कृषि क़ानूनों पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का दोनों पक्षों के साथ-साथ संपूर्ण देश को प्रतीक्षा थी। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय से किसान-आंदोलन के नाम पर चल रहे षड्यंत्र को विफल कर दिया है। उसने भले ही तीनों कृषि क़ानूनों पर अगले आदेश तक रोक लगा दी हो और एक समिति के गठन की घोषणा की हो। पर समिति के पास न जाने की दलीलों पर किसानों को फटकार लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि ” हम समस्या का समाधान चाहते हैं और आप अनिश्चिकालीन आंदोलन चाहते हैं। यह उचित नहीं। यह राजनीति नहीं है। राजनीति और न्यायतंत्र में फ़र्क होता है और आपको हर हाल में सहयोग करना ही होगा।” कमेटी बनाने के निर्णय का किसानों द्वारा विरोध किए जाने पर सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ”कमेटी हम बनाएंगें ही, और दुनिया की कोई ताक़त हमें उसे बनाने से रोक नहीं सकती है। हम जमीनी स्थिति समझना चाहते हैं। इस पर किसी को क्यों आपत्ति होनी चाहिए?”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कमिटी न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है और क़ानून को अनिश्चित काल के लिए निलंबित नहीं रखा जा सकता। सीजेआई ने कहा कि हम एक समिति इसलिए बना रहे हैं कि हमारे पास एक स्पष्ट तस्वीर हो। हम यह तर्क बिलकुल नहीं सुनना चाहते कि किसान समिति में नहीं जाएँगें। सरकार ने कमेटी बनाने के कोर्ट के निर्णय का स्वागत किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने हरीश साल्वे के इस आरोप को भी गंभीरता से लिया है जिसमें उन्होंने प्रतिबंधित संगठनों, खालिस्तानियों एवं अन्य अलगाववादी ताक़तों द्वारा इस प्रदर्शन को फंडिंग का उल्लेख किया था। साल्वे ने सरकार की सही मंशा एवं साफ़ नीयत का परिचय देते हुए यहाँ तक कहा कि अदालत यदि चाहे तो फ़ैसले में लिख दे कि एमएसपी जारी रहेगी और सरकार रामलीला मैदान में प्रदर्शन के लिए किसानों को अनुमति देने पर भी विचार कर सकती है।
इन सबके बावजूद अभी भी देश विरोधी ताक़तें किसान-आंदोलन की आड़ में सरकार के सामने तमाम चुनौतियाँ उत्पन्न करने के कुचक्रों को रचेंगीं। वे हर हाल में देश में विकास की रफ़्तार को धीमी करना चाहती हैं। सत्ता पाने की तीव्र लालसा में विपक्षी पार्टियाँ कृषि क़ानूनों की उपयोगिता को समझते हुए भी उनके हाथों का खिलौना बनी हुई हैं। यह सब दुर्भाग्यपूर्ण है। देश हर हाल में इस आंदोलन से बाहर निकलना चाहता है। भारत के लिए यह कितने बड़े गौरव की बात थी कि दुनिया के चंद देशों में से एक भारतवर्ष भी है, जिसने कोविड-19 के लिए दो-दो वैक्सीन विकसित कर लिए। यह गर्व और उत्सव का अवसर था, जिसे चंद राजनीतिक दल अपनी महत्त्वाकांक्षा के कारण मातम के अवसर में तब्दील कर देना चाहते हैं। निश्चित रूप से देश की जनता अगले चुनाव में इनसे इनके करतूतों का हिसाब माँगेंगीं।
प्रणय कुमार