21 अप्रैल 2019 ईस्टर के अवसर पर श्रीलंका लगातार 8 बम धमाकों से दहल उठा। कई चर्चों और होटलों को निशाना बनाया गया था। माँस के लोथड़ों और खून की नदियों के बीच मानवता चीत्कार कर रही थी और आतंकवाद अपने घिनौने और वीभत्स चेहरे के साथ मानवता पर अट्टहास कर रहा था। कुछ ही समय पूर्व भारत के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर और न्यूजीलैण्ड के मस्जिद में भी इसी तरह की घटना को अंजाम दिया गया था। कौन हैं ये लोग? क्या है इनका उद्देश्य? क्यों ये मानवता का रक्त बहाकर खुश होते हैं? क्या ये किसी प्रकार की मानसिक विक्षिप्तता से ग्रस्त हैं? क्या कोई इनके मस्तिष्क पर कब्जा कर खूनी खेल खेल रहा है या कुछ अन्य ही कारण है? ये कुछ ज्वलंत प्रश्न हैं जिनका उत्तर ढूँढ़ना ही होगा। इन प्रश्नों का उत्तर जाने बिना इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं किया जा सकता।
श्रीलंका घटना की भयावहता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि घटना के बाद राष्ट्रपति सिरीसेना ने कहा कि मैं सदमे में हूँ। भारत के प्रधानमंत्री सहित अन्य कई दिग्गज नेताओं ने अपनी संवेदनाएँ प्रकट किया और इस कायराना हमले की भर्त्सना की।
इस प्रकार की घटनाओं का विश्लेषण करते हुए मेरा ध्यान एक विशेष ट्वीट पर गया जिसका उल्लेख करना यहाँ पर अत्यंत आवश्यक है। इस संदर्भ में ‘शांति के इमाम’ इमाम तौहिदी का ट्वीट बहुत महत्वपूर्ण है। इमाम ने एक वीडियो क्लिप ट्वीट करते हुए लिखा, “हम हर दिन चरमपंथियों को बेनकाब करने में घंटों बिताते हैं। इस वीडियो और इसकी पृष्ठभूमि पर भाषाई अवरोधों के कारण किसी का ध्यान नहीं गया। यदि यह उजागर हो जाता और अधिकारियों के ध्यान में लाया गया होता तो शायद इसे रोका जा सकता था। #श्रीलंका आतंकवादी: जो कोई भी मुसलमानों से असहमत है उसे मार दिया जाना चाहिए।”
We spend hours exposing extremists every day. This video & its background went unnoticed due to language barriers. If he was exposed & brought to the attention of the authorities, he could’ve been stopped.#SriLanka terrorist: “Anyone who disagrees with Muslims should be killed” pic.twitter.com/CVyybRPd3Y
— Imam Mohamad Tawhidi (@Imamofpeace) April 21, 2019
इन प्रश्नों का उत्तर ढूँढ़ने की दिशा में यह ट्वीट एक महत्वपूर्ण संकेत देता है। इसी संदर्भ में यहाँ पर यह चर्चा करना भी प्रासंगिक होगा कि आदिल अहमद डार, जिसने पुलवामा हमले को अंजाम दिया था, ने अपने वीडियो में यह स्वीकार किया था कि उसने सैनिकों को मारा क्योंकि गोमुत्र पीने वालों को मारने से जन्नत नसीब होती है। न्यूजीलैण्ड के हमलावर ने भी यह स्वीकार किया था कि उसने यह कदम जगह-जगह होने वाले हमलों की प्रतिक्रिया के रूप में उठाया। प्रतिक्रियात्मक रूप में भी हिंसा भले ही उचित न हो परंतु जिस कारण प्रतिक्रिया के रूप में ऐसी घृणास्पद और निंदनीय कृत्य को अंजाम दिया गया वह सोचने पर विवश करती है। हाल-फिलहाल की ये घटनाएँ या इन से पूर्व घटी घटनाओं पर विचार करने पर इनके मूल में कहीं न कहीं धार्मिक उन्माद या धर्मान्धता नजर आती है।
