Sunday, November 3, 2024
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चीन में उइगुर मुसलमानों के कीड़े मकोड़ो से बदतर हालात पर इसलामी राष्ट्रों की घातक चुप्पी

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Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.

साथियों हम सभी इस तथ्य से भलीभाँती अवगत हैं कि वामपंथी विचारधारा और तानाशाही में चोली-दामन का साथ है। चीनी माओत्से तुंग माओ तो कहता ही था कि सत्ता बंदूक की गोली से निकलती है।

आइये उइगुर मुसलमानों की लाचारी व चीन के द्वारा उनको दी गयी नर्क से भी बदतर और सड़ी गली जिंदगी पर एक दृष्टि डालते हैं।

प्रारंभिक इतिहास:-
उइग़ुर पूर्वी और मध्य एशिया में बसने वाले मुसलमानों के तुर्की जाति की एक जनजाति है। उइग़ुर लोगों को पहले तुर्की मुस्लिम या सारत कहते थे और उस समय उइग़ुर शब्द का प्रयोग किसी प्राचीन साम्राज्य के लिए किया जाता था, जो उस समय (१९ सदी तक) ख़त्म हो चुका था। वर्तमान में उइग़ुर लोग अधिकतर चीनी जनवादी गणराज्य द्वारा नियंत्रित श़िंजियांग उइग़ुर स्वायत्त प्रदेश नाम के राज्य में बसते हैं। इनमें से लगभग ८० प्रतिशत इस क्षेत्र के दक्षिण-पश्चिम में स्थित तारिम घाटी में रहते हैं। उइग़ुर लोग उइग़ुर भाषा बोलते हैं जो तुर्की भाषा परिवार की एक बोली है।१९२१ में हुए ताशकंद सम्मेलन में इन्हें उइग़ुर सम्बोधन प्रदान किया गया- जो उसी क्षेत्र के पुराने उईग़ुर ख़ागानत (सन् ७४५-८४०) के नाम से लिया गया था।

शिंजियांग:- इस पर कई वंशों की हुकूमत रही है! कई उतार चढ़ाव व जद्दोहद के बाद 1878 में चीन ने शिन्जियांग को अपने आधिपत्य ले लिया था और तब से यह जनवादी गणराज्य चीन का एक स्वायत्तशासी क्षेत्र है। चीन के किंग राजवंश ने इसे शिन्जियांग या नया सूबा नाम दिया था। 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की स्थापना के बाद चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने शिन्जियांग के प्रचुर क़ुदरती संसाधनों का जम कर दोहन कियाI भारत का अक्साई चीन का इलाका भी, जिस पर चीन का अवैध व मक्कारी वाला कब्ज़ा है, प्रशासनिक रूप से शिंजियांग में शामिल है।

शिंजियांग की राजधानी उरुमची नाम का शहर है, जबकि इसका सबसे बड़ा नगर काश्गर है। मांछु भाषा में ‘शिंजियांग’ का मतलब ‘नया सूबा’ है। ये इलाक़ा चीनी तुर्किस्तान या मशरक़ी तुर्किस्तान भी कहलाता है।

शिंजियांग की आजादी का संघर्ष :-
शिंजियांग प्रांत में चीन से अलग होने के लिए लंबे समय से संघर्ष चल रहा है। उइग़ुर लोगों का एक अलगाववादी समूह मानता है कि यह क्षेत्र, जिसे वे पूर्वी तुर्किस्तान कहते हैं, चीन का वैध अंश नहीं है बल्कि १९४९ में चीन द्वारा आक्रमण करके कब्जाया गया था और अभी तक चीन उस पर अनधिकृत रूप से क़ाबिज़ है।

माइकल डिल्लन के द्वारा रचित पुस्तक “China:A Modern History” के पेज सं 376 में कि गयी टिप्पणी के अनुसार “हालांकि यहाँ अलगाववादी भावना समय-समय पर तीखी होती रहती है। चीन ‘पूर्वी तुर्किस्तान’ नाम का विरोध करता है। २०वीं सदी में दो बार ‘पूर्व तुर्किस्तान गणतंत्र’ नामक राष्ट्र भी स्थापित हो चुका है – प्रथम पूर्व तुर्किस्तान गणतंत्र १९३३-१९३४ काल में काश्गर शहर में केन्द्रित था और द्वितीय पूर्व तुर्किस्तान गणतंत्र १९४४-१९४९ काल में पूर्वी तुर्किस्तान के उत्तरी क्षेत्र में सोवियत संघ की सहायता से चला”।

ये अलगाववादी आंदोलन कुछ तुर्की मुस्लिम संगठनों द्वारा चलाया जा रहा है, जिनमें “पूर्वी तुर्किस्तान स्वाधीनता आंदोलन” नाम का दल प्रमुख है।
ये आंदोलन अक्सर ही हिंसक रूप अख्तियार कर लेता है जिसके कुछ उदाहरण निम्नवत हैं।

