“भाव भागवान छे” गुजरातियों की ये कहावत शेयर बाजार के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसका मूल यह है की शेयर बाजार पहले ही समझ जाता है की आगे का रुख कैसा रहने वाला है, और बाजार का भाव ही सर्वोपरि है।
मोदी 2014 में जब सत्ता में आये थे तब शेयर बाजार का सूचकांक निफ़्टी 7203 के भाव पर था और अब इसी सूचकांक का भाव 11602 (11अप्रिल) के भाव पर है यानि की 4372 अंकों का उछाल मोदी के कार्यकाल में आया है। निफ़्टी ने अपना सर्वोच्या स्तर भी मोदी जी के कार्यकाल में ही छुआ है।
लोकसभा चुनाव का प्रथम चरण समाप्त हो चूका है और बाजार अपने उच्चातम स्तर के करीब मंडरा रहा है इस तेजी को आग तब लगी जब चुनाव आयोग ने लोकसभा के चुनाव के तारीखों का एलान किया। विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा सबसे ज्यादा पैसा मार्च के महीने में ही झोंका गया है।
अब सोचने वाली बात यह है की अगर बाजार को पहले ही ये समझ आ जाता है की आगे का भविष्य क्या होने वाला है तो इस हिसाब से मोदी की जीत पक्की है।अंग्रेजी की एक कहावत है “price discounts everything” और अगर ऐसा सच में है तो ये मानना पड़ेगा की बाजार लोकसभा चुनाव में मोदी की जीत को पहले ही भुना रहा है।
अगर महागठबंधन के सरकार बनाने की जरा सी भी उम्मीद होती तो बाजार उत्तर की दिशा को कूच न कर के दक्षिण की दिशा की ओर गोते लगाता, और जिस तरीके के ‘न्याय’ की बात कांग्रेस पार्टी द्वारा की गयी है उस हिसाब से आम लोगों के साथ साथ बाजार के लिए भी यह अन्याय ही होगा, क्यूंकि इसका सीधा असर बाजार पर पड़ेगा और कुछ समय के लिए ही सही लेकिन निवेशकों को एक झटका जरूर लगेगा।
वैसे तो बाजार को इससे फर्क नहीं परता की किस पार्टी की सरकार आ रही है लेकिन इससे फर्क जरूर परता है की पूर्ण बहुमत की सरकार आ रही है या खिचड़ी सरकार।बाजार कंपनियों के द्वारा हर तीन महीने के प्रदर्शन को कंपनियों के शेयर के भाव में दर्शाता है और चाहे किसी की भी सरकार हो कंपनियां तो चलेगी और यह देश भी चलेगा, तो बाजार थोड़े समय के लिए गोते लगा सकता है लेकिन लम्बी अवधी में बाजार इन सब चीजों को तवज्जो नहीं देता।
वैसे तो इस समय के बाजार भाव को देख कर लग रहा है की मोदी जी की वापसी तय है लेकिन वक़्त की गर्भ में क्या छुपा है ये तो कोई नहीं बता सकता।मेरी तो ईश्वर से यही कामना है की बाजार को गोते लगाने की आवस्यकता न परे और यह भी मोदी जी की लोकप्रियता की तरह नई ऊंचाइयों को छूता रहे।