नरेंद्र दामोदर दास मोदी – ये केवल एक नाम नहीं अपितु एक सोच है। एक ऐसी सोच जिसने निराशा के भाव से गुज़र रहे राष्ट्र में आशाओं व आकांक्षाओं का प्रसार किया। कई वर्षों से चली आ रही जाति, धर्म, क्षेत्र, लिंग भेद, द्वेष जैसी तुच्छ राजनीति के समीकरण समाप्त किये। विकास व जन सामान्य के अधिकारों को चुनावी मुद्दा बनाया। जो राजनीतिक दल भ्रम की राजनीति में विश्वास रखते थे। उन्हें भी विकास के मुद्दों की बात करने को विवश होना पड़ा। नरेंद्र मोदी जी ने राजनीति को नई दिशा दी व बीजेपी आज अपने स्वर्णिम समय में है।
इस प्रचण्ड विजय के पीछे केवल और केवल नरेंद्र मोदी जी दूरदर्शी सोच है जिसने निराश नागरिकों को उज्ज्वल भविष्य के स्वप्न्न दिखाए हैं। इन स्वप्नों में किसी को अच्छी सड़कें, उत्तम शिक्षा, स्वच्छता, अच्छी चिकित्सा, पर्यावरण की सुरक्षा, रक्षा के क्षेत्र में भारत का सशक्त होना आदि शामिल है। किन्तु जब किसी को स्वप्न्न दिखाए जाए तो विजय प्राप्ति के बाद उनको पूरा करने का दायित्व बढ़ जाता है।
2014 की मोदी जी की विजय इन्हीं सपनों के साकार होने की आशाओं की विजय थी। जिसके प्रति नरेंद्र मोदी जी की प्रतिबद्धता उनके कर्मों व नीतियों में स्पष्ट झलकती है।
नागरिकों का मोदी जी में दृढ़ विश्वास 2019 में प्रचण्ड बहुमत के रूप में मिला। पर क्या ये प्रचण्ड बहुमत केवल विकास कार्यों, सुख सुविधाओं वाले उज्ज्वल भविष्य तक ही सीमित है या इसके और भी मायने हैं?
विकास के स्वप्न के साथ साथ बीजेपी का पारंपरिक बहुसंख्यक वोट जो स्वयं को पिछले कई सौ सालों से असहाय समझ रहा था। उसे उज्ज्वल भविष्य के साथ साथ अपने गौरव की पुनः स्थापना की किरण नज़र आने लगी है। जिसकी अखण्डता को जयचंदों ने स्वार्थ में खंडित किया। उसे पुनः राष्ट्र के बौद्धिक एकीकरण की राह नज़र आई है। पिछली कांग्रेस की सरकार में मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण बहुसंख्यक हमेशा उपेक्षित महसूस करते रहे। हमेशा बहुसंख्यकों को कटघरे में खड़ा किया जाता रहा। साम्प्रदायिक सौहार्द का दायित्व हमेशा बहुसंख्यकों पर डाला गया। जिसका लाभ विभाजन की राजनीति करने वाले नेता व शत्रु उठाते रहे। 2014 के बाद अचानक अवार्ड वापसी गैंग सक्रिय हुआ फिर भी बहुसंख्यक बौद्धिक प्रताड़ना सहन करते रहे और इसका उत्तर 2019 में लोकतांत्रिक तरीके से मतदान के शस्त्र का प्रयोग कर दिया। किन्तु 2019 की विजय केवल विकास के मुद्दे तक नहीं है।
विकास एक निरंतर प्रक्रिया है जिस पर नागरिकों का समान अधिकार है। मोदी जी ने शासन व्यवस्था में अभूतपूर्व परिवर्तन कर व्यवस्था को सही दिशा व तीव्र गति प्रदान की है। किंतु बहुसंख्यकों की आशाएं अपने अस्तित्व व आत्मसम्मान को लेकर भी है। जिसे बार बार पूर्व में चोट पहुंचाई गई और आज भी प्रयास हो रहे हैं। हाल ही की घटनाएं इसका स्पष्ट उदहारण कि कैसे बहुसंख्यकों को दोषी ठहराए जाने का प्रयास किया जा रहा है। घटना होते ही रुदाली गैंग बिना जांच नतीजों के अपने घड़ियाली आसूँ बहाने लगता है। चीख चीख कर तुरंत साम्प्रदायिकता की रोटी सेंकने लगता है। 2024 का चुनाव मोदी जी के लिये अग्निपरीक्षा की तरह होगा।
मोदी जी राष्ट्र नव निर्माण के लिए समर्पित हैं जिसे सारा विश्व मानने लगा है। किंतु राम मंदिर हो, धारा 370, समान नागरिक सहिंता, जनसंख्या नियंत्रण जैसे ज्वलंत मुद्दे जिन पर बीजेपी आज तक बहुसंख्यकों की भावनाओं को साध कर चुनावी रण में कूदती रही। यदि इस कार्यकाल में मोदी जी ने इनमें कोई प्रगति न की तो 2024 में यही बहुसंख्यक निराश होकर प्रश्न करने की स्थिति में होंगे और मोदी जी को इनका उत्तर देना होगा।