हाल ही में रिपब्लिक भारत के अर्नब गोस्वामी ने महाराष्ट्र के पालघर में हुई साधुओं की निर्मम हत्या के विषय में सोनिया गांधी से कुछ सवाल पूछ लिए। फिर क्या था पूरे कांग्रेस समाज में हाहाकार मच गया। लोग आक्रोशित हो उठे। उसी रात अर्नब गोस्वामी और उनकी पत्नी के ऊपर कुछ गुंडों ने हमले का प्रयास किया। जैसा कि अर्नब ने अपने वीडियो में बताया कि वो गुंडे युवा कांग्रेस के सदस्य हैं। अर्नब के विरुद्ध सैकड़ों एफआईआर दर्ज करा दी गईं। किसलिए? सिर्फ इसलिए कि अर्नब ने स्वघोषित राजमाता से कुछ तीखे सवाल पूछ लिए। अर्नब ने सोनिया गांधी का पुराना नाम ले लिया। हालाँकि अर्नब ने किसी भी प्रकार की अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं किया तो एफआईआर क्यों? क्या किसी का पुराना नाम लेना अपराध है? यदि अपराध है तो हर उस कांग्रेसी को दण्ड मिलना चाहिए जो महंत श्री योगी आदित्यनाथ को उनके पूर्वाश्रम के नाम से पुकारता है।
किसे दंड मिलना चाहिए और किसे नहीं ये तय करना मेरा काम नहीं न्यायपालिका का है और न ही मैं इस लेख में इस बात की चर्चा करूँगा। लेकिन कांग्रेस के समर्थकों से मेरे कुछ प्रश्न अवश्य हैं। उन्हीं प्रश्नों को लेकर मैं ये लेख लिख रहा हूँ। हो सकता है कोई कांग्रेसी मेरे इन प्रश्नों का उत्तर दे पाए।
शुरुआत अर्नब गोस्वामी के साथ हुई घटना से ही करते हैं। आखिर अर्नब के प्रश्नों पर इतना क्रोध क्यों उत्पन्न हुआ? क्या सोनिया गांधी से प्रश्न पूछने का अधिकार किसी को नहीं है? एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र में कोई भी सर्वोच्च नहीं है। मैं कांग्रेस के समर्थकों से पूछना चाहूंगा कि जब आपके बड़े नेता प्रधानमंत्री को गालियां दे रहे थे, स्मृति ईरानी के विषय में अपशब्द बोल रहे थे, तब आपकी मर्यादा कहाँ थी? आज एक पत्रकार कुछ तीखे सवाल पूछ रहा है, वो भी उस राज्य में घटी घटना पर जहाँ कांग्रेस शासन में है तो इसमें गलत क्या है? क्या सोनिया गांधी प्रश्न पूछे जाने योग्य नहीं है? यदि नहीं हैं तो राजनीति से संन्यास क्यों नहीं ले लेतीं क्योंकि यदि सार्वजनिक जीवन में रहना है तो प्रश्नों के उत्तर तो देने होंगे।
कई कांग्रेसी मित्र आँख मूँद कर कांग्रेस की प्रत्येक नीति पर भरोसा करते हैं और भक्त की संज्ञा भाजपा समर्थकों को देते हैं। ऐसा दोगलापन क्यों?
