जब तुर्की के खलीफा पद के लिए मुस्लिमो द्वारा खिलाफत आन्दोलन छेड़ा गया तब महात्मा गाँधी ने भी इस आन्दोलन का समर्थन किया और पुरे देश को जोड़ने के कोशिश की. खिलाफत आन्दोलन जोर-शोर से आगे बढ़ रहा था और पुरे देश के हिन्दू-मुस्लिम एक हो कर इस आन्दोलन की लड़ाई लड़ रहे थे लेकिन लक्ष्य अलग-अलग था. हिन्दू इस आन्दोलन लड़ रहे थे की स्वराज्य प्राप्त हो वही मुस्लिम तुर्की के खलीफा पद के लिए.
1920 में प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार मालाबार में होने वाले मोपला विद्रोह दो मुस्लिम संगठनों खुद्दम-ए-काबा और केन्द्रीय खिलाफत समिति के आंदोलनों के कारण शुरू हुए। दरअसल आंदोलनकारियों ने इस सिद्धांत का प्रचार किया कि ब्रिटिश सरकार के अंतर्गत भारत दारूल हरब था और मुसलमानों को इसके विरुद्ध अवश्य लड़ाई लड़नी चाहिए और यदि वे ऐसा नहीं कर सकते तो उनके समक्ष एकमात्र विकल्प हजरत का सिद्धांत रह जाता है। मोपला लोग इस आंदोलन से अचानक मानों आभूत हो गए। यह मूल रूप से ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध एक विद्रोह था। इसका उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य का तख्ता उलटकर इस्लामिक साम्राज्य की स्थापना करना था। छुप-छुप कर चाकू, छुरे और भाले बनाए गए और ब्रिटिश सत्ता पर हमला करने के लिए दुस्साहसी लोगों के दल बनाए गए। पीरूनांगडी में 20 अगस्त को मोपलों और ब्रिटिश सैनिकों के बीच भयंकर झड़पें हुई। मार्ग में तरह-तरह के अवरोध खड़े किए गए और कई जगह रेल और संचार सेवाएं ठप्प की गई, नष्ट कर दी गई। प्रशासन अस्त-व्यस्त होते ही मोपलाओं ने स्वराज स्थापित होने की घोषणा कर दी।
अली मुदालियर नामक एक व्यक्ति की ताजपोशी भी कर दी गई। खिलाफत के झंडे फहराए गए और इरनाडू तथा वालुराना खिलाफत सल्तनतें घोषित कर दी गई। ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध तो विद्रोह ठीक समझ आता है परंतु मोपलाओं का मालाबार के हिंदुओं के साथ व्यवहार दिमाग खराब करने वाला था। हिंदुओं को मोपलाओं के हाथों भयंकर विपत्ति कत्लेआम, जबरन धर्म-परिवर्तन, मंदिरों को नष्ट किया जाना, स्त्रियों पर भीषण अत्याचार, जैसे गर्भवती महिलाओं का पेट चीर देना, लूटमार, आगजनी जैसी भीषण विपत्ति और तबाही का सामना करना पड़ा। संक्षेप में, वहां मोपलाओं की बर्बरता का बेलगाम नंगा नाच हुआ और मोपलों ने हिंदुओं पर तब तक बेइंतहा जुल्म उस दुर्गम इलाके में शीघ्रातिशीघ्र शांति स्थापित करने उद्देश्य से सेना के पहुंचने तक जारी रखें। वहा के हिंदुओ में ज्यादातर गरीब किसान ही थे.
