने ज्ञान अपने शौर्य से अपने पराक्रम से अपने वीरता से निर्माण किया था।

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यह प्रबल समय की मांग है हिंदुत्व मेरी पहचान है।। जलता हुआ अघोर अनल जैसा मेरा अभिमान है मैं हूं धरा का भूमि पुत्र मुझसे इसकी पहचान है। जो करता लोक संकट संघार उसमें मेरा ही नाम है मैं हूं विलीन और शकल गगन यह भी मेरा वरदान है। यह प्रबल समय की मांग है हिंदुत्व मेरी पहचान है।। मैं करता राष्ट्र निर्माण निरंतर और यही मेरा प्रमाण है ना झुकना मेरा कर्म और राष्ट्रहित ही मेरा गान है। ना किया किसी पर अत्याचार ना किया अकारण ही प्रहार मैं सदाचार से घिरा निरंतर यह भी मेरा गुणगान है यह प्रबल समय की मांग है हिंदुत्व मेरी पहचान है।।
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