हालाँकि भक्त शब्द महान अर्थों वाला है किन्तु कांग्रेसी भक्त कहलाने के लायक नहीं हैं। भक्त की एक मर्यादा होती है। हमारा समाज बंटा हुआ है। जिसमें एक ओर भाजपा समर्थक हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस के पिछलग्गू। यदि सोशल मीडिया पर दोनों की उपस्थिति पर शोध किया जाए तो एक विशेष बात सामने आती है। भाजपा समर्थक कभी भी अंध विश्वास नहीं करते। कई भाजपा समर्थकों को नवीन पटनायक, केसीआर और दूसरे अन्य मुख्यमंत्रियों की प्रशंसा करते देखा जा सकता है जो अपने राज्यों में कुछ बेहतर कार्य कर रहे हैं। जबकि कांग्रेस के साथ ऐसा नहीं है। उसके समर्थक मात्र विरोध करना जानते हैं। विरोध भी ऐसा कि भाजपा विरोध करते करते देश विरोधी भी हो जाते हैं।
जब भारतीय सेना ने पकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक की तब पूरा भारतवर्ष गौरव का अनुभव कर रहा था किन्तु कुछ कांग्रेसी नेता इस बात का सबूत मांग रहे थे। आश्चर्य तो तब हुआ जब आम कांग्रेसी समर्थक भी अपने अपने स्तर पर सबूत मांगने लगे। अरे भाई नेताओं की तो मजबूरी है, उनका अपना वोट बैंक है और अपने निजी फायदे हैं लेकिन क्या अपनी पार्टी के समर्थन में आप इतना गिर सकते हैं कि अपनी जान की बाज़ी लगाने वाले सैनिकों से सबूत मांगने लग जाएं और सिर्फ इसलिए कि यह सर्जिकल स्ट्राइक नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में हुई।
भगवान् श्री राम तो भारतवर्ष के आराध्य हैं इस सम्पूर्ण राष्ट्र के गौरव हैं। मैं प्रश्न करना चाहूँगा कांग्रेस के समर्थकों से कि क्या आपका खून नहीं खौला जब कांग्रेस ने उच्चतम न्यायलय में यह एफिडेविट दाखिल किया कि प्रभु श्री राम के अस्तित्व का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। तब तो भाजपा भी सत्ता से दूर थी। श्री राम तो भाजपा और कांग्रेस से ऊपर हैं न? क्या आपको अपने कांग्रेस समर्थक कहलाने पर लज्जा का अनुभव नहीं हुआ जब बड़े बड़े कांग्रेसी नेता श्री राम मंदिर के विरोध में वकालत कर रहे थे। आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि आप श्री राम के द्रोहियों का आँख मूंदकर अनुसरण करते हैं। यह कितने अपमान का विषय है कि कुंठा में आकर आज भी कई कांग्रेस समर्थक कहते हैं कि हम राम मंदिर का क्या करेंगे। हमें तो रोजगार चाहिए। अरे आप किसे धोखा दे रहे हैं? भाजपा समर्थकों को नीचा दिखने के लिए आप राष्ट्र के गौरव श्री राम की अवहेलना कर रहे हैं। अर्थव्यवस्था और रोजगार तो हम मिलकर बना लेंगे लेकिन क्या श्री राम से इनकी प्राथमिकता तय करना उचित है भला? जवाब दीजिए।
हो सकता है कि आप याद न करना चाहें लेकिन मैं आपको याद दिलाता हूँ 26 नवम्बर का वो दिन जब भारतवर्ष की आर्थिक राजधानी मुम्बई में कट्टर मजहबी आतंकी खून की होली खेल रहे थे। कितने ही निर्दोषों की हत्या कर दी गई थी। आपको पता है कि इसी कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाने वाले दिग्विजय सिंह जी उस पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में प्रमुख रूप से शामिल थे जिसमे 26/11 के भीषण नरसंहार को आरएसएस की साजिश बताया गया था। यही वो कांग्रेस है जिसने हिन्दू आतंकवाद की परिभाषा गढ़ी जिसका उपयोग विश्व भर में हिंदुओं को बदनाम करने के लिए किया गया।
