विगत कुछ वर्षों से अचानक सुरक्षा बलों पर भीड़ द्वारा हमलों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गयी है, कहीं कोई भी घटना होती सुरक्षा बल के लोग भीड़ का शिकार बन जा रहे हैं। इस प्रकार की घटना पहले केवल कश्मीर और घाटी में देखी जाती थी लेकिन अब ऐसी घटना पूरे देश में समान्य हो चुकी है।
क्या कभी हमने इसका कारण जानने की कोशिश की? यदि आप किस बुद्धिजीवी से इस मुद्दे पर बात करेंगे तो वो शायद कहे कि देश में पुलिस की खराब छवि, लोगों का उनके प्रति गुस्सा और पुलिस सुधार न होना इसका मुख्य कारण है, लेकिन क्या ये समस्या आज की हैं क्या पुलिस की छवि विगत कुछ वर्षों में ही खराब हुई? नहीं, क्या पुलिस के प्रति लोगों का गुस्सा आज ही बढ़ा? शायद नहीं, तो फिर अचानक ये हमले कैसे होने लगे?
यदि आप मुझसे इसका कारण पूछेंगे तो मैं इसके पीछे केवल दो-तीन कारण मानता हूँ एक सोशल मीडिया का अनियंत्रित प्रयोग और दूसरा 2011-12 में हुआ अन्ना आंदोलन, तीसरा भारतीय मीडिया की गैर जिम्मेदार रिपोर्टिग। शायद आप पहली बात से सहमत हो कि सोशल मीडिया के अनियंत्रित प्रयोग ने अफवाहों को फैलाने, भीड़ को इकट्ठा करने, लोगों को पुलिस प्रशासन के विरुद्ध भड़काने में योगदान दिया और इसका परिणाम पुलिस पर हमले के रूप में कहीं न कहीं दिखता हैं लेकिन अन्ना आंदोलन के तर्क से आप सहमत न हो लेकिन यह सत्य है।
मैं अन्ना आंदोलन की आलोचना नहीं कर रहा इस आंदोलन ने भारत को एक नयी दिशा दी, लोगों को अलग दिशा में सोचने समझने को प्रेरित किया लेकिन जिस प्रकार समुद्र मंथन से केवल अमृत ही नहीं बल्कि विष भी निकला था उसी प्रकार अन्ना आंदोलन ने कुछ सकारात्मक परिणाम दिए तो कुछ नकारात्मक। सकारत्मक परिणामों से तो आप भली भात परिचित है मैं उसकी यहाँ चर्चा नहीं करूंगा और न ही यहाँ आवश्यक हैं।
अब बात करते नकारात्मक परिणाम और उसका पुलिस पर हमले से सम्बंध पर। अन्ना आंदोलन ने लोगों के अंदर एक आत्मविश्वास या कहे कि अतिआत्मविश्वास लेते आया जिसके कारण कुछ लोग खुद को कानून से उपर समझने लगे और बात बात पर कानून को चुनौती देने लगे, कानून को चुनौती देने वालों का मीडिया के एक वर्ग द्वार निजी स्वार्थ के लिए महिमामंडन करने उन्हें बार बार नैशनल टीवी पर देखने से समाज के एक वर्ग में गलत संदेश जाने लगा और समाज के कुछ लोग अपने आप को उन लोगों की तरह समझने लगे जो कानून को चुनौती दे रहे थे और कोशिश करने लगे कि हम भी कानून को चुनौती देकर उनकी तरह नैशनल हीरो बन सकते हैं चूंकि इस वर्ग के पास उतनी बौद्धिक क्षमता और पोलिटिकल सपोर्ट नहीं था जिससे वो सफल नहीं हो पा रहें थे लेकिन अन्ना आंदोलन से प्राप्त आत्मविश्वास उनके पास जरूर था जिससे इनके अंदर धीरे धीरे कुंठा का भाव आने लगा और इसी भाव ने उन्हें पुलिस बल पर हमला करने को प्रेरित किया।
इसके अतिरिक्त कश्मीर में सुरक्षा बलों पर हो रहे पत्थर बाजी की घटना को बिना किसी दिशा निर्देश के टीवी पर प्रसारित करने की आदत ने इस कुंठित वर्ग को अपनी कुंठा को दूर करने के लिए पत्थर बाजी करने का रास्ता दिखाया।
संक्षेप में कहें तो अन्ना आंदोलन के बाद सरकार विरोधी बात करने वालों को अभूतपूर्व रूप से महिमामंडित करने की प्रवृत्ति ने असफल लोगों के अंदर कुंठा उत्पन्न की और यही कुंठा आज देश के अंदर बात बात पर पुलिस पर हमले के रूप में सामने आ रही हैं।