Sunday, September 8, 2024
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pranay

कल्याण सिंह का देहावसान राजनीति के एक युग का अंत है

कल्याण सिंह स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े जनांदोलन श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के अगुआ और नायक मात्र ही नहीं थे। उन्होंने भारतीय राजनीति की दिशा तय की, राजनीति में सफलता के प्रचलित मानक एवं प्रतिमान बदले।

राष्ट्रीय-जीवन में छत्रपति शिवाजी का ऐतिहासिक अवदान

23 जून, हिंदू साम्राज्य-दिनोत्सव (शिवाजी का राज्याभिषेक) पर

इक्कीसवीं सदी योग-आयुर्वेद एवं भारतीय ज्ञान-विचार-परंपरा की सदी

इक्कीसवीं सदी भारतीय ज्ञान-विज्ञान-विचार-परंपरा की सदी है। कम-से कम 21 जून को मनाया जाने वाला अंतरराष्ट्रीय योग-दिवस और उसे मिलने वाला विश्व-बिरादरी का व्यापक जन-समर्थन यही संकेत और संदेश देता है।

पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद की हिंसा: कारण और निवारण

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की जीत के बाद हुई हिंसा राजनीतिक नहीं है, उसके पीछे वहाँ की जनसांख्यिकीय स्थिति मुख्य कारक है।

शिवाजी और उनका लोकाभिमुख शासन-तंत्र

शिवाजी महाराज की शासन-व्यवस्था लोकाभिमुख थी। वे एक निरंकुश शासक की बजाय लोककल्याणकारी शासक के रूप में हमारे सामने आते हैं। ए

समय एवं समाज की चेतना को झंकृत करने वाले- छत्रपति शिवाजी

शिवाजी का उदय केवल एक व्यक्ति का उदय मात्र नहीं था, बल्कि वह जातियों के उत्साह और पुरुषार्थ का उदय था, गौरव और स्वाभिमान का उदय था, स्वराज, सुराज, स्वधर्म व सुशासन का उदय था और इन सबसे अधिक वह आदर्श राजा के जीवंत और मूर्त्तिमान प्रेरणा-पुरुष का उदय था।

संघ विचार-परिवार के वैचारिक अधिष्ठान की नींव- श्री गुरूजी

संघ विचार-परिवार जिस सुदृढ़ वैचारिक अधिष्ठान पर खड़ा है उसके मूल में माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर उपाख्य श्री गुरूजी के विचार ही बीज रूप में विद्यमान हैं। संघ का स्थूल-शरीरिक ढाँचा यदि डॉक्टर हेडगेवार की देन है तो उसकी आत्मा उसके द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरूजी के द्वारा रची-गढ़ी गई है।

यह पाखंड बंद करो मोमिनों-बुर्कापरस्तों! प्रभु श्रीराम भी हमारे और माँ दुर्गा भी हमारीं!

शुतुरमुर्गी सोच आत्मघाती होगी, आँखें खोलकर देखिए आपके आस-पड़ोस में रोज एक 'रिंकु' मारा जा रहा है, रोज एक 'निकिता' तबाह की जा रही है, रोज एक 'नारंग' 'ध्रुव तिवारी' इनकी जिहादी-ज़ुनूनी-मज़हबी हिंसा का शिकार हो रहा है।

कश्मीरी पंडितों के बिना कश्मीरियत और जम्हूरियत दोनों अधूरी है

कश्मीरी अवाम ने विगत 17 महीनों में जिस शांति, सद्भाव, सहयोग, समझदारी, परिपक्वता एवं लोकतांत्रिक भागीदारी का परिचय दिया है, दरअसल उसे ही भारत के लोकप्रिय एवं यशस्वी प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटलबिहारी बाजपेयी ने कश्मीरियत, जम्हूरियत, इंसानियत का नाम दिया था और यह निर्विवाद एवं अटल-सत्य है कि कश्मीरी पंडितों एवं ग़ैर मज़हबी लोगों को साथ लिए बिना वह कश्मीरियत-जम्हूरियत-इंसानियत आधी-अधूरी है।

दिल्ली में किसानों के वेश में गुंडों-दंगाइयों-आतंकियों का हिंसक प्रदर्शन

गणतंत्र-दिवस के दिन इन्होंने अपनी काली करतूतों से समस्त देशवासियों का सिर पूरी दुनिया में झुका दिया है। इतिहास इन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा।

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