CNTV द्वारा 24 अप्रैल 2013 को दी गयी न्यूज के अनुसार “21 dead in Xinjiang terrorist clash”, इसी घटना का उल्लेख Chicago Tribune ने अपने 1मार्च 2014 के अंक में छापा कि “China blames Xinjiang militants for station attack”अतः 24 अप्रैल 2013 को काश्गर के निकट हिंसक झड़पों में २१ लोगों की मृत्यु हुई, जिनमें १५ पुलिसकर्मी थे।

दो महीने बाद 26 जून 2013 को हुए दंगे में 27 लोग मारे गए; जिनमें 17 दंगाईयों द्वारा मारे गए थे और बाकी दस कथित तौर पर हमलावर थे जिन्हें पुलिस ने Lukqun शहर में मार गिराया।इस घटना को वाशिंगटन पोस्ट ने अपने 26 जून 2013 तो प्रकाशित हुये अकं में निम्न शीर्षक से छापा “State media: Violence leaves 27 dead in restive minority region in far western China”. इस प्रकार अनेको खूनी संघर्ष देखने को मिले उइगुर मुसलमानों और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के तानाशाही शासन के मध्य।

वैसे संपूर्ण विश्व इस तथ्य से अवगत है कि चीन अपनी ज़मीन पर, किसी तरह का विरोध या संघर्ष कभी नहीं बर्दाश्त करता अतः: अपने अमानुषिक तरिकों से हर विद्रोह को बड़ी ही सख्ती से कुचल देता है।

आज चीन इस मुसलमानों पर हर अमानवीय अत्याचार करता है, जिसके कुछ उदाहरण निम्नवत हैं :-
1:-मार्च 2017 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सुरक्षा बलों को निर्देश दिए कि वो चीन के शिन्जियांग सूबे में ‘लोहे की विशाल दीवार’ खड़ी करें, ताकि वीगर मुसलमानों के बग़ावती तेवरों पर क़ाबू पाया जा सके।

2:-लोगों को फिर से तालीम देने के नाम पर सरकारी शिविरों में (नज़रबंदी शिविरों) रखा जाता है, जहां पर उन्हें टॉर्चर तो किया ही जाता है साथ ही साथ उनके शरीर के अंग भी अवैध रूप से निकाल कर बेच दिए जाते हैं। चीन में वीगर मुसलमानों के शरीर के अंग अवैध रूप से निकाल कर बेचने का ये धंधा ख़ूब फल फूल रहा है! क़रीब बीस लाख वीगर मुसलमानों और कज़ाखों को नज़रबंदी शिविरों में रहने के लिए भेजा गया है! चीन इन्हें ‘रि-एजुकेशन कैंप’ कहता है।

3:- उइगुर मुसलमानों को लंबी दाढ़ी रखने, टोपी पहनने, नमाज पढ़ने, कुरान रखने और अजान करने की सख्त मनाही है।

4:- मस्जिदों को या तो तोड़ कर शौचालय या फिर शराब की दुकान या सरकारी कार्यालय में बदल दिया जाता है।

5:- जैसे पाकिस्तान में कभी बलोचो, कभी सिंधियों, कभी हिंदुवो पर सरेआम ज़ुल्म ढाया जाता है, उनका कत्लेआम किया जाता है व उनके घरों पूजास्थलों को लूट लिया जाता है ठिक उसी प्रकार चीन में उइगुर मुसलमानों के साथ होता है।

6:- चीन बाहरी देशों में शरण पाने वाले उइगुर मुसलमानों को भी मौका मिलते ही कत्ल करवा देता है।

इसलामी राष्ट्र क्यों नहीं उइगुर मुसलमानों का साथ देते हैं
मुसलमानों का मसीहा बनने वाले देश जैसे सउदी अरब, भिखारी पाकिस्तान, तुर्की व ईरान इत्यादि देश आखिर उइगुर मुसलमानों के हालात पर आवाज क्यों नहीं बुलंद करते हैं और तो और मुसलमानों के लिये अपनी निती और नियत बेच देने वाले भारत के तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी और वामपंथी, क्यों नही आवाज उठाते, आइये देखते हैं इसका कारण :-

वॉशिंगटन के सेंटर फ़ॉर ग्लोबल पॉलिसी में ‘डिसप्लेसमेंट एंड माइग्रेशन प्रोग्राम’ के डायरेक्टर श्रीमान अज़ीम इब्राहिम के अनुसार “पाकिस्तान समेत कई देश चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ प्रोजेक्ट में शामिल हैं! चीन ये सुनिश्चित करता है कि ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रोजेक्ट में शामिल होने वाले देश, उसके किसी भी मामले में दख़ल ना दें!