यह महज एक हिंदू-मुस्लिम दंगा नहीं अपितु नियोजित सोद्देश्य हिंसा थी उन लोगो ने देखते ही देखते मोपला के 20 हजार से भी ज्यादा हिंदुओं को काट दिया। जिसमें अनगिनत हिंदू जख्मी हुए और हजारो का धर्म-परिवर्तन हुआ।
गाँधीजी ने इसी वक्त अपना असहयोग आन्दोलन भी वापिस ले लिया. जब हिन्दूओ के कुछ नेताओ ने गांधीजी से कहा की यह दंगे की शुरुआत मोपला विद्रोह से हुई थी और वहा के मुसलमानो ने दंगे शुरू करके हमारी मा-बेटियो का बलात्कार किया था तो इसके जवाब में गांधीजी ने कहा था की इसमें मुसलमानों की कोई भी गलती नहीं है अगर हिन्दू लोग अपनी मा-बेटी की रक्षा नहीं कर सकते तो इसमें गलती हिंदुओ की ही है ना की मुसलमानों की. मोपला हत्याकाण्ड’ में सैकड़ों मुसलमान समर्थकों हिन्दू दलितों की भी निर्मम हत्या की गई थी क्योंकि उन्होंने मुसलमान धर्म में दीक्षित होने से मना कर दिया था। यही नहीं तलवार और खुले आम गुंडागर्दी का प्रदर्शन करके हिन्दू दलितों को मुसलमान बनाया गया। खिलाफत आंदोलन के नेताओं ने एक प्रस्ताव पारित करके मोपलाओं (मुसलमानों) के धर्म के लिए बहादुरी का परिचय देने पर उनका अभिनंदन किया।
स्वामी श्रद्धानन्द ने अपने जनरल ‘लिब्रेटर’ में गांधीजी पर आरोप लगाया। गांधीजी कई बार कह चुके थे अस्पृश्यता हिन्दुओं का पाप है जब उन अस्पृश्यों पर खुलेआम घोर अत्याचार हुए तो हिन्दू उस पाप के निवारण हेतु आगे क्यों ना आए? दलितों का खून उनकी मर्जी के खिलाफ धर्मान्तरण की गुलामी को परवान चढ़ गया। जब कुछ कांग्रेसियों ने इसका विरोध एक प्रस्ताव के माध्यम से करना चाहा तब तथाकथित राष्ट्रीय मुसलमानों ने इसका विरोध किया। उनके अनुसार मोपला स्टेट दारुल अमान न रह कर दारुल हराब हो गया। इसलिए दलितों को कुरान या तलवार में से एक का चुनाव कराना बहादुर मोपलाओं का धर्म था।
कांग्रेस से अलग होकर स्वामी श्रद्धानन्द जी ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए शुद्धिकरन आंदोलन की शुरुआत की और कई सारे मुस्लिम बने हिंदुओ का फिर से शुद्धिकरण करके हिंदू बना दिया. मदन मोहन मालवीय तथा पूरी के शंकराचार्य स्वामी ने भी अपना समर्थन दिया. अगस्त, 1926 के अंक में स्वामी जी ने लिखा है समिति द्वारा हिंदुओं पर मोपलाओं के अत्याचारों की निंदा करने का प्रश्न आने पर पहली बार चेतावनी दी गई थी। मूल प्रस्ताव में हिंदुओं की हत्याओं, हिंदू घरों को जलाने और हिंदुओं का जबर्दस्ती धर्म-परिवर्तन करने के लिए सारे मोपला लोगों की निंदा की गई थी। हिंदू काँग्रेस सदस्यों ने स्वयं ही इसमें इतने संशोधन प्रस्तुत किए कि अंततः इन अपराधों के लिए कुछ थोड़े से व्यक्तियों की ही निंदा की जा सकी। परंतु कुछ मुस्लिम नेताओं से इतना भी सहन नहीं हुआ। मौलाना फकीर और कुछ अन्य मौलानाओं ने इस प्रस्ताव का विरोध किया और इससे कोई आश्चर्य भी नहीं हुआ। परंतु आश्चर्य तब हुआ जब मौलाना हसरत मोहानी जैसे पूरे राष्ट्रवादी ने भी इस आधार पर प्रस्ताव का विरोध किया कि मोपला