कांग्रेस ने हमेशा से हिंदुओं के साथ अन्याय किया। जब कांग्रेस सत्ता में थी तब उसने तुष्टिकरण और जातिवाद की राजनीति की और जब आज सत्ता से बाहर है तब भी वही कर रही है। तुष्टिकरण कांग्रेस के खून में है। मुसलमानों को अपना वोट बैंक बनाए रखने के लिए कांग्रेस कुछ भी कर सकती है। कांग्रेस के समर्थक संभवतः भूल गए होंगे कि बाटला हाउस में आतंकियों के मारे जाने पर इन्ही सोनिया गांधी ने आंसू बहाए थे। क्यों भूल जाते हैं आप ये सब? यही प्रश्न तो अर्नब ने पूछा लेकिन कांग्रेस को बुरा लग गया।
कांग्रेस के तमाम समर्थकों से मेरा प्रश्न है कि क्या आप भूल गए कि कैसे दिन दहाड़े सिखों का नरसंहार किया गया और ये नरसंहार करने वाले कौन थे। क्या आप आपात काल के वो दिन भी भूल गए जब रातो रात देश का संविधान कुचल दिया गया था और कांग्रेस या इंदिरा गांधी का विरोध करने वाला स्वर दबा दिया जाता था। कांग्रेस के समर्थकों को तो ये भी नहीं याद होगा कि भोपाल गैस त्रासदी जैसी भयानक मानव निर्मित आपदा का आरोपी रातों रात देश से बाहर भगा दिया गया था। कांग्रेस के समर्थकों के स्मृति पटल से वो सभी घोटाले गायब हो गए होंगे जब कांग्रेस के 2004 से 2014 के दस वर्ष के शासन काल में हुए और जब जनता के द्वारा कर के रूप में दिए गए योगदान को निजी स्वार्थ के लिए उपयोग में लाया गया।
किस कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं आप और क्यों कर रहे हैं? आप सब कुछ भूल सकते हैं लेकिन यह भारतवर्ष नहीं भूलता। इतिहास के सबसे पुराने राजनैतिक दल की आज ये हालत ये हो गई है कि कई राज्यों में कांग्रेस क्षेत्रीय दलों से भी पीछे तीसरे या चौथे स्थान पर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। 2014 और 2019 में जो हुआ उसके बाद भी कांग्रेस और उसके समर्थकों ने हार स्वीकार नहीं की। उन्होंने चुनाव आयोग और ईवीएम को दोष देने का नया चलन प्रारम्भ किया। लगातार हारने के बाद भी जनमत का अपमान करना कांग्रेस का स्वभाव बनता गया। मुझे कांग्रेस के समर्थकों पर दया आती है क्योंकि ये विचारशून्य हो चुके हैं। भाजपा के समर्थक हार को स्वीकार करना बेहतर तरीके से जानते हैं, साथ ही अच्छे काम की सराहना करना भी। किन्तु कांग्रेस के समर्थकों की विचारहीनता की पराकाष्ठा देखिए कि जो भी कार्य राष्ट्र हित में हैं उनका विरोध भी कांग्रेस के समर्थक बड़े ही गौरव के साथ करते हैं।
अंत में मैं कांग्रेस समर्थकों से यही प्रार्थना करता हूँ कि आपको नहीं कहा जा रहा है कि आप भाजपा के समर्थक बनिए लेकिन कांग्रेस के समर्थन में राष्ट्र का विरोधी भी हो जाना कहाँ तक उचित है। आवश्यक नहीं है कि हर बार एक राजनैतिक पक्ष लिया ही जाए। जब आपको भाजपा की विचारधारा नहीं अच्छी लगती तो कोई आवश्यक नहीं कि आप उसका गुणगान करें किन्तु कांग्रेस आपके समर्थन के लायक नहीं। कांग्रेस ने तो विपक्ष धर्म का पालन भी सच्चे मन से नहीं किया है। कभी कभार राजनीति में तटस्थ रहना भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
भाजपा, कांग्रेस, आप और बसपा ये सब बाद में हैं पहले ये सनातन हिन्दू धर्म है, इस भारतवर्ष का अस्तित्व है। इनकी रक्षा करने वाले का साथ दीजिए, इनके विकास की बात करने वाले का साथ दीजिए। जो पार्टी आज तक अपना अध्यक्ष नहीं बदल सकी वह भारतवर्ष के भाग्य को क्या बदल पाएगी और यह भी संभव है कि आने वाले समय में कांग्रेस का अस्तित्व ही न रहे।