Thursday, October 3, 2024
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एक बारिश का मौसम

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“कोई रोने तक को फोन नहीं उठा रहा इसलिए तुमको मिला लिए”

दोपहर तीन के आस पास वीडियो बनाने के लिए सेट अप कर रहा था, अचानक मेघ आए सब काला हुआ और सबसे पहले बिजली भाग खड़ी हुई। अंधेरे में बैठा ध्यान मेसेजस की ओर चला गया कुछ अच्छे लिखे थे लोगों ने तो कुछ मेरी मरी मां को संबोधित करके अपने संस्कारों का परिचय दे रहे थे। किसी ने लिखा था कुरान को दोबारा हाथ लगाया तो हाथ काट दूंगा तो किसी ने लिखा भईया आप जो कार्य कर रहे हैं करते रहें आप जैसे युवाओं की आवश्यकता है।

दिमाग है कि मानता नहीं और मौसम मुझे विवश कर देता है लिखने के लिए ये शब्द ही मेरे तले हुए प्याज के पकोड़े हैं, हरे धनिए की गांव में सिल पर बनी हुई चटनी के साथ परोसे हुए।

मैं भाषा के समुन्द्र में डूब कर शब्दों के मोती ढूंढ ही रहा था कि अचानक से पड़ोसी ने कहा अरे भाई एक हेल्प करदो यार हमाई घर वाली बना नहीं रही है तुम तो वो सविग्गी से फोन से भी मंगाते हो हम से कुछ रुपए ज्यादा लेकर मंगा दो न, मैंने सोचा ठीक है देखता हूं बारिश में सर्विस दे रहे हैं या नहीं।

तभी एक फोन आया गांव से, आवाज को पहचान नहीं पाया कौन सा चाचा कौन सा ताऊ कौन सा फूफा था क्यूंकि आवाज जैसे टूट गई थी उसकी। टूटते हुए शब्दों को जोड़कर उसने कहा प्रवीण बेटा सत्यानाश हो गया सारी खेती बैठ गई, कोई दर्द बांटने फोन तक नहीं उठा रहा इसलिए तुमको मिला लिए, पर मैं तो पकोडों की सोच रहा था, मैं तो भूल गया था मेरे कुछ अपने मिट्टी में रहते हैं मिट्टी के सहारे जीते हैं और मेरी अक्ल पर मिट्टी पड़ी थी कि फोन करके पूछ भी न सका किसका कितना नुकसान हुआ है।

कौनसा मैं फसल लहला देता कौनसा उनके घरों में अनाज की बारिश होती मेरे पूछने से या रोती सी शक्ल बनाने से पर “कोई रोने तक को फोन नहीं उठा रहा इसलिए तुमको मिला लिए” ने तोड़कर रख दिया कुछ पलों के लिए।

ये भी उन्हीं लोगों में से एक हैं जो हर नेता के हर भाषण में होते हैं हर योजना, विवेचना और हर कार्य में इनकी फोटो ब्रांड एंबेसडर की तरह लगाई जाती है, बेचारे ब्रांड एंबेसडर का कारोबार, घरवार और परिवार सब उसी मिट्टी से चलता है।

कितनी चंचल मिट्टी है ये अपनी मर्जी से रोटी देती है जब मन करे खुद ही लील जाती है फिर पानी में भीेगी हुई ऐसे पड़ी रहती है जैसे कोई युवती किसी कटुवे के प्रेम में पड़ती है और फिर अपनी पहचान खोकर पछता रही होती है। वैसे ही ये धरती पानी के प्रेम में पड़कर यौवन खोल देती है फिर अपने बच्चों को रोता बिलखता देख तड़प उठती है पर काम तो तमाम हो ही चुका है। जैसे युवती अपनी पहचान और स्वतंत्रता खोकर दासता का जीवन जीती है वैसे ही धरती के बेटे कुछ बची कुची फसल से रोटियां बनाकर गुजरा करते हैं, उनके अपने बच्चों को किए वादे कि इस बार फसल अच्छी होने पर तुमको रेंजर सायकिल दिलाएंगे या लैपटॉप दिलाएंगे एक साल आगे बढ़ जाते हैं।

फोन करने वाले को बोल दिए हैं जब तक हमारी थाली भरी है आप की खाली नहीं होने देंगे और हम लोग रोने वालों में से नहीं है हम लड़ते हैं बस लड़ते रहते हैं सारा जीवन लड़ते हैं यूं ही लड़ते रहेंगे क्यूंकि हमें एक ही धर्म दिया है विधाता ने लड़ाई, नियति से पटक खाकर फिर खड़े होना और अपनी टूटी हालत दिखाकर उसे चिढाना देख हम खड़े हैं टूटकर भी खड़े हैं और खड़े रहेंगे…. हम खड़े हैं हम लड़ रहे हैं और लड़ते रहेंगे।

प्रवीण लड़ाकू है हार तो तभी हो सकती है जब बैटरी से सेल खतम हो जाएं… हार महाराणा को दिल में सजाने वाले ने कभी सुनी नहीं बस लड़ाई जान रहने तक लड़ाई नियति से परिस्थिति से तंत्र से ये लड़ाई मेरी है और में ही लड़ूंगा …..….. लड़ाई जारी रहेगी…

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