इलाका अब ‘दारुन अमन नहीं रहा बल्कि दारुन हरब बन चुका है और उन्हें हिंदुओं पर इस बात का शक था कि वे मोपलों के अंग्रेज दुश्मनों से मिले हुए हैं। इसलिए मोपलों ने यह ठीक ही किया कि हिंदुओं के सामने कुरान या तलवार का विकल्प रखा। इसलिए यदि हिंदू अपने आप को मौत से बचाने के लिए मुसलमान बन गए तो इसे स्वेच्छा से धर्म-परिवर्तन कहा जाएगा न कि जबरन धर्म-परिवर्तन और इतना सरल प्रस्ताव, जिसमें केवल कुछ महिलाओं की बेइज्जती की गई थी।
इस आन्दोलन के दौरान 23 दिसंबर 1926 में अब्दुल रशीद नामक एक उन्मादी स्वामीजी के कक्ष में उनसे मिलने आया और गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। इसके अलावा आर्य समाजी नेता नानक चन्द, राजपाल तथा नाथुरामल का मुसलमानो ने कत्ल कर दिया और नाथुरामल को तो अदालत के अंदर मारा गया।
हलाकि अब्दुल रंगे हाथो पकड़ा गया और उसको फांसी की सजा सुनाई गई थी. स्वामी श्रद्धानन्द की हत्या के दो दिन बाद गुवाहाटी में आयोजित काग्रेस के अधिवेशन में शोक सभा रखी गई. उस शोक सभा में भारत के महात्मा कहे जाने वाले गाँधी ने जो कहा वो सुनकर सभी का खून खोल उठेगा. गांधीजी ने कहा की “अब्दुल रशीद को मेने भाई कहा है और में इस बात को फिर से दोहराता हु. में अब्दुल को स्वामीजी की हत्या का दोषी भी नहीं मानता हु. वास्तव में दोषी वो लोग है जिन्हों ने आपस में दंगे शुरू किए इसी लिए में इस सभा में स्वामीजी की हत्या के लिए शोक प्रगट नहीं कर रहा हु. यह अवसर शोक प्रगट करने का नहीं है. में अब्दुल को निर्दोष मान रहा हु इसी लिए इसका केस में लडूंगा।”
अब जब देश के इतने बड़े नेता और वकील इसका केस लडेगा तो कोन इसको सजा दे सकता है. गांधीजी की वजह से अब्दुल को सिर्फ 2 ही साल में निर्दोष करार देकर छोड़ दिया गया. गाँधी ने यह जानते हुए भी अब्दुल को निर्दोष साबित किया की उन्होंने भारत के सबसे बड़े हिंदू धर्म गुरु की हत्या की थी
1920 मे मोपलओ द्वारा हिन्दुओ का नरसंहार का इस समय उल्लेख करना आवश्यक है क्योकि CAA के विरोधस्वरूप हुई हिंसा का नॉर्थ ईस्ट दिल्ली मे हिन्दु विरोधी दंगो मे बदल जाना यह दिखाता है के मुसलमानो के मत मे मोदी सरकार हिन्दू राष्ट्र अर्थात दारुल हरब की और बढ़ रही है और मुसलमानों को इसके विरुद्ध अवश्य लड़ाई लड़नी चाहिए और यदि वे ऐसा नहीं कर सकते तो उनके समक्ष एकमात्र विकल्प हजरत का सिद्धांत रह जाता है। दिल्ली दंगो के आरोपी आम आदमी पार्टी के ताहिर हुसैन का बयान यह स्पस्ट करता है ये दंगे पूर्ण रूप से हिन्दुओ के विरुद्ध सुनियोजित दंगे थे। इस समय हेदराबाद के सांसद और आम आदमी पार्टी; मौलाना हसरत मोहानी, फकीर और कुछ अन्य मौलानाओं रूप मे है। और आज की तथाकथित मीडिया!! गांधी! के रूप मे है। अब ये भारत के हिन्दुयों पर है के वो जागते है और इस्लामिक आक्रांताओ का विरोध करते है या फिर से एक बार कोई दूसरा हिन्दुयों का नरसंहार देखते है। और दिल्ली दंगा इसकी सिर्फ एक शुरुआत भर है।
धन्यवाद
मनोज