जब-जब होय धरम की हानि।
बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।।
तब-तब प्रभु धरि विविध शरीरा।
हरहिं दयानिधि सज्जन पीरा।।
क्षात्र धर्म को भूलकर, अपने प्रभु के जन्म स्थान पर पूजागृह बनाने की मांग करने वाले भक्तों पर गोलियां चलाईं गईं। जब भारत में उस धर्म के नामो-निशान लगभग मिटने को थे। लगभग सभी महत्वपूर्ण और प्रमाणिक पुस्तकों और दस्तावेजों को जलाया जा चुका था। भौतिक साक्ष्यों, अभिलेखों और मंदिरों का स्वरूप परिवर्तित किया जा चुका था। भक्तों में निराशा का सागर था। तब उस काल में प्रभु ने कई-कई शरीर धारण किए, लोगों में उम्मीद जगाई। वे लोग थे महाकवि तुलसीदास, महाकवि सूरदास, संत शिरोमणि कबीरदास, माता मीराबाई, प्रभु रैदास, महान संत गुरुनानक देव और उनके नौ अवतार।
फिर जब अंग्रेज आए तब उन्होंने भी नए षड्यंत्रों के द्वारा इस सनातन संस्कृति को अपार क्षति पहुंचाई और तब पुनः प्रभु ने अनेकानेक शरीर धारण किए और लोगों को सांत्वना दी, धीरज बंधाया और उनके बिसरे धर्मों तक उनको पहुंचाया। वो महान लोग थे— महर्षि दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, महाकवि जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और रामधारी सिंह दिनकर।
फिर जब देश आजाद हुआ तब छद्म वामपंथी सेक्यूलर वादियों ने इतिहास को बिसराकर एक नया असत्य इतिहास लिखा और उस इतिहास में इस देश के वास्तविक महानायकों को जमकर नजरअंदाज किया। अपनी संस्कृति को परसंस्कृति से बचाने के लिए प्रयासरत लोगों का कत्लेआम किया और उनकी आवाज दबा दी गई। एक बार फिर भारतीय संस्कृति, भारत में ही खतरे में थी। एक साज़िश की जा रही थी भारतीय धर्मों को आपस में लड़ाने की और देश को विभाजित करने की। प्रभु ने पुनः शरीर धारण किए और देश की संस्कृति को न मानना दुनिया में प्रतिष्ठित किया बल्कि उसे दुनिया में गौरवशाली बनाया। ऐसे आधुनिक लोग थे— भगवान श्री रजनीश, पंडित श्री राम शर्मा आचार्य एवं अन्य मनीषी जिनके नाम मुझे इस समय याद नहीं।
प्रभु ने अपने भक्त तुलसीदास जी की इन चौपाईयों को सच करते हुए अनंत शरीर धारण किए जिन्होंने आज प्रत्येक भारतवासी को गौरवमय संस्कृति और अपने देश के वास्तविक पिता को समझने और उनको उचित स्थान देने के महती कार्य का शुभ अवसर दिया।
उन अनेक ब्राह्मणों और साधु-संतों को भी नमन जिन्होंने कट्टर और पाखंडी होने के अनेक लांछनों को सहकर भी बची-खुची सांस्कृतिक पुस्तकों का निरंतर अभ्यास जारी रखा और उन दलितों, गरीबों और आदिवासियों को भी नमन जिन्होंने अनेक परेशानियां उठाने के बावजूद अपनी जीवनशैली से कभी संस्कृति को न हटने दिया।
वह सब जिन्होंने प्रभु श्री राम के लिए संघर्ष किया और वह जिन्होंने इस पर फैसला दिया। वह सब के सब प्रभु के ही अंश हैं या फिर प्रभु ही हैं। प्रमाण गोस्वामीजी के शब्दों में—
सियाराममय सब जग जानी।
करहु प्रणाम जोर जुग पानी।।
प्रेम से बोलो जय श्री राम।