विश्व स्तर पर जब से Covid-19 महामारी फैली है जीवन मानो थम सा गया है। ऐसा ही कुछ हमारे देश भारत का भी है। कहीं हम चिकित्सा की कठिनाई से झुँझ रहे हैं तो कहीं भुखमरी से बचने के लिए। कही हम अर्थव्यवस्था के धराशाही होने से घबराए हैं तो कहीं प्रवासी मजदूर के हाल को देख कर आंसू बहा रहे हैं।
केंद्र और राज्य प्रशासन हर हाल में लोगो की मदद में लगा है। जरूरत के समान से लेकर कई सुविधा सामग्री तक हर चीज़ के लिए प्रशासन ने यथा सम्भव व्यवस्था की।
जब मार्च अप्रिल में वैश्विक महामारी से भारत को सबसे अधिक प्रभावित देश होने का अनुमान और कई बुद्दिजीवी शोधकर्ताओँ द्वारा भारत में महामारी की अनुमानित दशा दर्शायी तो मानो पैरों तले जमीन खिसक गई। पर वो भारतीय प्रशासन था जिसने उस रिपोर्ट को देख कर भी अपना हौसला नहीं हारा। वो भारत की चिकित्सा थी जो हर हाल में उस अनुमान को गलत साबित करने के लिए तैयार थी। वो राज्य सरकारे ही थी जो हर गली में आपका संबल बनी हुई थी। पर भारत सरकार और प्रशासन का संबल कौन था। हम ही थे क्योंकि इन्हें हम ही चुन कर वहा भेजा था।
परमात्मा के आशिर्वाद से जीवन जीने के जल, वायु, और भोजन सबसे महत्वपूर्ण है। सरकार/प्रशासन की जिम्मेदारी सिर्फ भोजन पर थी और हर सरकार और प्रशासन ने इसे मेरे हिसाब से इसे बहुत खूब तरह से निभाया। कोरोना के आंकड़े सुधरने लगे। मृत्यु के संख्या कम होने लगी और रिकवरी रेट विश्व मे सबसे बेहतरीन होते दिखा।
फिर अचानक से प्रवासी मजदूरों के आवागमन पर हलचल होने लगी। मजदूर भाई को ये विचार परेशान करने लगा कि जहाँ हम है वहाँ इस तरह गुजारा ज्यादा दिन संभव नहीं, अतः फिर गाँव की और प्रस्थान करने की मुहिम शुरू हुए। हर सरकार प्रशासन ने जो मदद जिस तरह मिले उस पर विचार शुरू किया। पर यहाँ राज्य और केंद्र सरकार, प्रशासन से चूक होती नजर आयी। 2 महीने से देश चुपचाप लगभग अच्छे से चल रहा था। सब सुविधाएं उपलब्ध हो रही थी। समाज और समाजिक संस्थाओं ने बढ़ चढ़ कर सरकार का साथ दिया। फिर ये चूक कैसे? दोषी किसको करार दिया जाए?
क्या गंदी राजनीति के कारण ये सब हो रहा है। मेरा ऐसा मानना है ही इसका सीधा कारण हम लोगों का खाली पन और मीडिया का इस विषय पर पूर्ण तरह प्रसारण। जो सरकार/ प्रशासन हर आदमी में घर पर खाना पहुँचा पाई बिना मीडिया की मदद से वो उन्हें घर क्यों नही।क्या सिस्टम पूरी तरह फैल हो गया। नहीं, सरकार और प्रशासन का ध्यान बस एक तरफ के मीडिया के नकारात्मक विचार के खिलाफ लड़ने में लग गया जो इतने दिन से देशसेवा में लगा था। कभी मीडिया ने ये आंकड़ा पेश किया सरकार कितने लोगों को रेल से पहुँचापाई।बताया क्यों नहीं, क्योंकि पैदल यात्री से जाने वालों का आँकड़ा, रेल और सरकारी बस से जाने वालों का आंकड़ा बहुत कम है , पर इससे सेंटीमेंट जरूर बनता है।
उत्तर प्रदेश के आधिकारिक आँकड़ों कहते हैं कि लगभग ६ लाख लोग श्रमिक रेल चलने से पहले lockdown में ही सरकारी मदद से आये। इसी तरह तेलंगाना ने प्रवासी श्रमिकों का ख्याल रखते हुए १५% किराया भी वहन किया। पंजाब और Haryana का भी कुछ इसी तरह उदाहरण हैं।अप्रैल में राजस्थान और UP में विरोधी सरकारें होते हुए भी एक दूसरे में सामंजस्य से १२००० छात्रों की घर वापसी हुई। रोज़ लगभग ३०० श्रमिक रेलें चल रही हैं।
कोई भी सरकार हो किसी भी राज्य की, केंद्र की पर आज आप जब घर मे बेठ कर चाय के साथ न्यूज़ पढ़ रहे है ये व्यवस्था उसी सरकार और प्रशासन के देंन है जिसे हासिये पर लिया गया।
किसी मीडिया ने किसी BDO, तहसीलदार, मजिस्ट्रेट, कलेक्टर की तरफ ध्यान दिया। हज़ारो शिक्षक इस कठिनाई ने प्रशासन का साथ जिम्मेदारी से खड़े है, पर मीडिया के सवालों से दूर। पर मीडिया ने कभी इसे प्रमुखता से नही दिखाया। ये इनका काम भी नही है तो भी ये कर रहे है पिछले 60 दिन से लगातार।
नकारात्मक विचार का प्रचार इतना होने लगा कि सरकार/ प्रशासन सब मीडिया में घरे में आने लगे अपने बने बनाए प्लान को छोड़ मीडिया के दिखाई खबरों की ध्यान देने लगे।
इसके नतीजे अब सामने आने लगे जब 23 दिन में दुगने पहुँचे केसेस अब फिर 16 की तरफ आ पहुँचे। लोग ये जरूर बोल सकते है कि ये प्रवासी मजदुर के पलायन से हुआ। पर सरकार/प्रशासन ने कितने को सुरक्षित घर पहुँचाया वो आंकड़ा मीडिया ने आज तक नहीं दिखाया। क्योंकि उससे ये बीके हुए नजर आएंगे हम घर में बैठ कर चाय पीने वालों को। विचार कीजियेगा हम घर में रह कर सुरक्षित है और इस नकारात्मक विचार को बढ़ावा दे रहे है तो चाहे लघु परिवार के रूप में हम भले ही जीत गए है पर राष्ट्र रूपी परिवार के नाम पर हारते नजर आ रहे है।