Saturday, November 2, 2024
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प्रजातंत्र और अराजकता

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प्रजातंत्र की परिकल्पना एक सभ्य एवं अनुशासित समाज को ध्यान में रख कर किया गया होगा। उस समाज के सामाजिक प्राणी एक दूसरे की चिंता करते होगें। “राष्ट्र प्रथम” ही उनकी विचारधारा रही होगी।

लेकिन इसी व्यवस्था को अगर धूर्तो/मौकापरस्त/जाहिलों/कबीला-जीवों की नगरी में लागु कर दिया जाए, तो फिर ये उसी समाज के लिए एक विनाशकारी व्यवस्था में परिवर्तित हो जायेगी। ईरान की इस्लामिक क्रांति से अच्छा उदाहरण और भला क्या हो सकता है- “एक हस्ते-खेलते-खाते देश को लील गया

कहने का तात्पर्य है की, प्रजातांत्रिक व्यवस्था के दो मुख्य स्तम्भ हैं, कर्तव्य एवं अधिकार और यह व्यवस्था सुचारु रूप से चलती रहे ,इसके लिए इन दोनों स्तम्भों के बीच संतुलन होना बेहद आवश्यक है।

यह बात जगजाहिर है की,आसुरी प्रवृति के लोग अपने अधिकारों का अनैतिक एवं अत्यधिक दोहन एवं कर्तव्यों की अवेहलना करते हैं।
अपने देश में ऐसा ही कुछ हो रहा है। संतुलन बिगड़ रहा है। “प्रजातंत्र ही प्रजातंत्र की राह में बाधा खड़ी कर रहा है”

Strong Intervention” अर्थात “कड़े निर्णय” लेने समय आ गया है। अन्यथा भारत को ईरान बनते देर न लगेगा। और ध्यान रहे …… हमें कोई शरण भी न देगा।

!!राम राम !!

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