विचारणीय है कि यह धार्मिक उन्माद क्यों? क्या वास्तव में कोई धर्म निर्दोषों की हत्या करने की शिक्षा देता है या दे सकता है? जब तक इस प्रश्न का उत्तर खुले मन से बिना किसी पूर्वाग्रह के नहीं ढूँढ़ा जाएगा इस समस्या का समाधान खोजना असंभव है। आदिल अहमद डार को यह शिक्षा कहाँ से मिली कि गोमुत्र पीने वालों को मारने से जन्नत नसीब होगी! क्या यह नहीं पूछा जाना चाहिए? पर विडम्बना भी है और दुर्भाग्य भी कि जब-जब यह प्रश्न पूछा जाता है तब-तब विश्व का एक बड़ा बुद्धिजीवी वर्ग इन चरमपंथियों के बचाव में खड़ा हो जाता है। भारत में भी एक बड़ा तबका उदारवाद के नाम पर इन अतिवादियों के समर्थन में है। मेरी दृष्टि में यह छद्म उदारवाद है और छद्म उदारवाद इन आतंकवादियों से अधिक खतरनाक है। ऐसे ही एक छद्म उदारवादी महिला सामाजिक कार्यकर्ता हैं कविता कृष्णन।
सीपीआई(एम) से संबंधित जेएनयू की पूर्व छात्र संघ अध्यक्षा रह चुकी कविता कृष्णन के इस ट्वीट पर नजर डालने पर स्थिति स्पष्ट हो जाती है। कविता कृष्णन अपने ट्वीट में कहती हैं, “श्रीलंका में #ईस्टर पर चर्च में आतंकी हमला। हाँ – धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बहुसंख्यकों का आतंकवाद। ठीक क्राईस्टचर्च में आतंकी हमले की तरह। मालेगाँव की तरह ही, मक्का मस्जिद में प्रज्ञा और साथियों के द्वारा किया गया विस्फोट।”
Whether or not the perpetrators of #srilankablasts are from the Buddhist majority this time, the point I make remain the same –
The attacks on Churches on Easter are like the Malegaon blasts on Shab-e-baraat or Christchurch on Friday – to maximise casualties of victim community. https://t.co/lHIWT5dpQD— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) April 21, 2019
कविता कृष्णन जैसी सामाजिक कार्यकर्ता यदि बुद्धिजीवी कहलाती हैं तो ईश्वर का बहुत-बहुत धन्यवाद है कि मैं बुद्धिजीवी नहीं हूँ। श्रीलंका में कौन हैं बहुसंख्यक? 70% जनसंख्या के साथ बौद्ध वहाँ बहुसंख्यक हैं। अब जबकि आईएसआईएस ने इस हमले की जिम्मेदारी ले ली है कविता कृष्णन को शांतिप्रिय बौद्धों से माफी माँगनी चाहिए। परंतु इस बुद्धिजीवी सामाजिक कार्यकर्ता में इतनी भी सज्जनता भी नहीं बची है, माफी माँगना तो दूर उसने इस ट्वीट को डिलीट तक नहीं किया है। यह है आज के उदारवाद का पाखंड और इसी पाखंडपूर्ण उदारवाद को ही मैं छद्म उदारवाद कहता हूँ।
बजाए इसके बुद्धिजीवी वर्ग को इमाम तौहिदी के ट्वीट पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए। विश्लेषण करना चाहिए उस वीडियो क्लिप का। विश्लेषण करना चाहिए आदिल अहमद डार के वक्तव्य का। यह जानने का प्रयास करना चाहिए क्यों इनको नफरत है गोमुत्र पीने वालों से?! क्या गोमुत्र पीना कोई अपराध है?! क्यों किसी को सिर्फ इसलिए मार देना चाहिए कि वह मुसलमानों से असहमत है?! क्या गुनाह है उसका?! क्या केवल वैचारिक मतभेद होने पर किसी की हत्या कर दिया जाना चाहिए?! कहाँ गया उदारवाद?!
पुनश्चः जड़ें कहाँ छुपी हैं जाने बिना आतंकवाद जैसी विकट समस्या का समाधान नहीं खोजा जा सकता। अगर यह कट्टरपंथी सोच किसी धार्मिक ग्रन्थ से आ रही है तो तत्काल ऐसी शिक्षा पर रोक लगनी चाहिए और यदि यह सोच उन धार्मिक शिक्षाओं को न समझ पाने की वजह से उत्पन्न हो रही है तो उन शिक्षाओं को समझने लायक सरल शब्दों में बदलना चाहिए। अन्यथा हिंसा-प्रतिहिंसा, क्रिया-प्रतिक्रिया का यह दौर थमने वाला नहीं। और आतंकवाद अपने भयानक चेहरे के साथ इसी तरह अट्टहास करते रहेगा। कभी भारत में, कभी श्रीलंका में तो कभी कहीं और।