हमें इसे अविवादित रूप से स्पष्ट करना होगा सार्वजनिक मार्गो और सार्वजनिक स्थानों पर इस तरह से कब्जा नहीं किया जा सकता है और वह भी अनिश्चित काल के लिए। लोकतंत्र और असंतोष साथ साथ चलते है, लेकिन असंतोष व्यक्त करने वाले प्रदर्शनों को अकेले निर्दिष्ट स्थानों पर होना चाहिए।
वर्तमान मामला एक अविवादित क्षेत्र में होने वाले विरोध प्रदर्शनों का नहीं था, बल्कि एक सार्वजनिक रास्ते का अवरोध था, जिससे आने-जाने वालों को काफी असुविधा होती थी। हम आवेदकों की दलील को स्वीकार नहीं कर सकते हैं कि जब भी वे विरोध करना चुनते हैं तो एक अनिश्चित संख्या में लोग इकट्ठा हो सकते हैं। इस प्रकार, हमें यह निष्कर्ष निकालने में कोई संकोच नहीं है कि सार्वजनिक तौर पर इस तरह के कब्जे, चाहे वह सार्वजनिक स्थल पर हो या कहीं और विरोध प्रदर्शन के लिए स्वीकार्य नहीं है और प्रशासन को इन्हें अतिक्रमण या अवरोधों से मुक्त रखने के लिए कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
इसमें कोई संदेह नहीं है, की उपयुक्त कार्रवाई करने कि जिम्मेदारी प्रतिवादी अधिकारियों की है, लेकिन फिर इस तरह की उपयुक्त कार्रवाई से परिणाम उत्पन्न होने चाहिए। प्रशासन को किस तरीके से कार्य करना चाहिए यह उनकी जिम्मेदारी है और उन्हें अपने प्रशासनिक कार्यों को करने के लिए अदालत के आदेशों के पीछे नहीं छिपना चाहिए और न ही समर्थन मांगना चाहिए। अदालतें कार्रवाई की वैधता का निर्णयन करती हैं, प्रशासन को अपनी बंदूकों से फायर करने के लिए कंधे देने के लिए नहीं होती हैं। दुर्भाग्य से, काफी समय की चूक के बावजूद, न तो कोई बातचीत हुई और न ही प्रशासन द्वारा कोई कार्रवाई की गई, अतः हमारे हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
उपर्युक्त आदेश आदरणीय सुप्रीम कोर्ट ने दिनांक ७ अक्टूबर २०२० को शाहीन बाग़ में अवैध रूप से चल रहे विरोध प्रदर्शन के मामले में प्रस्तुत की गयी एक अपील पर सुनवाई करते हुए दिया था। विदित हो की श्रीमान अमित साहनी के द्वारा एक सिविल अपील (CIVIL APPEAL NO. 3282 OF 2020) आदरणीय सर्वोच्च न्यायालय के सामने प्रस्तुत की गयी थी और शाहीन बाग़ में बैठे विरोधकर्ताओ (CAA का विरोध करने वाले लोगो) द्वारा सार्वजनिक रास्ते और सार्वजनिक स्थल को अवरुद्ध कर देने तथा उसके कारण आम जनता को होने वाली भारी मानसिक, शारीरिक व आर्थिक परेशानियों से छुटकारा दिलाने का अनुरोध किया गया था।
हम सभी भारतवासी इस तथ्य से भलीभाँति परिचित हैं की शाहीन बाग़ में चल रहा विरोध किस प्रकार ५० से भी ज्यादा नागरिको की जान लेकर और हजारों करोड की संपत्ति के नुकसान के साथ ख़त्म हुआ, क्योंकि देश में पल रहे देश के दुश्मनों और षडयंत्रकारियो ने मिलकर वो खूनी खेल खेला की पूरी मानवता शर्मसार हो गयी।
शाहीन बाग़ से मिले भयानक अनुभवों तथा सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त आदेश के बाद भी केंद्रीय सरकार ने तथाकथित किसान नेताओं (राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव, बलबीर सिंह राजेवाल, गुरुनाम सिंह चढूनी और दर्शन पल सिंह इत्यादि )को अपना उचित व् समुचित सहयोग दिया। विदित हो की कृषि छेत्र में सुधार करने हेतु और किसानों की कमाई में वृद्धि करने हेतु , केंद्रीय सरकार ने तीन कृषि विधेयक लाये थे जो लोकसभा और राज्य सभा में पारित होने के पश्चात राष्ट्रपति के हस्ताछर द्वारा अधिनियम में बदल कर लागू कर दिए गए थे। इन कृषि सुधारो से केवल बिचौलियों और दलालो को नुकसान हो रहा था जिसका सीधा फायदा हमारे किसानों को पहुँच रहा था। इन कृषि सुधारो के लागू किये जाने के ५ महीने के बाद तथाकथित किसान नेतावो ने इन कृषि सुधारो का विरोध करने का फैसला किया , ये किसके इशारो पर किया गया होगा ये सर्वविदित है।
केंद्रीय सरकार ने १० से ज्यादा दौर की बातें की, और हर दौर में तथाकथित किसान नेतावो को कृषि कानूनों से प्राप्त होने वाले एक एक लाभ को समझने की कोशिश की परन्तु कोई समझने के लिए तैयार हो तब तो बात बने, ये नेता तो उलझने के उद्देश्य से बैठे थे अतः वो हर दौर की बातचीत के बाद एक नयी मांग के साथ मिडिया के सामने आ जाते थे। इस पूरे विरोध प्रदर्शन में एक महत्वपूर्ण बात ये है की हर दौर की बातचीत के बाद तथाकथित किसान नेतावो की मांग बदल जाती है। उदाहरण के लिए जब इन्होने विरोध प्रदर्शन की शुरुआत की थी, तब इनकी मांग थी की “कृषि बिलों में संशोधन किया जाए“, उसके बाद मांग हो गयी की “कृषि बिलों में संशोधन किया जाए और ऍम अस पि (MSP) की गारंटी दी जाए” उसके कुछ दिन बाद मांग हो गयी की “जब तक समझौता नहीं हो जाता तब तक सारे कानूनों को लागू ना किया जाए “फिर अगले दौर की बैठक के बाद मांग हो गयी की “सारे बिल वापस लिए जाए” और इसी प्रकार अन्य मांग उसमे जुड़ते गए।
एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय के पास मामला पहुंचा और मामले की गंभीरता को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सबसे पहले सारे कानून बिलों को लागू करने पर रोक लगा दी और फिर सरकार और किसान नेतावो के मध्य समझौता कराने के लिए एक कमिटी का गठन किया, परन्तु इन किसान नेतावो की मंशा तो कुछ और ही थी अतः उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को भी मानने से इंकार कर दिया और गठित की गयी कमिटी पर ही सवाल उठा दिए।
और अंतत: किसान नेतावो ने अपनी असली मंशा जाहिर की २६ जनवरी अर्थात गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली में घुसकर लाल किले पर झंडा फहराने की और इसके लिए हद से गुजर जाने की।
केंद्रीय सरकार और दिल्ली की पुलिस ने बहुत समझाने की कोशिश की पर उनको न तो मानना था और ना वे माने। अत: केंद्रीय सरकार और दिल्ली पुलिस के उच्च अधिकारियों ने किसान नेतावो के साथ एक समझौता किया और पूर्वनिर्धारित मार्गो पर ट्रेक्टर रैली निकालने की अनुमति दे दी। ट्रेक्टर रैली के लिए बाकायदा कुछ नियम बनाये गए और सभी किसान नेतावो ने उसे पालन करने का आश्वासन दिया और वादा किया की ट्रेक्टर रैली के दौरान अनुशासन का पालन किया जायेगा और किसी को भी किसी भी प्रकार की अराजकता फैलाने नहीं दी जाएगी।
दिल्ली पुलिस उनके मंसूबो को समझने में भूल कर गयी और फिर २६ जनवरी २०२१, भारतीय स्वतंत्रता के बाद के इतिहास का सबसे कलंकित गणतंत्र के रूप में हमारे सामने आ गया। षणयन्त्रकारियो और देश के दुश्मनों ने एक बार फिर जबरदस्त तरीके से अपनी योजना का क्रियान्वयन किया और दिल्ली पुलिस के लगभग ४०० जवानो को (कुछ को गंभीर रूप से) घायल करते हुए व् सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हुए लाल किले पर अपना झंडा फहरा दिया और इसी के साथ पूरे देश को एक बार फिर शर्मसार कर दिया।
उसके बाद भी इन देश के दुश्मनों का मन नहीं भरा तो उस तिरंगे को भी अपमानित कर गए जिसके लिए हमारे लाखो क्रांतिवीरो ने अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया। ये तिरंगा भारत की आन मान व् सम्मान है और इसी के स्वाभिमान को कायम रखने के लिए सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, राजगुरु, बटुकेश्वर दत्त, सुखदेव, सरदार उधम सिंह, असफाक उल्ला खां, लाहिड़ी और बिसमिल जैसे कई महान क्रान्तिकारी देशभक्तो ने फांसी के फंदो को हंसते हंसते चूम लिया।
जिसके लिए वीर दामोदर सावरकर जीवन भर संघर्ष करते रहे, जिसके लिए नेताजी ने आजाद हिंद फौज का गठन कर अंग्रेजो के दिलो में हिंदुस्तानी विरो का ख़ौफ़ भर दिया और वो अंग्रेज देश छोड़कर भाग खड़े हुए , उसी तिरंगे का अपमान ये देश के गद्दार कर गए।
हमारे देश की काली राजनीति की विडम्बना देखिये, इन्ही गद्दारो का पछ लेने के लिए विपछ के कई निम्न कोटि की निकृष्ट मानसिकता वाले मनोरोगी खुलकर सामने आ रहे है। और राजनीति के ये खून पीने वाले गिद्ध एक बार फिर शाहीन बाग़ के तर्ज पर केवल दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष में खून की नदिया बहाना चाहते है और बेकसूर हिन्दुस्तानियो के लाशो पर अपनी कुत्सित राजनीति की रोटियां सेकना चाहते है।
अब ये केवल स्थानीय लोगो के हाथों में है की वे इन गद्दारो के द्वारा पैदा कि गई परेशानियों को यु ही सहन करते रहे या बाहर निकलकर अपनी आवाज बुलंद करे और इन गद्दारो को तिरंगे के अपमान करने का सबक सिखाये, क्योंकि सरकार अपनी मर्यादा में है, सर्वोच्च न्यायालय को जो करना था वो कर चूका, दिल्ली पुलिस के हाथ बंधे हुए है और विपछ का काला व् भयानक चेहरा आपके सामने है, किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता, परेशानी आपको है, डर आपको है, जिंदगी आपकी दाँव पर लगी है।
आइये इन गद्दारो का खुल कर विरोध करे व तिरंगे का अपमान करने का सबक इन्हे सिखाये।
जय हिन्द जय भारत जय दिल्ली पुलिस के जवान।
Nagendra Pratap Singh (Advocate) [email protected]