“चीन ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ प्रोजेक्ट के ज़रिए, चीन सड़कों और बंदरगाहों का एक ऐसा नेटवर्क तैयार कर रहा है, जो अफ़्रीका, यूरोप और एशिया को जोड़कर उनके बीच की दूरियों को ख़त्म कर देगा! चीन ने वर्षो पहले ये प्रोजेक्ट शुरू किया था, जिसे मूर्त रूप देने के लिए उसने अरबों डॉलर पानी की तरह बहाए हैं! शिनजियांग की सीमा से लगने वाला पाकिस्तान शुरू से इस प्रोजेक्ट का हिस्सा रहा है!

अज़ीम इब्राहिम कहते हैं, “चीन ने पाकिस्तान को अरबों डॉलर का लोन दिया है! चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) की वजह से चीन, पाकिस्तान में कहीं भी आ-जा सकता है! वर्तमान स्थिति में चीन ही केवल पाकिस्तान का माई बाप बना हुआ है, क्योंकी भिखारीयों से भी ज्यादा भिखारी हो चुके पाकिस्तान की पूरी अर्थव्यवस्था चीन के फेके गये टुकडों पर चल रही है अत: एसे में उइगुर @वीगर मुसलमानों के समर्थन में चीन के खिलाफ भला कैसे कुछ कह सकता है.”।

युएइ, ईरान, इंडोनेसिया, जार्डन, सीरिया, बांग्लादेश, तजाकिस्तान, अफगानिस्तान, कुवैत, बहरीन व् मलेसिया इत्यादि देश अपनी ज़ुबान पर ताले मढ़ कर बैठे हैं। सुन्नी मुसलमानों का नेता बनने वाले सऊदी अरब की भी बोलती बंद है।

उइगुर/वीगर मुसलमान सांस्कृतिक रूप से खुद को चीन के बजाए तुर्की के ज़्यादा नजदीक पाते हैं। पाँच साल पहले तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने कहा भी था कि उनके देश में वीगर मुसलमानों का स्वागत है, लेकिन बाद में दुनिया के मुसलमानों का ख़लीफ़ा बनने का ख़्वाब देखने वाले एर्दोगन के स्वर भी बदल गए और अब तो वो कोरोना वैक्सीन के बदले तुर्की में रह रहे उइगुर मुसलमानों को चीन को सौपने के लिए भी तैयार है। तुर्की भी चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ प्रोजेक्ट में शामिल है।

विदित हो कि चीन द्वारा “शंघाई को-ऑपरेशन आर्गनाइजेशन” साल 2001 में अलगाववाद, अतिवाद और आतंकवाद से लड़ने के उद्देश्य से बनाया गया था। इस संगठन का बुनियादी सिद्धांत ये है कि कोर-मेम्बर्स रूस, चीन, कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़बेकिस्तान आपस में सुरक्षा-संबंधी सहयोग करते हुए एक दूसरे के आंतरिक मामलों में दख़ल नहीं देंगे”।

चीन की रणनीति का दूसरा पक्ष राजनीतिक और कूटनीतिक है: अपार अंतरराष्ट्रीय समर्थन को अपनी ओर सुनिश्चित करने के लिए चीन ने कई वर्षों तक जमकर मेहनत की है। जिसका परिणाम उस समय देखने  को मिला जब अमरीका की अगुआई में 22 देशों के एक समूह ने पत्र लिखकर शिनजियांग में मानवाधिकारों के उल्लंघन का मुद्दा उठाते हुए चीन की आलोचना की और इसके जबाब में जो पत्र लिखा गया, उस पर 50 देशों के दस्तख़त थे जिनमें सूडान, ताजिकिस्तान, जिबूती, यमन, कुवैत, म्यांमार जैसे देश शामिल थे।

अपनी किताब, ‘चाइनीज़ कम्युनिस्ट पॉवर ऐंड पॉलिटिक्स इन शिन्जियांग 1949-1977’ में डोनाल्ड एच. मैक्मिलेन लिखते हैं कि, ‘किस तरह चीन के कम्युनिस्ट शासक चेयरमैन माओ की पत्नी जियांग क़िंग, वीगरों को विदेशी आक्रांता और एलियनमानती थीं.’।

वो मुस्लिम देशों को क़र्ज़ और रियायतें देता है। कई बार तो चीन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इन अराजक मुस्लिम देशों की हिमायत भी करता है, ताकि, वो शिन्जियांग में वीगर मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यकों के जातीय सफ़ाई अभियान के दौरान इन देशों को खामोश रख सके। इसीलिए, मुस्लिम देशों ने इस मसले पर पूरी तरह से  खामोशी अख़्तियार कर रखी है।

नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)

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